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मई, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सभी नज़रो का ग़लत अनुमान ,गधा महान

हर बात पे गधा कहना , है कितना आसान किसी की बेवकूफी पे कहना ये ,है बहुत आम , गधा अपने गुणों से है बहुत महान , सहनशील ,मेहनती ,धीर ,गंभीर व शांत , ये सभी तो है महात्माओं के निशान , सीधे ,सादे ,सच्चे लोगो की है पहचान , बेचारा गधा ख़ास ,फिर भी है बदनाम , वेवज़ह सूली पे लटक रहा सरेआम , आगे जब भी दे , किसी को ऐसा सम्मान , सोचिये ,आप दे रहे उनको क्या स्थान ?

शक के दायरे में

हर बात पे लोग टांग अडाने लगे है , पत्थर मार कर घर में झाँकने लगे है , कानो को चिपका कर सुनने लगे है , फिर भी तसल्ली न वे पा सके हैं , तो शगूफे वो अपने उडाने लगे है , और मन गढ़त किस्से बनाने लगे है , हर बात उनकी समझ से परे है , फिर भी कोशिशों में बराबर लगे है

शक के दायरे में

चित्र
हर बात पे लोग टांग अडाने लगे है , पत्थर मार कर घर में झांकने ल गे है , कानों को चिपका कर सुनने लगे है , फिर भी तसल्ली न वे पा सके हैं , तो शगूफे वो अपने उडाने लगे है , और म न गढ़त किस्से बनाने लगे है , हर बात उनकी समझ से परे है , फिर भी कोशिशों में बराबर लगे है

ज़िन्दगी

ये धूली-धूली सी , ये महकी -महकी सी । ओस के बिखरे बूंदों सी , हवा सी बहती जाए आहिस्ते सरकती जाये कही , इसे सुबह की प्याली सी चुस्की लेते हुए हर कही पीते जा रहे है सभी , ये ज़िन्दगी जी रहे है सभी , कही -कही अनसुनी सी , कभी सूनी -सूनी सी , कुछ कहते अपने में ही , कुछ कहते - कहते ठहरी , गुमसुम सी होकर खड़ी , हलकी मुस्कान की लिए हँसी , लपेटे चल रहे हैं सभी ये ज़िन्दगी जी रहे हैं सभी , ये ज़िन्दगी है सब को प्यारी हर पन्ने पर लिखती कहानी नई , मन को जोड़ती हुई सुबह से शाम चलती यूँ ही रात को थक कर सो जाती आंखों पर रखकर सपने कहीं चाहें हँसी चाहें नमी ये ज़िन्दगी जी रहे हैं सभी

'राजीव के स्मृति में '

आज फिर पलके भीग आई , आज फिर खोई पुरवा लौट आई , कुछ वर्षो पूर्व जो , खो गया अतीत में आज इतिहास बनकर लहराई , वह खौफनाक हादसा जो , तुम्हे हमसे जुदा कर गई , यही हादसा याद बनकर आंखों में फिर उतर गई , उम्मीद हमें अभी भी है तुम्हारी वापसी की , तुम आओगे उजाला बनकर शीतल चांदनी का , राष्ट्र का कण -कण है , अभी भी तुम्हे पुकारता तुम्हारी याद में हर वर्ष , है ये आंसू बहाता , इस राष्ट्र को तुम्हारा ही कर्णधार चाहिए , उद्धार हो इस देश का ऐसा दिव्य पुरूष चाहिए

संशय

अनजान से रास्ते , पहचान लिए साथ में , चल रहे हम दिशा की ख़बर नही , चाह फिर भी , बढ़ने की , राह तो कही नही , भूल रहे हम

तकाजा

कुछ इज़हार है , कुछ इकरार है , अहसासों का ये दरबार है , चाहो तो , कुछ तुम भी कह लो , दिल के बोझ को कम कर लो , फिर ऐसे मौके कब आयेंगे , जहाँ हाल दिल के कह पायेंगे , दोष न देना ऐसे मौके को , ये खता न ख़ुद से होने दो

एक वो रात

वो राते लम्बी होती है , जब तन्हाई डसती है , यादे बोझिल होती है , तब ये नींद कहाँ पे सोती है , ये रात जो मुझ पे भारी है , आँखों-आँखों में कटती है , करवट की आहट होती है , लिए दर्द मचलती रहती है , नींद को तलाशते , आँखों में सुबह होती है

एक वो रात

वो राते लम्बी होती है , जब तन्हाई डसती है , यादे बोझिल होती है , तब ये नीँद कहाँ पे सोती है , ये रात जो मुझ पे भारी है , आंखों -आँखों में कटती है , करवट की आहट होती है , लिए दर्द मचलती रहती है , नीँद को तलाशते , आँखों में सुबह होती है

