होकर भी साथ नहीं
ख्वाब वही ख्वाहिश वही अल्फाज वही ज़ुबां वही , फिर रास्ते कैसे जुदा है सफ़र के , कदम साथ अपने दे रहे क्यों नहीं । कही तो कुछ खलिश है मन में जो दिल चाहकर भी मिल रहा नहीं ।