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औरत

औरत वो सवाल है वो जवाब है वो खूबसूरत सा खयाल है , वो आज है वो कल है हर समस्याओ का हल है , वो सहेली है वो पहेली है दुनिया की भीड़ में अकेली है । वो मोती है वो ज्योति है वो इस सृष्टि में अनोखी है । वो दर्द है वो मुस्कान है सुख-दुख में एक समान है । वो सांसो का बंधन है वो रिश्तों का संगम है । वो खुशबू है चंदन की वो रौनक है आंगन की । मत समझो केवल 'निर्भया' उसे पड़ी जरूरत तो वो अभया है ।

लेन -देन

पाना है तो देना है बात समझ ये लेना है । बात बराबर न हो तो बोझ न मन पर लेना है । तुम बेहतर हो ,कहकर मन को समझा लेना है । मौका कहाँ ये सबको मिलता बस इतना जान  लेना है । रब तुम पर है मेहरबान इस बात पर खुश हो लेना है । पाना है तो देना है बात समझ ये लेना है ।

कल उतना ही सुंदर हो......

कल उतना ही सुंदर हो जितना बचपन मेरा था । न जवाबों की जरूरत थी न सवालों का डेरा था । न मजहब का झगड़ा था न तेरा न मेरा था , जात-पांत का भेद न जाना मन से मन का फेरा था । जो कहता मन मेरा था वह करता मन मेरा था , मुक्त गगन के निचले तल पर स्वतंत्र स्वछंद बसेरा था । भावनाओं से बंधा हुआ जीवन स्वप्न सुनहरा था , हर रात सुकून भरी होती हर दिन नया सवेरा था । गुरुओं का आशीर्वाद लिए सद्ज्ञान का लगता फेरा था , नित अनुशासन में बंधा हुआ विद्यार्थी जीवन मेरा था । कल उतना ही सुंदर हो जितना बचपन मेरा था ।

सच का व्यापार

सच ही बोलती हूँ सच ही सुनती हूँ सच के लिए लड़ती हूँ सच के लिए सहती हूँ सच के व्यापार मे मुनाफा नही होता है बहुत अच्छी तरह से ये बात जानती हूँ , सच की कसौटी पर खड़ा उतरना आसान नही ये भी मानती हूँ , पर आदत से लाचार हूँ खुद को नहीं बदल सकती हूं , उसूलों की पक्की हूँ सच का साथ नहीं छोड़ सकती हूं , यही वजह है बनकर मसीहा । सूली पर लटकी हूँ मुद्दतों से हारकर भी हारी नही हूँ सुना है ,जीत हमेशा सच की होती है , शायद इसे मैं ,'साकार ' कर रही हूँ । सच के लिए लड़ रही हूं ।

आखिर ऐसा हुआ क्यो ?

सही ही गलत का है हकदार क्यों ? बेगुनाह को ही सजा हर बार क्यों ? गीता और कुरान का मान घटा क्यों ? सच जानते हुए भी झूठ चला क्यों ? यहाँ धर्म और ईमान डगमगाया क्यों ? यहाँ गलत करने का डर खत्म हुआ क्यों ? न्याय के आसरे फिर रहे कोई क्यों ? इंसाफ के लिए भटके इधर -उधर क्यों ? खून की जंग चल रही है क्यों ? खून का रंग बदल रहा है क्यो ? मानवता का इतिहास पलट गया क्यों ? सब कब कैसे बदल गया क्यों ? ऐसा होना तो नही चाहिये ,फिर हुआ क्यों ? यकीन को खोना तो नहीं चाहिए ,फिर खोया क्यों ? इतने मजबूर हालात है क्यो ? उलझे-उलझे सवाल है क्यो ? सही ही गलत का है हकदार क्यो ? बेगुनाह को ही सजा हर बार क्यो ?