शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

नए साल के आने पर ..

ये साल गुजरा तो
कितने बाते याद आई ,
क्या खोया क्या पाया
सोच ये जहन में उभर आई
बही खाते अपने पन्ने
धड़ाधड़ पलटने लगे ,
नफा -नुकसान का हिसाब
फटाफट बताने लगे
वक़्त की रफ़्तार का तब
गहरा अहसास हुआ ,
एक वर्ष गुजर गया
इसका अंदाज हुआ
जिंदगी हम तुझसे और
एक बर्ष दूर हो गये ,
सोचकर ये दिल और उदास हुआ
तभी इरादे को दृढ़ की
अपनी सोच को नई दिशा दी ,
छूट गये जो काम
गुजरे साल में
करेंगे हम उन्हें पूरा
इस नए साल मे ।

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आप सभी मित्रो को नव बर्ष की ढेरो बधाइयां ,नव बर्ष मंगलमय हो .

शनिवार, 9 अक्तूबर 2010


है कठिन जमाना लिए कठिन दर्द
अन्याय की दीवारों में ,
जख्मो की बेड़िया पड़ी हुई है
परवशता के विचारो में ।
रोते -रोते शमा के अश्क
बदल गये अब सिसकियो में ,
हर दर्द उठाती है मुस्कान
इस बेदर्द जमाने में ।
छुपाये नही छिपते है आंसू
हकीकत के इन आँखों में ,
एक जीत नजर आती है जिंदगी
जीवन के इन हारो में ।
रात को रौशन कर देगी कभी
चाँदनी अपने उजालो में ।

सोमवार, 4 अक्तूबर 2010

सब का मालिक एक है


ईश्वर हो या अल्लाह

वो कहता बस यही ,

हमे न चाहिए कोई जमीं

और न इमारत बड़ी -बड़ी

मैं तो हूँ कण -कण में

जीवन के हर धड़कन में ,

याद करोगे जिस जगह

मिलूंगा तुम्हे मैं वही

नाम हमे चाहे जो दे दो

इबादत तो है एक ही ,

बाँट रहे हो क्यों हमको

हम तो है सबके ही

मैं तो नेक इरादों में

मानवता की राहो में ,

प्रेम के निर्मल भावो में

इंसानियत से बढ़कर

नही होता धर्म कोई

धर्म सभी होते है सच्चे

अहसास सभी होते एक से ,

वही इनायत बरसेगी

फर्क जहां न होगा कोई

हमने तो नही सिखाया

तुम्हे करना भेद कभी ,

न कोई हिन्दू न कोई मुस्लिम

है केवल यहाँ इंसान सभी ।
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इस रचना को फैसले के पहले ही डालना था ,इसे मैं भोपाल में लिखी रही जब वहां गयी थी ,उस समय गणेश चतुर्थी रही मगर लौटने के बाद सोचते -सोचते समय निकल गया फिर संकोच में नही डाल सकी ,मगर कल अपने मित्र के यहाँ जाकर जब इसे पढायी तो उसने कहा तुरंत डाल दो ,और आज डाल पायी ।





सोमवार, 27 सितंबर 2010

छोटी छोटी रचनाये


जिंदगी यूं ही गुजरती है
यहाँ दर्द के पनाहों में ,
क्षण -क्षण रह गुजर करते है
पले कांटो भरी राहो में ।
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हर दिन गुजर जाता है
वक़्त के दौड़ में ,
आवाज विलीन हो जाती है
इंसानों के शोर में ।
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वफ़ा तब मोड़ लेती है
जमाने के आगे ,
न जलते हो कोई जब
उम्मीदों के सितारे ।
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उन आवाजो में पड़ गई दरारे
जिन आवाजो के थे सहारे ।
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अपनो के शहर में
ढूँढे अपने ,
पर मिले पराये और
झूठे सपने ।
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अनामिका
के आग्रह पर बचपन की कुछ और रचनाये डाल रही हूँ ,जो दसवी तथा ग्यारहवी कक्षा की लिखी हुई है

