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मार्च, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ओस ...

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ओस की एक बूँद नन्ही सी चमकती हुई अस्थाई क्षणिक रात भर की मेहमान ___ जो सूरज के आने की प्रतीक्षा कतई नही करती , चाँद से रूकने की जिद्द करती है , क्योंकि दूधिया रात मे उसका वजूद जिन्दा रहता है , सूरज की तपिश उसके अस्तित्व को जला देती है ।

मनुष्य जीवन ......

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जीवन की अवधि और दुर्दशा चीटी की भांति होती जा रही है , कब मसल जाये कब कुचल जाये , कब बीच कतार से अलग होकर अपनो से जुदा हो जाये । भयभीत हूँ सहमी हूँ मनुष्य जीवन आखिर अभिशप्त क्यों हो रहा ? कही हमारे कोसने का दुष्परिणाम तो नही या कर्मो का फल ?

कथा सार

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कितने सुलझे फिर भी उलझे , जीवन के पन्नो में शब्दों जैसे बिखरे । जोड़ रहे जज्बातों को तोड़ रहे संवेदनाएं , अपनी कथा का सार हम ही नही खोज पाये । पहले पृष्ठ की भूमिका में बंधे हुए है , अब भी , अंत का हल लिए हुए आधे में है अटके । और तलाश में भटक रहे अंत भला हो जाये , लगे हुए पुरजोर प्रयत्न में यह कथा मोड़ पे लाये ।

एक दूजे का साथ जरूरी है ........

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महिलाओ को एक दूजे का साथ जरूरी है , हक -सम्मान का आपस में लेन - देन जरूरी है । तभी मिटेगी किस्मत की अँधेरी तस्वीर , धो देगा मन के सभी मैल संगम धारा का नीर । फूट पड़ेगी धारा प्रीत की रीत से , बदल देगी हर तस्वीर संगठन की जीत से । हर राह सुलभ हो जायेगी एकता की जंजीर से , अरमानो के फूल खिलेंगे सुखे हुए हर पेड़ से । नारी से बेहतर नारी को कौन समझ पायेगा मिल जायेगी जहां ये शक्तियां फिर कौन हरा पायेगा ? ............................................ महिला दिवस की सबको बधाई इन पंक्तियों के साथ एक पल ठहरे जहां जग हो अभय खोज करती हूँ उसी आधार की ।

शिकवा

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उम्र गुज़र जाती है सबकी लिए एक ही बात , सबको देते जाते है हम आँचल भर सौगात , फिर भी खाली होता है क्यो अपने में आज ? रिक्त रहा जीवन का पन्ना जाने क्या है राज ? रहस्य भरा कैसा अद्भुत होता है , क्यो अहसास ? रोमांचक किस्से सा अनुभव इस लेन-देन के साथ , गिले -शिकवे की अपूर्णता पे , घिरा रहा मन हर बार .