मंगलवार, 19 मार्च 2019

हमारे प्यारे त्यौहार


किसी भी त्यौहार की गरिमा को बनाये रखना जरूरी है ,क्योंकि ये त्यौहार हमारी सभ्यता और संस्कृति को दर्शाते है ,ये हमें अपनी मातृभूमि से जोड़कर रखते है ,आपसी बैर को मिटा कर दोस्ती का हाथ बढ़ाने के लिए प्रेरित करते है ,बुराई को नष्ट कर अच्छाई की राह पे ले जाते है ,त्यौहार हमारे जीवन को खुशहाल और रिश्तों को मजबूत बनाये रखने का जरिया है ,इसी की वजह से हमें दफ्तरों और विद्यालयों से ढेरो छुट्टियां मिलती है , जिससे व्यस्तता घटती है तथा खुशियों को बाटने का अवसर हाथ लगता है ,ये जीवन में उत्साह व उल्लास के रंग भरते है ,जिससे जीने का हौसला दुगुना हो जाता है ,भला सोचिये क्या किसी और देश की मिटटी इतनी रंग बिरंगी है ,जितनी हमारे भारत देश की ,त्यौहार जीने का आधार है ,तभी तो हमें इससे प्यार है ,इसलिए हम सभी भारत वासियों की जिम्मेदारी बनती है कि इन त्योहारों की रौनक को बरकरार रखे ,इसके महत्व को कम न होने दे ,कितनी ही महंगाई क्यों न हो पकवानों को चखने का मौका इन्ही अवसरों पर मिलता है ,नूतन परिधान लेने का मौका हाथ लगता है ,घरो की सफाई भी हो जाती है इसी बहाने ,कितने फायदे है इनके होने से ,इनके स्वागत की तैयारी में ऐसे जुट जाते हम लोग ,कि परेशानी क्या होती है कुछ समय के लिए भूल जाते है ,सोचिये कितने प्यारे है अपने त्यौहार ,कुछ मीठा हो जाये की रस्म निभाते हुए आशीष ले और दे ,प्रेम से गले मिले और किसी प्रकार की कोई गन्दगी ना मचाये ताकि त्योहारों की पवित्रता बनी रहें ,यही निवेदन करती हूँ अपने देशवासियों से , रंग और गुलाल के साथ सभी को होली की शुभकामनाये ।

सोमवार, 18 मार्च 2019

न्याय का हिसाब

जब जब मुझे छोटा बनाया गया
मेरे तजुर्बे के कद को बढ़ाया गया

जब जब हँसकर दर्द सहा
तब तब और आजमाया गया ,

समझने के वक्त समझाया गया
क्या से क्या यहां बनाया गया ,

न्याय का भी अजीब हिसाब रहा
गलत को ही सही बताया गया ।

ज्योति सिंह

शुक्रवार, 15 मार्च 2019

खोज करती हूं उसी आधार की

फूँक दे जो प्राण में उत्तेजना

गुण न वह इस बांसुरी की तान में ,

जो चकित करके कंपा डाले हृदय

वह कला पायी न मैंने गान में ।

जिस व्यथा से रो रहा आकाश यह

ओस के आंसू बहा के फूल में ।

ढूंढती इसकी दवा मेरी कला

विश्व वैभव की चिता की धूल में ।

डोलती असहाय मेरी कल्पना

कब्र में सोये हुओ के ध्यान में ।

खंडहरों में बैठ भरती सिसकियाँ

विरहणी कविता सदा सुनसान में ।

देख क्षण -क्षण में सहमती हूँ अरे !

व्यापिनी क्षणभंगुरता संसार की ।

एक पल ठहरे जहाँ जग हो अभय

खोज करती हूँ उसी आधार की । 

_________________________
ये रचना उन दिनों की है जब उच्चमाध्मिकस्तर में अध्यन करते हुए ,हमारी मित्र मंडली के ऊपर लिखने का जूनून सवार था ,हम सभी खूब लिखते रहे ,हमारी रचनाएँ किताबो में भी छपती रही ।

गुरुवार, 14 मार्च 2019

मिट्टी की आशा ....

