
बात अपनी होती है
तब
जीने की उम्मीद को
रास्ते देने की
सोचते है वो ,
बात जहाँ औरो के
जीने की होती है ,
वहाँ उनकी उम्मीद को
सूली पर लटका
बड़े ही आहिस्ते -आहिस्ते
कील ठोकते हुये
दम घोटने पर
मजबूर करते है ।
रास्ते के रोड़े ,
हटाने की जगह
बिखेरते क्यों
रहते हैं ?
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इसका शीर्षक कुछ और है मगर यहाँ मैं बदल दी हूँ क्योंकि यह एक सन्देश है उनके लिए जो किसी भी अच्छे कार्य में सहयोग देने की जगह रोक -टोक करना ज्यादा पसंद करते .