मंगलवार, 21 सितंबर 2010

आपसी द्वेष


रिश्तों के आपसी द्वेष ,
परिवार का
समीकरण ही बदल देते है ,
घर के क्लेश से दीवार
चीख उठती है ,
नफरत इर्ष्या
दीमक की भांति ,
मन को खोखला करती है ,
ज़िन्दगी हर लम्हों के साथ
क़यामत का इन्तजार
करती कटती है
और विश्वास चिथड़े से
लिपट सिसकियाँ भरती है

सोमवार, 13 सितंबर 2010

याचना


आहिस्ते -आहिस्ते आती शाम

ढलते सूरज को करके सलाम ,

कल सुबह जो आओगे

लपेटे सुनहरी लालिमा तुम ,

आशाओं की किरणे फैलाना

मंजूर करे जिससे , ये मन

कण -कण पुलकित हो जाए

तुम ऐसी उम्मीद जगाना ,

जन -जन में भरकर निराशा

न रोज की तरह ढल जाना ,

आशाओ के साथ उदय हो

खुशियों की किरणे बिखराना,

करती आशापूर्ण याचना

हाथ जोड़कर आती शाम ,

रवि तुम्हे संध्या बेला पर

करू उम्मीदों भरा सलाम ।

रविवार, 29 अगस्त 2010

फकीर



ये रास्ते है अदब के

कश्ती मोड़ लो ,

माझी किसी और

साहिल पे चलो

हम है नही खुदा

है खास ही ,

राहे - तलब अपनी

कुछ है और ही

नाराजगी का यहाँ

सामान नही बनना ,

वेवजह खुद को

रुसवा नही करना

बे अदब से गर्मी

माहौल में बढ़ जायेगी ,

कारण तकलीफ की

हमसे जुड़ जायेगी

हमें हजम नही होती

इतनी अदब अदायगी ,

चलते है साथ लिए

सदा सच्चाई -सादगी

फितरत हमें खुदा ने

बख्शी है फकीर की ,

ले चलो मोड़ कर

मुझे अपनी राह ही


गुरुवार, 26 अगस्त 2010

धुंध


अश्को का सैलाब

डबडबा रहा है आंखों में ,

फिर भी एक बूँद

पलको पर नही ,

निशब्द खामोशी भरी उदासी

कहने को बहुत कुछ पास में ,

परन्तु बिखरी है संशय की

धुंध भरी नमी सी ,

कितनी दुविधापूर्ण स्थिति

होती है यकीन की

सोमवार, 23 अगस्त 2010

है प्यार का बंधन रक्षाबंधन


राखी का पर्व हमारे देश मे बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है यह बाजारों की सजावट देखने पर ही समझ जाता है ,जो एक महीने पहले से ही रंगबिरंगी राखियों से जगमगा उठता है .क्योंकि यह सिर्फ रस्म नही बल्कि मान -सम्मान आपसी प्यार का त्यौहार है ,इसमें रिश्तों की गहराई है ,पवित्रता है तभी तो इसे भाई -बहन का पावन पर्व कहा गया है
क्योंकि ये वो रिश्ता है जिन्हें हम बचपन से एक ही आँगन मे जीते है ,आपस के सुख -दुख सभी इसके साझेदार होते है ,भाई -बहन एक ही शाखा के अलग अलग टहनियां है जो एक दूजे का सहारा बनते हुए बड़े होते है पर बहने जब ब्याह कर चली जाती है तब यही एक दिन ऐसा होता है जब दोनों को सारे गुजरे दिनों से जोड़ता है इस निश्छल भावनाओ का कोई मोल नही होता ,जिन्हें सिर्फ हम मनाते नही जीते भी है हमारी जिंदगी मे इस पर्व का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है तभी हम इसे बहुत ही उत्साह और उमंग के साथ मनाते आये है बचपन से मेरे भाई को इतना पसंद है यह त्यौहार कि एक महीने पहले से इसकी तैयारी के बारे मे जानने को उत्सुक रहता है मैं नौ -दस वर्ष तक अपने हाथो से राखी