सोमवार, 12 दिसंबर 2011


सर्दी ने अहसास दिलाया
मौसम जाड़े का है आया ,

गुरुवार, 25 अगस्त 2011


हम -तुम -------
एक ही रास्ते के

दो मोड़ है ,

जो पलट कर

उसी राह ले आते है

जहां आरम्भ और अंत

एक हो जाते है ,

फिर सोचने की कही

कोई गुंजाइश नही

रह जाती ,

फैसले की कोई सुनवाई

हो ही नही पाती l

बुधवार, 17 अगस्त 2011


ख्यालो की दौड़ कभी
थमती नही

कलम को थाम सकू

वो फुर्सत नही ,

जब भी कोशिश की

पकड़ने की

वक़्त छीन ले गया ,

एक पल को

रूकने नही दिया ,

सोचती हूँ

इन्द्रधनुषी रंग सभी

क्या बादल में ही

छिप कर रह जायेंगे ,

या जमीं को भी

कभी हसीं बनायेंगे l



रविवार, 14 अगस्त 2011

वन्दे मातरम्

आज़ादी क्या है ?
इसकी सच्ची परिभाषा क्या है ,इसे साबित कैसे करे ?ऐसे ढेरो प्रश्न इस जश्न के सामने आते -आते जहन में उठने लगते है जिनके जवाब और मायने हम बहुत हद तक जानते है और समझते भी है ,क्योंकि बचपन से ही हमें इस बिषय पर काफी समझाया और पढाया जाता है ,कूट -कूट कर देश प्रेम की भावनाये मन में भरी जाती है ,उसके प्रति क्या जिम्मेदारिया है हमारी ,इस बात का अहसास कराया जाता हैपर जैसे जैसे बड़े होते जाते है इसे अपनी जिम्मेदारियों में ,शान -शौकत के रंग ढंग में नज़र अंदाज कर देते है ,और मौके मिलने पर स्कूली ज्ञान को ही बयां करके अपने को सच्चे देश भक्त के रूप में सामने लाते हैलेकिन हर बात कह देने और बयां कर देने से ही सम्पूर्ण नही हो जाती वो मुक्कमल हो इसके लिए कर्म का योगदान बेहद जरूरी है ,तभी उसे उचित तरीके से परिभाषित किया जा सकता है और सम्मानित भी
इसके लिए अपने राष्ट्र की अमूल्य धरोहर को जिससे हमारी पहचान कायम है उसे सुरक्षित और जिन्दा रखना जरूरी है ,दूसरो के घुडदौड़ में भागना समझदारी नही है इससे खुद की पहचान लुप्त हो जायेगी ,ऐसा हो इसलिए हम अपनी समझ -पहचान कायम रक्खे तथा राष्ट्र की गरिमा को बनाये रक्खे
उदाहरण के लिए ----भाषा ,संस्कृति ,पहनावा ,एकता ,धैर्य ,लज्जा ,साहस ,खानपान आदि ऐसी बहुत सी अमूल्य बाते और चीज़े है जो हमारी अपनी पहचान है ,हमारी राष्ट्रयिता को दर्शाती है ,पर हम इन्हें ओल्ड फैशन कहकर या आधुनिकता के पक्ष में खड़े होकर नकार देते है
क्या वाकई आधुनिकता इसी में है या सोच में विचारो में ?
समझ के फर्क को समझना और सहेजना सबके वश की बात नही और यही मतभेद उत्पन्न करते है आपस में ,फिर इस स्थिति में एकता -मानवता देखने को कम सुनने को ज्यादा मिलती है
आदर करने से आदर पायेंगे ,देश की धरोहर को सलामत रखेंगे तभी अपनी खास पहचान बनायेंगे
हर बात कहकर सुनकर ही पूरी हो जाये तो कर्म की प्रधानता कहाँ रह जायेगी ,इसलिए कर्म का योगदान अति आवयश्क है उन्नति सलामती के लिए ,और इसके लिए देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझे क्योंकि यह अपनी बहुत ही बड़ी जिम्मेदारी हैहमें अपनी किसी बात पर शर्म महसूस नही होनी चाहिए बल्कि अमल कर और आगे बढ़ाये
जैसे राष्ट्र भाषा हिंदी -जो पूरे हिन्दुस्तान को जोडती है ,उसकी तुलना किसी और से करना जायज नही ,उसका अपना स्थान और सम्मान है ,वो तुलनिये नही उसका स्तर उच्च कोटि का है ,वैसे भी भाषा तो भाषा है ,अंग्रेजी और हिंदी में फर्क क्या है ,वो भी भाषा है ये भी ,रूपांतरण से भाव तो नही बदल जायेंगे . उसी तरह कई बाते भिन्न होते हुए भी शायद एक जैसी ही है ,लेकिन नाम और जगह से प्रभावित हो कर हम इस बात पर नही सोचते और उनके अधीन हो जाते है ,इससे हमारी स्वतंत्रता छीन जाती है और हम अपनी पहचान खो देते हैऐसा हो इसके लिए अपनी भाषा और संस्कृति पर गर्व करे ,उसे अपनाये . जहाँ जाये अपने विचारो से उसे सर्वोच्च स्थान प्रदान करे ,और गर्व से कहे हम भारतीय है और हम उस मिटटी में जन्मे है जहाँ अनेकता में एकता हैएवं उसी को आधुनिक रूप -रंग में ढाले इससे देश का सम्मान भी बढेगा और अपनी खास पहचान सामने होगी
सारे जहाँ से अच्छा है हिन्दोस्तान हमारा ....जय हिंद

