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जनवरी, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बदलते रंग

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रुख हवाओ का बदला तो सब कुछ बदल गया , दिशा बदल गयी रास्ते बदल गये , ख्वाहिशो के रंग उतरकर नये रंगों में ढल गये , सूरते भी आईने में बदलती नज़र आई , रिश्तो के मायने नई भूमिका सजाई , मोटे - मोटे अक्षरों को हमने रेखांकित किया , और हर शब्द को व्याख्यायित किया ।

आशाओ के दीप जलाये

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हर बार ये कहते आये है हर बार ये सुनते आये है , इस तिरंगे के नीचे हमने बहुत से प्रण उठाये है । पर इस पर्व के जाते ही हम सब बिसर जाते है , सिर्फ कोरे वादे करके ही सच्चे देशभक्त बन जाते है । अपने वीरो जैसा जुनून हम क्यों नही पैदा कर पाये , जो देकर आहुति प्राणों की इस देश की जान बचाये । धरती माँ के पोछे आंसू सीना छलनी होने से बचाये , बनके उनके सच्चे सपूत जीवन को सफल बनाये । हो हरियाली इस धरती पर आशाओ के दीप जलाये । जय हिंद । सभी बंधुओ को गण तंत्र दिवस की हार्दिक बधाई , सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा । मजहब नही सिखाता आपस में बैर रखना , प्राण मित्रो भले ही गवाना , पर न झंडा ये नीचे झुकाना । वन्दे मातरम् वन्दे मातरम वन्दे मातरम् ।

आधुनिकता ........

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आधुनिक ता परिधानों में नही आधुनिकता दिखावे में नही , आधुनिकता झलकती है अपने विचारो से , आधुनिकता दिखती है अपने व्यवहारों में , आधुनिकता सुसंस्कार में आधुनिकता पावन प्यार में । अश्लीलता से सर झुकता है अभद्रता से रिश्ता टूटता है , रेशमी परदे से हालात ढकते नही कर्जो पर शान - शौकत टिकते नही , शालीनता में रहकर शिष्टता निभाये अपनी सुसंस्कृति को आगे बढ़ाये , धर्म के नाम पर झंडे न लगाये जाति - पाति पर सवाल न उठाये । जहाँ भूख बिलखती है दो रोटी के आस में , पेट को वो ढकती है अपने दोनों पाँव से , लाचार खड़ा होता है आदमी जहाँ इलाज में , घर छीन लिया जाता जहाँ वृद्धों के हाथ से , भेद भाव पनपते है यहाँ अमीरी - गरीबी से , इमानदारी खरीद ली जाती नोटों की गड्डी से । हालात जिस देश के हो इतने गरीब बेचकर इंसानियत और जमीर , हम कैसे कह सकते है कि हम है यहाँ आधुनिक ।