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फ़रवरी, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

होली के रंग ....

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ये रंग हो प्यार का ये रंग हो खुशियों का , ये रंग भरे जज्बातों में ये रंग अपने होने के अहसासों में , ये रंग हमारी खुशियों के हर पलो में , ये रंग बेरंग न हो किसी बात से । ये रंग भरा हो अटूट रिश्तों से , ये रंग न हो जीत -हार का , ये रंग न हो द्वेष - दुर्व्यवहार का , ये रंग हो सिर्फ प्यार का , ये रंग हो सिर्फ बहार का । -------------------------------- सभी मित्रो को इस रंग पर्व की हार्दिक शुभकामनाये ,हर आँगन में बिखरे उम्मीद भरे रंग ।

अहसास.......

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धीरे - धीरे यह अहसास हो रहा है , वो मुझसे अब कहीं दूर हो रहा है। कल तक था जो मुझे सबसे अज़ीज़ , आज क्यों मेरा रकीब हो रहा है। ************************* इन्तहां हो रही है खामोशी की , वफाओं पे शक होने लगा अब कहीं। **************************** जिंदगी है दोस्त हमारी , कभी इससे दुश्मनी , कभी है इससे यारी। रूठने - मनाने के सिलसिले में , हो गई कहीं और प्यारी । **************************** इस इज़हार में इकरार नज़रंदाज़ सा है कहीं , थामते रह गए ज़रूरत को , चाहत का नामोनिशान नहीं। ................................................... ये बहुत पुरानी रचना है किसी के कहने पर फिर से पोस्ट कर रही हूँ ।

काश..

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'काश ' ज़िन्दगी के हर पृष्ठ पर जमे हुए है बेहिसाब , जहाँ उठी बेबसी चल दिये साथ । असीमित असंभव पथ में , सर्वदा रहे उदास , 'काश ' बेहद ख़ास ।

उड़ न जाये

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ऐसे कब तक हम भरमाये मन को कहाँ तक भटकाए , कोई राह तो आये सामने ख्याल क्यों उलझते जाये , आगे कुआं पीछे खाई कही इनमे हम गिर न जाये , फंस कर गर्द की भंवर में डर है कही उड़ न जाये ।

ब्लोगर बंधुओ के नाम

कब किससे कैसे कहें अपने दिल की बात , इन सारी बातों से हम सभी हुए आजाद । एक साथी ब्लौग है , दूजी कलम है पास । जीवन के हर रंग में एक दूजे के साथ , सारी दुनिया जोड़ के तनहा नहीं कोई आज । एक ही जाल बुन रहा सुंदर सुखद समाज । यहाँ न किसी का शोर है और ना मन पे ज़ोर , खुले आकाश में उड़ रही आज पतंग निसोच , उस के रास्ते काटने आएगा नहीं कोई और । इन्द्र - धनुष के रंगों से हो रही यहाँ मुलाक़ात , मंजिल के साथ ही मानो चल रहे सब आज ।

नरम गरम ....

आज चाँद है कुछ नरम - गरम , और कर रहा शायद वनवास में भ्रमण , बदरी के ओट में भी नहीं छिपा हुआ , देखता नहीं तो जरूर दर्पण , चांदनी भी आज जला रही , है जरूर बैठा किसी कोप भवन , जो निकले मिजाज बदलकर बाहर , और चेहरे पर बिखरी हो मुस्कान , कह देना तब उसे कही , यारो मेरा दुआ सलाम ।

सूरज ढूँढ लाओ

सूरज ढूँढ लाओ जब खो जाये , चाँद को उठाओ जब सो जाये । तारो को दो आवाज़ जब छुप जाये । सुर मीठे छेड़ो   जब    उदास मन   हो जाये ।