सोमवार, 19 अप्रैल 2010

आभार



ब्लोगिंग का एक साल


कल भी ,कभी कल हो जाएगा


अपने कदमो के निशां छोड़ जाएगा


एक अद्भुत और अनोखी दुनिया ,जो मेरी कल्पना से बहुत परे रही ,जो एक सौगात स्वरुप मुझे मिली इस जगत से जोड़ने का श्रेय मेरी परम मित्र वंदना अवस्थी दुबे को जाता ,जिसने स्नेह एवं अधिकार के साथ इस जहां में मेरी जगह बनाई ,जहाँ मुझे अच्छे -अच्छे मित्र मिले ,तथा उनके बीच मेरी पहचान भी कायम हुई

इस खुशबू भरे गुलिस्ता में जीवन महक उठा इस जादू भरे पिटारे को जितनी बार खोली ,उतनी दफे ही कुछ नया कुछ अनमोल खज़ाना पाया ,जो इस जीवन को सार्थक करता रहा ,इसका हौसला बढ़ाता रहा

कुछ लोग हमेशा मेरे हित में अपनी सलाह देते रहे ,इस अपनेपन से मुझे बेहद ख़ुशी होती रही ,कुछ ब्लोगर बन्धु मेरी तबियत की फ़िक्र लिए बराबर हालचाल पूछते रहे ,आखिर यहाँ कोई ना उम्मीद कैसे हो सकता है जहाँ अपनत्व स्नेह का दरिया है कुछ साथी बराबर साथ बने रहे उनकी मैं आभारी हूँ और हार्दिक रूप से धन्यवाद करती हूँ


सबसे ज्यादा वंदना अवस्थी दुबे का शुक्रियां करती हूँ जिसका ये अहसान किसी कीमत पर नही उतारा जा सकता ,उसके बगैर ये असंभव रहा ,वो होती तो मैं आज आप सभी के बीच नही होती ,वो गुणी तो है ही साथ में एक बेहतर इंसान भी है ,मेरा ये सौभाग्य है कि वो मेरी अजीज़ मित्र ,राजदार ,सलाहकार और पड़ोसी है ,ये वजूद मेरा जिन्दा उसकी वज़ह से है ,इसलिए उसके आभार को प्रगट करने के लिए मेरे पास शब्द नही सिर्फ अहसानमंद हूँ

शायद कुछ फैसले तकदीर हमारे लिए पहले ही तय कर देती है मगर इल्म इसका नही होने देती ,इंसान का इंसान पे एतबार बना रहा ,नेकी से नाता टूटे इस खातिर जरिया भी इंसान को ही बनाती है ,इसी वजह से मानवता कायम है ,इतने संघर्षो के बावजूद भी

और ब्लॉग जगत भी एक ऐसा ही आधार है या यूं कहे शायद इसी कारण से इसे बनाया गया जहाँ व्यक्ति एक दूसरे की भावनाओ को समझे एवं मन को हल्का कर सके


भारी व्यस्तता में भी लोग आपस में खोज खबर लेते रहते है और दर्द को सँभालते है जिससे इंसानियत से अटूट रिश्ता बन पड़ता है

एक वर्ष पूरे होने पर मैं अपने इस अद्भुत अहसास के लिए आप सब की आभारी हूँ ,इस सफ़र में बराबर सहयोग साथ बनाये रखने के लिए एक दफे फिर से धन्यवाद


जगमगाती ज्योति हरदम ज्यो की त्यों कायम रहे

हर पल आशाओ के दीप सब दिल में रौशन रहे


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यह उज्जवल गंगा की धार

करे नैनो का सपना साकार

शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

आशा -किरण

फिर सुबह होगी ,

फिर प्रकाश फैलेगा ,

फिर कोई नए ख्वाब का

दिन सुनहरा होगा ।

फिर पलकों पे सपने सजेंगे ,

उन सपनो में अरमान पलेंगे ,

उम्मीदों के दामन थामे ,

सारी रात जगेंगे ।

मन न कर तू छोटा

ख़ुद से कहते रहेंगे ,

स्वप्न कहाँ होते है पूरे

पर तेरे पूरे होंगे ।

आशाओ को थाम जकड़ के

सारी उम्र रटेंगे ,

हम भी अन्तिम साँसों तक ,

अपने ख्वाब बुनेंगे ।

मिथ्या आसो से बंधकर

सपनो से वादे होंगे ,

अनजाने में ही सही

कभी उम्मीद तो पूरे होंगे ।

पंखहीन होकर भी हम

आशाओ के उड़ान भरेंगे ,

कुछ ख्वाब हमारे ऐसे ही

ठहर कर पूरे होंगे ।

निराश न कर तू मन

कुछ ऐसे वक्त भी होंगे ।

ज़िन्दगी इतनी आसानी से

देती कहाँ सभी कुछ ,

संघर्षो के बिना है होता

हासिल कहाँ हमें कुछ ।

भाग्य रेखाओ को झुठलाते

आगे बढ़ते जायेंगे ,

रेखाओ के खेल है

बनते -मिटते रहते है ,

हर नए दिन जो आते है ,

उम्मीद लिए ढलते है ।

वादे तो ख्वाबो में पलते है ,

ये सिलसिले यूही चलेंगे ।

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सोमवार, 12 अप्रैल 2010

अस्तित्व .....



धरती की मैं हूँ धूल


गगन को कैसे चूम पाऊं ,


उड़ाये जो हमें आंधियाँ


तो भी आकाश छू पाऊं ,


मैं जुड़ी हुई जमीन से


किस तरह यह नाता तोडू ,


अम्बर की चाहत में बतला


किस तरह यह दामन छोड़ू

गुरुवार, 8 अप्रैल 2010

आप ही है ......

बदला हुआ सुर देखकर

हैरान इस कदर होइये ,

अपने कैसे हो जाते पराये

अब और साबित मत कीजिये

दिल की नज़रो से नही

दिमाग की नजरो से देखिये

यहाँ जो दिखता है वो बिकता है

गूंगे को अब कोई ,साधू नही समझता है

बात अपनी मनवाना , है जो जनाब

घूमा फिरा के नही ,सीधे -सीधे बोलिये

अब ज़माना किसी को दोष देने का नही

आप ही है जगन्नाथ ,बस यही समझ लीजिये

सोमवार, 5 अप्रैल 2010

कुछ बाते ....



सारी रात गुजर गई


लेकर तेरी याद ,


नीँद बेवफा हो गई


देकर तेरा साथ


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जिंदगी यू ही गुजरती है


दर्द के पनाहों में ,


क्षण -क्षण रह गुजर करते है


पले कांटो भरी राहो में


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सुख -दुख के मधुर साजो पर


एक गीत लब्ज गुनगुनाती है ,


एक नई रचना साथ लिए


कागज़ पे कलम ठहर जाती है


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उदासी आँख से हटाओ


हकीक़त में तुम आओ ,


बड़ी बेवफा है ये दुनिया


गमे-राह में भी मुस्कुराओ


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पानी के बहने से पत्थर घिस जाते है


जिंदगानी छूट जाने से लोग भूल जाते है ,


यादो की गिरफ्त इतनी मजबूत होती है


फिर भी यादो को लोग पत्थर सा बना जाते है


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एक बार फिर मैं अपने स्कूल के टाइम की लिखी रचना डाल रही