बचपन इन बातों से हटकर अपनी उम्र गुजारे जब हम बच्चे थे , तब हमें बस उतना ही पता होता था , जितना हमें किताबो में समझाया या पढाया जाता था या जो हमारे बड़े समझाते थे , कि झूठ मत बोलो , चोरी न करो , बड़ो का आदर करो , गुरुजनों का सम्मान करो , इत्यादि इत्यादि । शिष्टाचार की इन बातों के अलावा हमारे समक्ष जिंदगी जीने के लिए कोई ऐसी शर्त नही होती थी जो हमारी स्वछंदता पर आरी चलाये , विचारो को कुंठित करे तथा मन को बांधे । अपने हक के साथ , मर्जी को पकड़ बढ़ते रहें , जीते रहें । न धर्म की समझ , न जाति की परख , जिसका टिफिन अच्छा लगा खा लिया , जो मन को भाया उसे दोस्त बना लिया , हर भेद - भाव से अन्जान , तहजीब किस चिड़िया का नाम है ये भी खबर नही रही । इतना कौन सोचता रहा भला । दिमाग को भी आराम रहा उस वक़्त , बेवजह कसरत समय - असमय पर नही करनी पड़ती रही , जो स...