एक सच ऐसा भी (क्या हो गयी है तासीर जमाने की )
धूल में सने हाथ कीचड़ से धूले पाँव , चेहरे पर बिखरे से बाल धब्बे से भरा हुआ चाँद , वसन से झांकता हुआ बदन पेट , पीठ में कर रहा गमन , रुपया , दो रुपया के लिए गिड़ गिडाता हुआ बच्चा - फकीर , मौसम की मार से बचने के लिए ढूँढ रहा है अपने लिए आसरा सड़क के आजू - बाजू , भूख से व्याकुल होता हाल नैवेद्य की आस में बढ़ता पात्र । ये है सुनहरा चमन वाह रे मेरा प्यारा वतन । अपने स्वार्थ में होकर अँधा क्या खूब करा रहा भारत दर्शन । " जहां डाल - डाल पे सोने की चिड़ियाँ क...