आस -विस्वास

फिर सुबह होगी , फिर प्रकाश फैलेगा , फिर कोई नए ख्वाब का दिन सुनहरा होगा , फिर पलकों पे सपने सजेंगे , उन सपनो में अरमान पलेंगे , उम्मीदों के दामन थामे , सारी रात जगेंगे , मन न कर तू छोटा , ख़ुद से कहते रहेंगे , स्वप्न कहाँ होते है पूरे , पर तेरे पूरे होंगे , आशाओ को थाम जकड़ के , सारी उम्र रटेंगे , हम भी अन्तिम साँसों तक , अपने ख्वाब बुनेंगे , मिथ्या आसो से बंधकर , सपनो से वादे होंगे , अनजाने में ही सही कभी उम्मीद तो पूरे होंगे , पंखहीन होकर भी हम , आशाओ के उड़ान भरेंगे , कुछ ख्वाब हमारे ऐसे ही , ठहर कर पूरे होंगे , निराश न कर तू मन , कुछ ऐसे वक्त भी होंगे , ज़िन्दगी इतनी आसानी से , देती कहाँ सभी कुछ , संघर्षो के बिना है होता , हासिल कहाँ हमें कुछ , भाग्य रेखाओ को झुठलाते , आगे बढ़ते जायेंगे , रेखाओ के खेल है , बनते -मिटते रहते है , हर नए दिन जो आते है , उम्मीद लिए ढलते है , वादे तो ख्वाबो में पलते है , ये सिलसिले यूही चलेंगे

'ओ ' माँ

माँ की सीने की हर सांस तपस्या है , आती - जाती ,हल करती , हर एक समस्या है , ममता का कोमल अहसास कराती है , अनदेखे , अनछुए _____ स्पर्श का भाव जगाती है , ममता के स्वर में समझाती मानव जीवन की परिभाषा , तुमने हर प्राणी को दे दी जीवन की कोमल अभिलाषा , संसृति की ये अद्भुत रचना , अन्तः मन जाने खूब परखना , श्रम -साधक , कर्म - विधेयता , शत -शत नमन 'ओ ' माँ की ममता

'हकीकत '

'हकीकत ' तेरी स्वयं की वास्तविकता में भी , भिन्नता झलकती है , नज़र के सामने की तस्वीर रूप क्यो बदलती है ? दिखाती है कुछ ,किंतु बयां कुछ और ही करती है , असलियत के भाव से सम्पूरण गवाही फिर भी भिन्न -भिन्न देती है , हकीकत के आइने में भी , सत्य हर क्षण छलती है

समीक्षा

अपनी गलती का अहसास तो , है सही , ये भी कम बात नही , हम किसी की भावना समझ सके , उसकी अच्छाइयों को परख सके , साथ देने की कोई हद नही , रिश्तो के मापदंड का कोई कद नही , हम किसी की गलतियों को दोहराए , ये बात भी कुछ ठीक नही , गलतियाँ हमें कुछ सिखलाये , जीवन दर्शन तो है यही सही

'गुरुदेव '

"शान्ति निकेतन "के कर्णधार संघर्ष भरा जीवन ,फिर भी शांत उदार दया भाव से परिपूर्ण है तुम्हारा आधार संगीत की धरोहर , साहित्य की खान , ऐसे सर्वोच्च अदभुत संगम पर सदा है ,भारत को अभिमान 'गुरुदेव' से सुशोभित उपनाम सुयश तुम्हारा विश्व विख्यात बढ़ा तुम्हारे ही राष्ट्रगान से भारतीये तिरंगे का सम्मान जन-गण-मन के सूत्रों में बंधा , मातृभूमि के हर क्षेत्र का मान बंग-भूमि के दिव्य पुरूष तुम स्वीकारो जन-जन का प्रणाम

विरोधाभास

उपदेश ऊँचे -ऊँचे बातें बड़ी -बड़ी , न्याय एवं परोपकार के नाम पर कुछ नही विरोधाभास का उदाहरण इससे बेहतर नहीं कही

मानवता का 'स्वप्न'

कैसा दुर्भाग्य ? तेरा भाग्य सर्वोदय की कल्पना , बुनता हुआ विचार, स्वर्णिम कल्पना को आकार देता , खंडित करता , फिर उधेड़ देता लोगों का विश्वास , नवोदय का आधार फिर भी आंखों में अन्धकार । इच्छाओं की साँस का घोटता हुआ दम , अन्तः मन का द्वंद प्रतिक्षण । भाव - विह्वल हो कांपता , अकुलाता भ्रमित - स्पर्श , टूट कर भी निःशब्द , मानवता का 'स्वप्न ' ।

आशा की किरण

तुम दुआ हो हमारे या अँधेरी रात में जगमगाते सितारे , हवा से जहाँ बुझ गए दिए , वहां जुगनू बन राह रो़शन किए , तुम्हारी हक अदायगी व दीवानगी पे , हमने सर ही नही , दिल भी झुका दिए
मेरी खामोशी को दिशा न दो कोई और , तूफान से पहले अंजाम का होता नही शोर
अभी तो चाँद ऊपर था , कब नीचे उतर गया ? ये ख्वाब हकीकत , कैसे बन गया ? या मैं जागकर , सपने में रह गया
गिला उन्हें नही , गिला हमें नही , गिला किसे हुई , ये ख़बर नही ।
यकीं बन कर आए, चाहो तो रोक लो, वरना क्या जाने कब, धुँआ बन उड़ जाए। इस एतबार का कुछ कहा न जाए, कुछ पल पहले साथ, आगे धोखा दे जाए।
दिल की भड़ास निकालो ,मन में जो है कह डालो ,भीतर के भारी बोझो को ,जितना चाहो उतारो ,चंद शब्दों में ढेरो बात ,कहना हुआ आसान ,तेरे वास्ते कितने रास्ते ,निकल पड़े इंसान ,अपनी कोशिश से चाहो ,जितना रंग भर डालो ,जीवन के तस्वीरों को , हर रूपों में सजा लो