सब चीजों को हमने
बस ,पाने का मन बनाया ,

जब हाथ नही वो आया
तो मन दुख से भर आया ।

जीतकर दुनिया भी सिकंदर
कुछ नही यहां भोग पाया ,

हुकूमत की लालसा में उसने
बस लाशों का ढेर लगाया ।

बहुत ज्यादा की आस में उसने
खुद को सिर्फ भटकाया ,

क्षण भर को आराम न मिला
ले डूबी उसे मोहमाया ।

मिट्टी की ही आशा है
मिट्टी की ही है काया ,

फिर क्यों जरूरत से ज्यादा
है, तूने लालच जगाया ।

मिले जितना उतने में ही
आनंद जिसने भरपूर उठाया ,

सुख मिला जीवन का उसी को
मेहनत से जिसने कमाया ।

ज्योति सिंह

रविवार, 10 मार्च 2019

आदमी


शीर्षक  --आदमी

मुनाफे के लिए आदमी 
व्यापार बदलता है,

खुशियों के लिए आदमी
व्यवहार बदलता है ,

ज़िन्दगी के लिए आदमी 
रफ्तार बदलता है ,

देश के लिये आदमी 
सरकार बदलता है ,

तरक्की के लिए आदमी 
ऐतबार बदलता है,

दुनिया के लिए आदमी 
किरदार बदलता है ।

और इसी तरह
बदलते बदलते

एक रोज यही आदमी 
ये संसार  बदलता है 

शुक्रवार, 8 मार्च 2019

तुम बस अपनी ही कहते हो

तुम  बस अपनी ही कहते हो

औरो की कब सुनते हो ?

औरो की जब सुनोगे

बात तभी तो समझोगे ।

न्याय एक पक्ष का नही

दोनों पक्षों का होता है ,

उसे तो तानाशाही कहते है

जहाँ कोई अपनी मनमानी करता है ।

कुछ कहने से पहले ही

सबको चुप करा देते हो ,

अपनी कमियों को तुम

चिल्ला कर दबा देते हो

तुम क्या जानो बात तुम्हारी

सब पर क्या असर छोड़ जाती है ,

पत्थरों से कौन टकराये __

कह कर सिर अपना बचाती है ।

गुरुवार, 7 मार्च 2019

मै दुर्गा बनकर आऊँगी ......

तुम्हारे सभी फैसलों पर मै 
मोहर लगाती जा रही हूं ,
नारी हूँ ,इसलिए सभी
नारी धर्म निभा रही हूं ,
ये अलग बात है
सोचती हूँ मै
ईसा की तरह ,
तभी नादान समझकर
माफ करती जा रही हूँ ,
पर इस भरम में न रहना किं
मै सूली पर भी चढ़ जाऊँगी ,
तुम्हारे जुर्म के आगे
मै अपना सर झुकाऊँगी ।
जब तक तुम हद मे हो
मै साथ चलती जा रही हूं ,
जिस दिन तुम महिषासुर बने
मै दुर्गा बनकर आऊँगी
मै दुर्गा बनकर आऊँगी  ।

मै औरत ही बनकर रह गई ____

जिसके  लिये भी अच्छा सोचा
उसी के लिए बुरी बन गई ,

छोड़ दे सारी दुनिया की फिक्र
मन ने कहा ,पर आदत वही रह गई ।

हंगामा करना भाता न था
तभी चुप रहकर सब सह गई ,

औरों को ही हमेशा देती रही
मैं कैसे मांगू ?ये सोचती ही रह गई ।

मर्यादा में बंधी रह गई
लाज को ओढ़े रह गई ,

संस्कार मिले थे चुप रहने के
तो सही होकर भी गलत समझी गई ।

लोगों को भरम था मैं खुश हूं
दर्द की नुमाईश जो की नही गई ,

सारी जिम्मेदारी कंधो पर धर कर
सब भूल की सजा भी मुझे दे दी गई ।

मै औरत हूँ या फिर कुछ और
जो सबकी उम्मीदे मुझसे जुड़ गई ,

मै भी जीना चाहती थी इंसान बनकर
पर मै औरत ही बनकर रह गई ।

बचपन की तस्वीरे

काव्यांजलि

बीते दिनो की हर बात निराली लगती है
बचपन की हर तस्वीर सुहानी लगती है .

पहली बारिश की बूंदो मे
मिलकर खूब नहाते थे ,
ढेरो ओले के टुकड़ों को
बीन बीन कर लाते थे .

इन बातो मे शैतानी जरूर झलकती है
बचपन की हर तस्वीर सुहानी लगती हैै .

सावन के आते ही पेड़ो पर
झूले पड़ जाते थे ,
बारिश के  पानी मे बच्चे
कागज की नाव बहाते थे ,

बिना सवारी  की वो नाव भी अच्छी लगती है
बचपन की हर तस्वीर सुहानी लगती है ।

पल में रूठना पल में मान  जाना
बात बात में मुँह का फूल जाना ,
जिद्द में अपनी बात मनवाना
हक से सारा सामान जुटाना ,

खट्टी मीठी बातों की हर याद प्यारी लगती है
बचपन की हर तस्वीर सुहानी लगती है ।

कच्ची मिट्टी की काया थी
मन मे लोभ न माया थी ,
स्नेह की बहती धारा थी
सर पर आशीषों की छाया थी ,

चिंता रहित बहुत ही मासूम सी जिंदगी लगती है
बचपन की हर तस्वीर सुहानी लगती है।