हमारा भारत तो विभिन्न रंगों से भरा है
इसके किसी भी रंगों को घटने दे ,
हमारा भारत बलिदानों का इतिहास है
उसके किसी भी पन्ने को मिटने दे ,
हमारा भारत पूरे विश्वमें अनोखा है
उसकी इस छवि को धुंधली पड़ने दे ,
हमारा भारत मीठी -मीठी बोलियों से भरा है
उसकी इस मिठास को कोई और स्वाद दे ,
हमारा भारत सभी धर्मो का सम्मान करता है
उसकी इस एकता को कभी टूटने दे ,
हमारा भारत अब और हिस्सों में बटे
इसके लिए कोई नाजायज मांग करे ,
हमारा भारत तो सिर्फ भारत है
इसे कोई और नाम-पहचान दे
............................................................................
जननी जन्मभूमि महान
शत -शत तुम्हे प्रणाम ,
तुम्ही हो मेरा गौरव
तुमसे ही है अभिमान
जय भारत जय भारती

शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

रक्षाबंधन


रंग बिरंगे धागों का
ये सुन्दर त्यौहार ,

नयनो में सपने संजोये

लौट आया फिर आज .

भाई के स्नेह में लिपटी

बहने हो रही निहाल ,

निकल पड़ी है सज के

जाने को वो बाज़ार ,

भीनी सी मुस्कान लिए

रही राखियों को निहार ,

सबसे सुन्दर कौन सी राखी

उलझ गई लिए ख्याल ,

भईया खुश हो जाये मेरा

कलाई पर किसे बाँध ,

भाव विभोर हो उठी है

वो करके बचपन ध्यान ,

नयनो में सावन की बूंदे

झूम पड़ी लिए धार ,

अपने मन के खुशियों को

नही पा रही वो संभाल ,

चन्दन ,मीठा ,अक्षत ,दीप

साथ में लिए राखी -रुमाल

ढेरो उमंगें भर कर मन में

सजा रही बहन राखी के थाल ,

निभा रहें राखी के बंधन

मिल भाई बहन आज ,

सावन की हरियाली में

लहलहा रहा पावन प्यार ,

रक्षाबंधन का आया है

पावन सुन्दर त्यौहार l



गुरुवार, 4 अगस्त 2011

अनुभव


छोटी सी दो रचनाये
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महंगाई से अधिक
भारी पड़ी हमको
हमारी ईमानदारी ,
महंगाई को तो
संभाल लिया
इच्छाओ से समझौता कर ,
मगर ईमानदारी को
संभाल नही पाये
किसी समझौते पर
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मेरी हर हार
जीत साबित हुई ,
बीते समय की
सीख साबित हुई l

बुधवार, 20 जुलाई 2011

रास्ते


चलना शुरू किया तो
सफ़र कही थमा नही ,

कहाँ तक जाते है रास्ते

गुमां ये कभी हुआ नही .

तुम मत कहना भूले से

किसी और राह चलने को ,

क्योंकि आकर यहाँ तक हमें

अब रास्ते अपने बदलना नही .
.................................................
दोस्तों मैं लगभग दो महीने बाद अपने ब्लॉग पर आई हूँ ,यहाँ आकर देखी तो काफी रचनाये सबकी डल चुकी है ,मैं अपनी व्यस्तता की वजह से उन्हें बराबर नही पढ़ पाई जिसके लिए मन में अफ़सोस है ,मगर ये सिलसिला कल से फिर शुरू करने जा रही ,बारी -बारी सबके ब्लॉग पर आ रही हूँ ,मुझे भी कहाँ चैन है बिना पढ़े ,कब से राह तलाश रही थी ,मगर वक़्त हाथ ही नही लग रहा था ,आज तो जिद्द में जीत हासिल की और इन्तजार भी खत्म किया ,बस कुछ ही लम्हों की दूरी पर हूँ ,अब तक की रुकावट के लिए माफ़ी चाहती हूँ ,आप सभी बंधुओ से ,.मेरे पीछे भी आप मेरे ब्लॉग से जुड़े रहें इस स्नेह के लिए दिल से आभारी हूँ .धन्यबाद .




