सोमवार, 19 जुलाई 2010

पत्थरों का ये स्रोत ..


क्या लिखूं
क्या कहूं ?
असमंजस में हूँ ,
सिर्फ मौन होकर
निहार रही
बड़े गौर से
पत्थर के 
छोटे -छोटे टुकड़े ,
जो तुमने
बिखेर दिये है
मेरे चारो तरफ ,
और सोच रही हूँ
कैसे बीनूँ इनको ?
एक लम्बा पथ तुम्हे
बुहार कर
दिया था ,मैंने
और तुमने उसे
जाम कर दिया
कंकड़ पत्थर से
पर यहाँ
सहनशीलता है
कर्मठता है
और है
इन्तजार करने की शक्ति ,
ठीक है ,
तुम बिखेरो
हम हटाये ,
आखिर कभी तो
हार जाओगे ,
और बिखरे पत्थर
सहेजने आओगे ,
और खत्म होगा
पत्थरों का
ये स्रोत
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मौन होकर निहार रही हूँ 
तेरे बिखेरे पत्थरों को ...
मैं तो फिर भी चल लुंगी 
कभी जो चुभ जाये तेरे ही पैरों में 
पुकार लेना ....
शायद तुम वो दर्द 
सहन न कर पो .....


23 टिप्‍पणियां:

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

बहुत बढ़िया ज्योति जी ,
पत्थर को माध्यम बना कर आप ने बहुत सच्ची बात कही
बधाई

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत कुछ कह दिया आप ने इस कविता मै इन पत्थरो के माध्यम से.... धन्यवाद

Alpana Verma ने कहा…

बहुत खूबसूरत बात कही है.
यही सहनशीलता तो मुश्किलों में हिम्मत देती है और पराजय को विजय में बदल देती है.
आत्मशक्ति अगर मजबूत है तो कितनी ही पत्थर रूपी अडचने आयें ..चलते रहने के लिए रास्ता मिल ही जाता है.
बहुत अच्छी कविता लिखी है.

वाणी गीत ने कहा…

तुम बिखेरो , हम हटायें ..
कभी तो हार जाओगे ...
यही तो करते रहते हैं हम ...
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...!

अजय कुमार ने कहा…

खूबसूरत अभिव्यक्ति ,पत्थरों के माध्यम से ।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

बिखेर केर पत्थर मेरे इर्द गिर्द
तुमने मेरा डर मिटा दिया
बस अब इन पत्थरों में
खुदा ही खुदा नज़र आता है....
कहना क्या !

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

..तुम बिखेरो..हम हटाएं...
आखिर कभी तो हार जाओगे
और बिखरे पत्थर...सहेजने आओगे..
और ख़त्म होगा..पत्थरों का स्रोत.
ज्योति जी,
पत्थरों को प्रतीक बनाकर
कितनी नाज़ुक बात कह गईं आप.
बहुत बहुत बधाई..
इस खूबसूरत एहसास से लबरेज़ रचना के लिए.

शोभना चौरे ने कहा…

आखिर कभी तो
हार जाओगे ,
और बिखरे पत्थर
सहेजने आओगे ,
और खत्म होगा
पत्थरों का
ये स्रोत ।

ati sundar

SATYA ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
SATYA ने कहा…

पत्थरों के माध्यम से आपने बहुत सुन्दर प्रस्तुति की है,
आभार...

vandana gupta ने कहा…

बेहद उम्दा और प्रभावशाली प्रस्तुति।

रचना दीक्षित ने कहा…

बहुत गहरी बात कह दी आपने.अगर सहनशीलता हो तो पत्थर तो क्या पहाड़ भी हटाये/ पिघलाए जा सकते हैं

संजय भास्‍कर ने कहा…

पत्थरों के माध्यम से ।
सच्ची बात कही.......

संजय भास्‍कर ने कहा…

गहराई से लिखी गयी एक सुंदर रचना...

Apanatva ने कहा…

sahanshakti aur sakaratmakata kee charam seema se avgat kara diya aapne.............bhartiy naaree kee ise kshamata ko naman .

bahut sunder abhivykti.

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

सुन्दर रचना ! सब्र हमेशा मीठा फल देता है !

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

मौन होकर निहार रही हूँ
तेरे बिखेरे पत्थरों को ...
मैं तो फिर भी चल लुंगी
कभी जो चुभ जाये तेरे ही पैरों में
पुकार लेना ....
शायद तुम वो दर्द
सहन न कर पो .....

है न ......????

sandhyagupta ने कहा…

Is pratikatmak rachna ke madhyam se bahut kuch kah diya aapne.Badhai.

अरुणेश मिश्र ने कहा…

पूजा करने वालों को
दुनिया भर के
पाषाण समर्पित ।
ज्योति जी . आपकी
रचना में प्रेम की उत्कट अभिव्यक्ति है ।
प्रशंसनीय ।

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

तुम बिखेरो , हम हटायें ..
कभी तो हार जाओगे ...
यही तो करते रहते हैं हम ...
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

और बिखरे पत्थर
सहेजने आओगे ,
और खत्म होगा
पत्थरों का
ये स्रोत ।

यही है जीवन्तता... बहुत सुन्दर रचना

मनोज भारती ने कहा…

स्त्री बुहार कर पुरुष के पथ को सुंदर बनाती है ...पर वह पाषाण ह्रदय पत्थर ही चुनता है राह में बिछाने के लिए ...??? है ना ? सुंदर भाव अतिरेक अभिव्यक्ति

दिगम्बर नासवा ने कहा…

पत्थर के माध्यम से बहुत कुछ कह गयी आपकी रचना ...