रविवार, 11 अप्रैल 2021

एक सच ऐसा भी (क्या हो गयी है तासीर जमाने की )

धूल में सने हाथ

कीचड़ से धूले पाँव ,

चेहरे पर बिखरे से बाल

धब्बे से भरा हुआ चाँद ,

वसन से झांकता हुआ बदन

पेट ,पीठ में कर रहा गमन ,

रुपया ,दो रुपया के लिए

गिड़गिडाता हुआ बच्चा -फकीर ,

मौसम की मार से बचने के लिए

ढूँढ रहा है अपने लिए आसरा 

सड़क के आजू -बाजू ,

भूख से व्याकुल होता हाल

नैवेद्य की आस में बढ़ता पात्र ।

ये है सुनहरा चमन

वाह रे मेरा प्यारा वतन ।

अपने स्वार्थ में होकर अँधा

क्या खूब  करा रहा भारत दर्शन ।

"जहां डाल -डाल पे सोने की

चिड़ियाँ करती रही बसेरा "

बसा नही क्यों फिर से

वो भारत देश अब मेरा ।
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जय हिंद 

शनिवार, 10 अप्रैल 2021

धरती की हूँ मैं धूल


धरती की हूँ मै धूल


गगन को कैसे चूम पाऊँगी


उड़ाये जितनी भी आंधियाँ


तो भी आकाश  छू पाऊंगी


 जुड़ी हुई हूँ मै  जमीन से


किस तरह यह नाता तोडू ,


अम्बर की चाहत में बतला


किस तरह यह दामन छोड़ू 
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सोमवार, 5 अप्रैल 2021

खट्टे- मीठे एहसास

उस पर ऐतबार रहा
वो ही मददगार रहा
इंसान की जात से तो
दिल बस बेजार  रहा । 

🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻

सुनाने वाला सुना देता है
सुनने वाला सुन लेता है
फिजूल की बातों पर
वक्त ही शहीद होता है । 
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खुद के जीने के लिए यू  तो कभी सोचा ही नही
ख्वाहिश खुली हवा की हुई न हो ऐसा भी नहीं  । 


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ठिकाने बदलते रहे
रिश्तें बदलते रहे
कल से नाता तोड़ कर
आज से बंधते रहे। 

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कितने घर बदले 
कितने शहर बदले
फिर भी सोच वही थी
लोग नही बदले।

🌖🌖🌖🌖🌖🌖🌖🌖🌖🌖🌖 

मौसम अपने मुताबिक थे
फिर भी रास नहीं आये
मन के अच्छे होने से ही
मन को रास सभी आये  । 

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ज्यादा की मांग जिंदगी को तबाह कर देती हैं
नाउम्मीदी आदमी को निराश कर देती हैं
अमीरी के कब्र पर पनपी गरीबी की घास
जिंदगी का जीना दुश्वार कर देती हैं  । 

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शनिवार, 3 अप्रैल 2021

छोटी छोटी दो रचना


नींव की पुनरावृति कर 
खंडहर क्यो बुलंद करते हो ?
जर्जर हो गये जो ख्याल 
उनमे हौसला कहाँ जड़ पाओगे , 
अतीत को वर्तमान सा न बनाओ 
टूटे मन को कहाँ जोड़ पाओगे   । 

⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐⭐

दर्द से दर्द का श्रृंगार नहीं होता
दर्द से किसी को प्यार नहीं होता
दर्द का कोई व्यापार नही होता
दर्द का कोई साहूकार नही होता 
दर्द का दर्द ही आप साथी हैं
दर्द से किसी को सरोकार नही होता। 



गुरुवार, 1 अप्रैल 2021

कुछ दिल ने कहा

अच्छे को अच्छे बोल देने मे क्या बुराई है
अच्छाई से आखिर हमारी क्या  लड़ाई है
ये तो हर दिल को अजीज होती हैं
इसमें ये क्या देखना अपनी है या पराई है । 
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जिस बात के लिए 
बहुत सोचना पड़ता है
उस बात को फिर 
पीछे छोड़ना पड़ता है  । 
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दिमाग वालों से यहाँ 
कौन भिड़ता है
वेबकूफ़ों से ही तो
हर कोई लड़ता है। 
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सच ही कभी कभी 
हमें स्वीकार नहीं होता
आँखों देखे पर भी
 हमें विश्वास नहीं होता। 
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हर कोई बैठा है इसी इंतजार में
कब सब अच्छा होगा इस संसार में  । 
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वक़्त की मांगे करवटें लेती रहती हैं
उम्मीदें बहुत कुछ बदल देती हैं 
आगाज से बहुत अलग अंजाम होता है
अंत में सब लकीरों के नाम होता है  ।