सोमवार, 6 जून 2011

तन्हा


यभीत हूँ

कही ये युग

बहुत ऊंचाई तक

पहुँचने के प्रयास में

नई तकनीक की

तलाश में

अपना वजूद न मिटा दे ,

महाप्रलय के शिकंजे में

फंस कर

अपना आधार न

गवा दे ,

आज हमें

सिर्फ तन्हा होने का

ख्याल डस रहा है ,

कल सारी धरती ही

तन्हा न हो जाये ______ l

रविवार, 29 मई 2011

सन्नाटा


चीर कर सन्नाटा

श्मशान का

सवाल उठाया मैंने ,

होते हो आबाद

हर रोज

कितनी जानो से यहाँ

फिर क्यों इतनी ख़ामोशी

बिखरी है

क्यों सन्नाटा छाया है यहाँ ,

हर एक लाश के आने पर

तुम जश्न मनाओ

आबाद हो रहा तुम्हारा जहां

यह अहसास कराओ .

शुक्रवार, 20 मई 2011

कुछ मन की


जिंदगी वफ़ा की सूरत

जब इख्तियार करती है

हर कदम पर तब नए

इम्तिहान से गुजरती है .
.................................
कितनी सुबह निकल गई

कितनी राते गुजर गई

कुछ बाते पहली तारीख सी

आज भी है यही कही .
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मंजिल इतनी आसान होती

तो क्योकर तलाशते

क्यों उम्र अपनी सारी

यू दाव पर लगाते .
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जो मजा सफ़र में है

वो मंजिल में कहाँ

थम जाती है जिंदगी

सब कुछ पाकर यहाँ .

शनिवार, 14 मई 2011

उम्मीद



आइने में सभी सूरते

एक सी नज़र आती है

किसे कहे यहाँ अपना

यही ख्याल लिए रह जाती है ,

तभी वो चेहरा दिखता है

जिसका कोई अक्स भी नही ,

है वो निराकार ,

लेकिन मेरी कल्पनाओ को

करता है वही साकार .

शनिवार, 7 मई 2011

ममतामयी माँ


माँ मेरी माँ

और सबकी माँ

जन्म से लेकर

अंतिम श्वास तक

जरूरत सबकी माँ

जीवन की हर

छोटी -छोटी बातों में

याद बहुत आती माँ

उसकी निश्छल ममता ,

करूणा है और कहाँ

उसके आँचल तले जैसा

है नही घनी छाँव यहाँ

निस्वार्थ सर्वस्व लुटाने वाली

त्याग की मूर्ती माँ

मीठी लोरी से पलकों में

स्वप्न सुन्दर भरती माँ

सहलाकर नर्म हाथो से

ठंडी राहत देती माँ

बालो को कंघी से

सुलझाने वाली माँ

बड़े प्यार से निवाले को

मुंह में भरती माँ

उसके हाथों सा स्वाद

मिलेगा हमें कहाँ ,

बच्चो के हर सुख -दुख को

भांपने वाली माँ

कहे बिना ही मन के हर

भाव को पढ़ लेती माँ

सबकी चिन्ताओ को अपने

हृदय में समेटे माँ

जीवन के हर मोड़ पर

साथ निभाती माँ

जन्नत उसके चरणों में

है यहाँ बसा हुआ

ईश्वर का ही रूप है

दुनिया की हर माँ .
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मातृ दिवस के पावन पर्व पर सबको ढेरो बधाई ,सभी माओ को नमन .सदा उसके स्नेह से मन हमारा सींचता रहें और जीवन हरा भरा रहें ,हम उनको आदर दे उनकी जरूरतों को समझे उनकी आह नही उनकी दुआए ले ,क्योंकि माँ अनमोल और दुर्लभ है ,इसकी ममता की सदा लाज रक्खे ,जब तक है सेवा करके जीवन सार्थक करे .

शनिवार, 30 अप्रैल 2011


अब गूंगे का जमाना नही

शोर शराबे का है ,

लाठी चलाओ

हल्ला मचाओ

जबरदस्ती काम बनबाओ ,

यदि कोई सज्जन विरोध कर

ये कहे

अरे भाई क्या गुंडागर्दी है ?

