कब किससे कैसे कहें अपनेदिलकीबात,
इन सारी बातों से हम सभी हुए आजाद ।
एक साथी ब्लौग है,दूजी कलम है पास
जीवन के हर रंग में एक दूजे के साथ
सारी दुनिया जोड़ के तनहा नहीं कोई आज
एक ही जाल को बुन रहा सुंदर सुखद समाज ।
यहाँ न किसी का शोर है और ना मन पे ज़ोर ,
खुले आकाश में उड़ रही आज पतंग निसोच ,
उस के रास्ते काटने आएगा नहीं कोई और ।
इन्द्र -धनुष के रंगों से हो रही मुलाक़ात ,
मंजिल के साथ ही मानो चल रहे सब आज .
गुरुवार, 30 अप्रैल 2009
मंगलवार, 28 अप्रैल 2009
कलम की जिद...
करने लगी कलम आज शोर
शब्दों को रही तोड़-मरोड़,
कुछ तो हंगामा करो यार,
अच्छा नहीं यूँ बैठे चुपचाप।
कागज़ पे तांडव हो आज,
लगे विचारों के साथ दौड़,
मच जाए आपस में होड़।
मचला है, ख्यालों में जोश ,
उसे नहीं कुछ और है होश।
ले के नई उमंगों का दौर,
करने लगी कलम आज शोर।
गुरुवार, 23 अप्रैल 2009
उम्मीद
समझौता भी आता है,
सम्हलना भी आता है।
ज़िन्दगी को जीने का
हल निकल आता है।
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गम को खुशहाल बना रही हूँ,
जख्मों को भरती जा रही हूँ।
चंद ख्वाहिशे अब भी है मेरे साथ ,
उनके लिए रास्ते तलाश रही हूँ.
रविवार, 19 अप्रैल 2009
शनिवार, 18 अप्रैल 2009
अहसास.........

धीरे-धीरे यह अहसास हो रहा है,
वो मुझसे अब कहीं दूर हो रहा है।
कल तक था जो मुझे सबसे अज़ीज़,
आज क्यों मेरा रकीब हो रहा है।
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इन्तहां हो रही है खामोशी की,
वफाओं पे शक होने लगा अब कहीं।
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जिंदगी है दोस्त हमारी,
कभी इससे दुश्मनी,
कभी है इससे यारी।
रूठने -मनाने के सिलसिले में,
हो गई कहीं और प्यारी ।
वो मुझसे अब कहीं दूर हो रहा है।
कल तक था जो मुझे सबसे अज़ीज़,
आज क्यों मेरा रकीब हो रहा है।
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इन्तहां हो रही है खामोशी की,
वफाओं पे शक होने लगा अब कहीं।
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जिंदगी है दोस्त हमारी,
कभी इससे दुश्मनी,
कभी है इससे यारी।
रूठने -मनाने के सिलसिले में,
हो गई कहीं और प्यारी ।
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इस इज़हार में इकरार
नज़रंदाज़ सा है कहीं,
थामते रह गए ज़रूरत को,
चाहत का नामोनिशान नहीं.
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