बना कर भेजती रही और वो हर बर्ष मुझे कहता दीदी इस बार की राखी और सुन्दर होनी चाहिए और उसकी इच्छा को ध्यान मे रखते हुए मैं बड़े बड़े पाट तैयार कर महीनो आगे जमा देती फिर उसे सजाती कढाई और तरह तरह के डिजाइन से ,फिर विधिवत उसे पार्सल करती ,क्योंकि मैं बनस्थली के छात्रावास मे रही इस कारण राखी पर घर नही जा पाती थी और अब भाई नौकरी के कारण दूसरे शहर मे रहता है इसलिए कुछ साल छोड़ कर सदा राखी पार्सल करती आई मैं जब पार्सल करने जाती हूँ तो रेलवे डाक विभाग के कर्मचारी आपस मे मेरे पार्सल को देख कर कहने लगते है ,क्या यह राखी का पार्सल है !तब मैं बड़ी सहजता से कहती हाँ ,और उनके आगे के सवाल भी बिन कहे समझ जाती हूँ क्योंकि आम तौर पर लोग सिर्फ लिफाफे मे राखी डालकर भेज देते है और इसी कारण से उन्हें मेरा ये एक -दो किलो का पार्सल आश्चर्यचकित कर देता है और तुरंत पूछने लगते है आखिर है क्या इसमें ?फिर चाहते हुए भी मुझे उनके सवालों को सुलझाना पड़ता है और मैं उत्तर देती हूँ कि हमलोग रक्षाबंधन बहुत विधिवत मनाते है और ये हमारे लिए सिर्फ फर्ज नही है हमारी खुशियाँ है ,मायका का अटूट बंधन है ,हमारा भाई बेसब्री से इन्तजार करता है इस पर्व का इस लिए हमलोग वो सारे सामान जिसकी जरूरत राखी के अवसर पर होती है भेज देते है इस पर उन्होंने कहा कि सिर्फ राखी भेज दीजिये हल्की सी और साथ मे पैसे ,तब मैं तपाक से बोली रूपये हर कमी पूरी नही करता ,रिश्तों को जिन्दा रखने के लिए सच्चे एवं गहरे अहसास भी होने चाहिये जो हम दे रहे है ,वो उसे पैसा दे ,और वो सभी चुप हो गये शायद आज के दौर मे उन्हें ये ये सब विचित्र लगा हो
खैर जो इस जज्बे कि क़द्र करते है वो ही इन सभी बातों को भी समझ सकते है हमारे लिए तो जीने कि वजह है और बंधन को मजबूत बनाने का तरीका मेरा भाई हमेशा सभी बहनों से दो दो राखियाँ बंधवाता है और तीनो बहनों कि तरफ से मैं अक्सर उसे डबल राखियाँ भेजती हूँ ,फिर भी हर बार की तरह पहले अवश्य पूछेगा दो दो राखियाँ भेजी हो इस बार भी और मैं दिलासा देते हुए कहती हूँ ,हाँ बाबा भेज दी हूँ राखी पाने के बाद उसकी आँखों मे जो चमक और आवाज मे ख़ुशी होती है उसे केवल महसूस किया जा सकता है बयां नही
पार्सल की सूचना देते समय मैंने उसे डाक घर मे कही बात बताई तब उसने कहा नही पैसे मे वो आनंद नही , और मेरी भाभी तुरंत फ़ोन लेकर बोली दीदी ये आपलोग की भेजी हुई राखियाँ तथा सारी चीजे बड़े शौक से सब को दिखाते है और बाद मे संभाल कर रख देते है मैं बोली जानती हूँ ,क्योंकि जब हम छुट्टियों मे उसके यहाँ जाते है तब वह सहेज कर रक्खी राखियाँ दिखाता है हमें यही वजह है कि हम इतनी लगन से मनाते है हर रिश्ता इतना ही पावन हो यही कामना करती हूँ आप सभी को ढेरो बधाइयाँ ,व्यस्तता के कारण बराबर नही पा रही ,कल मायके से लौटते ही सभी के ब्लॉग पर आती हूँ आपका सहयोग इसी तरह मिलता रहे ,शुक्रियां