तभी बड़े रौब से

सीना तानकर कहो

जनाब

ये हमारा हक है

बस उसी का

इस्तेमाल कर रहें है ,

आप फिजूल में ही

एतराज कर रहें है ।

शनिवार, 16 अप्रैल 2011

गुमां नहीं रहा


जिंदगी का जिंदगी पे अधिकार नही रहा
इसीलिए उम्र का अब कोई हिसाब नही रहा ,

आज है यहाँ , कल जाने हो कहाँ
साथ के इसका एतबार नही रहा ,

मोम सा दिल ये पत्थर न बन जाये
हादसों का यदि यही सिलसिलेवार रहा ,

जुटाते रहें तमाम साधन हम जीने के लिए
मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा ,

देख कर तबाही का नजारा हर तरफ
अब बुलंद तस्वीर का ख्वाब नही रहा ,

वर्तमान की काया विकृत होते देख
भविष्य के सुधरने का गुमां नही रहा ,

सोचने को फिर क्या रह जाएगा बाकी
हाथ में यदि कोई लगाम नही रहा l

गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

बच्चे मन के सच्चे .....

बचपन इन बातों से हटकर अपनी उम्र गुजारे

जब हम बच्चे थे ,तब हमें बस उतना ही पता होता था ,जितना हमें किताबो में समझाया या पढाया जाता था या जो हमारे बड़े समझाते थे ,कि झूठ मत बोलो ,चोरी करो ,बड़ो का आदर करो ,गुरुजनों का सम्मान करो ,इत्यादि इत्यादि शिष्टाचार की इन बातों के अलावा हमारे समक्ष जिंदगी जीने के लिए कोई ऐसी शर्त नही होती थी जो हमारी स्वछंदता पर आरी चलाये ,विचारो को कुंठित करे तथा मन को बांधे
अपने हक के साथ ,मर्जी को पकड़ बढ़ते रहें ,जीते रहें धर्म की समझ , जाति की परख ,जिसका टिफिन अच्छा लगा खा लिया ,जो मन को भाया उसे दोस्त बना लिया ,हर भेद -भाव से अन्जान ,तहजीब किस चिड़िया का नाम है ये भी खबर नही रही इतना कौन सोचता रहा भला
दिमाग को भी आराम रहा उस वक़्त ,बेवजह कसरत समय -असमय पर नही करनी पड़ती रही ,जो सामने आया उसे चुनौती समझ स्वीकार करते गये और हर लम्हा मस्ती के साथ बिताते गये
कुछ बुरा कह दिया तो बिना कोई बैर रक्खे झट उससे माफ़ी मांग ली ,सोचने का भी अवसर नही लिया ,अहम से बिलकुल अछूते एवं मन के साफ़ ,कितनी खूबसूरत थी हर बात ,कितने कोमल थे हर भाव
एक खुला आकाश था सर पे और हरी - भरी धरती रही पाँव के नीचे हर कायदे -कानून से अनजान ,नाप -तौल से दूर
रिश्तों को जो बदसूरत बनाये और जिंदगी को बेरंग ऐसी समझदारी से बहुत किनारे
मगर उम्र के साथ -साथ हमारी समझ भी बढ़ने लगी ,हर मोड़ पर फर्क करना सिखाने लगी हम तहजीब के दायरों में सिमटने लगे ,विचारो को संकीर्ण करने लगे ,सांप्रदायिक दंगो में उलझने लगे ,सबसे अहम बात मैं के महत्व को जानने लगे ,तभी बंटवारे की योजना बनी ,इतने सारे भेद हमारे मन को भेदने लगे और हम घायल होने लगे तब हमें एक नई भाषा का अनुभव प्राप्त हुआ जिसे हम लकीरों की भाषा के नाम से जानते है ,और हम अपने को इसके अनुसार आंकने लगे
आपस में फर्क महसूस करते हुए बातों को दिल में जमा कर पत्थर की तरह हृदय को कठोर बनाने लगे ,भ्रम के जाल में उलझाते हुए हजारो मैल बेबुनियादी शिकायतों की एकत्रित कर मासूमियत ,अच्छाई को ढापते गये ,क्योंकि हम बड़े हो गये ज्यादा समझदार हो गये इसलिए अपनी अहमियत को बनाने के लिए अहम को धारण करने लगे ,और ये सहायक हुआ दूरियां बढाने में
फिर क्या था ,रिश्ते ज्यो ही नकारे गये ,तन्हाई मौका पाकर लिपट गयी और हमें डसने लगी ,इस पीड़ा में करहाते हुए आंसू बहाते रहें
वाह रे चतुर चालाक इंसान ,समझदार हो कर तू और भी हो गया परेशान इससे अच्छा तू रहा बालक ,हृदय में जिसके बसते रहें भगवान
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इन्साफ पसंद हम ज्यादा

बेईमान हो गये ,

बचपना दिखाया तो

नादान हो गये

सबने कहा ये तो

नासमझ है यारो ,

उम्र है अधिक मगर

अक्ल बढ़ी नही प्यारो

सादगी सच्चाई का

ये सिला रहा ,

इस झूठी जिंदगी से

हमें भी गिला रहा