मंगलवार, 29 दिसंबर 2020
ये चाँद उतर कर जमीं पर तो आ..
गुरुवार, 24 दिसंबर 2020
ईसा मसीह
शनिवार, 4 जुलाई 2020
ख्वाब
मंगलवार, 30 जून 2020
संगत ........
स्वाती की बूँद का
निश्छल निर्मल रूप ,
पर जिस संगत में
समा गई
ढल गई उसी अनुरूप ।
केले की अंजलि में
रही वही निर्मल बूँद ,
अंक में बैठी सीप के
किया धारण
मोती का रूप ,
और गई ज्यो
संपर्क में सर्प के
हो गई विष स्वरुप ।
मनुष्य आचरण जन्म से
कदापि , होता नही कुरूप ,
ढलता जिस साँचे में
बनता उसका प्रतिरूप ।
शनिवार, 27 जून 2020
मानवता का स्वप्न
मानवता का स्वप्न
कैसा दुर्भाग्य ? तेरा भाग्य
सर्वोदय की कल्पना ,
बुनता हुआ विचार,
स्वर्णिम कल्पना को आकार देता ,
खंडित करता , फिर
उधेड़ देता लोगों का विश्वास ,
नवोदय का आधार
फिर भी आंखों में अन्धकार ।
इच्छाओं की साँस का
घोटता हुआ दम ,
अन्तः मन का द्वंद प्रतिक्षण ।
भाव - विह्वल हो कांपता ,
अकुलाता भ्रमित - स्पर्श ,
टूट कर भी निःशब्द ,
मानवता का 'स्वप्न '
बुधवार, 24 जून 2020
शिल्प-जतन
नीव उठाते वक़्त ही
कुछ पत्थर थे कम ,
तभी हिलने लगा
निर्मित स्वप्न निकेतन ।
उभर उठी दरारे भी व
बिखर गये कण -कण ,
लगी कांपने खिड़की
सुनकर भू -कंपन ,
दरवाजे भी सहम गये
थाम कर फिर धड़कन ।
टूट रहे थे धीरे धीरे
सारे गठबंधन
आस और विश्वास का
घुटने लगा दम
जरा सी चूक में
लगे टूटने सब बंधन ,
शिल्पी यदि जतन करता ,
लगाता स्नेह और
समानता का गारा ,
तब दीवारे भी बच जाती
दरकने से
छत भी बच जाती
चटकने से और
आंगन सूना न होता
संभल जाता ये भवन ।
सोमवार, 22 जून 2020
कुछ बूंदे कुछ फुहार
______________________________
कुछ बूंदे कुछ फुआर
तफसीर जब बेबसी का हुआ
त्यों ही मुलाकात आंसुओ ने किया ,
आगाज़ होते किस्से गमे-तफसील के साथ
पहले उसके अश्को ने गला रुंधा दिया ।
_______________________________
जिसके चेहरे पे थी हँसी ,
वो भी थे उदासी का सबब लिए हुए ।
कौन कहता है कमबख्त ,
है गम नही सबको घेरे हुए ।
_______________________
छेड़कर ज़िक्र तो करो
रखकर दुखती - रग पर हाथ ,
जख्म उभरता नही फिर कैसे
सोये हुए दर्द के साथ ।
________________________
उकता गए ज़िन्दगी तेरी सज़ा से ,
अब तो इस क़ैद से रिहा कर दे ।
_______________________
तलाशे कहाँ सुकून ऐसी जगह बता दे ,
बेवज़ह दर्द बढ़ाने की अब जगह न दे ।
___________________________
गुरुवार, 18 जून 2020
ख्वाहिशों को रास्ता दूँ
आज सोचा चलो अपनी
ख्वाहिशो को रास्ता दूँ ,
राहो से पत्थर हटाकर
उसे अपनी मंजिल छूने दूँ ,
मगर कुछ ही दूर पर
सामने पर्वत खड़ा था
अपनी जिद्द लिए अड़ा था ,
उसका दिल कहाँ पिघलता
वो मुझ जैसा इंसान नही था ,
स्वप्न उसकी निष्ठुरता पर
खिलखिलाकर हँस पड़े ,
हो बेजान , अहसास क्या समझोगे
हद क्या है जूनून की ,कैसे जानोगे ?
आज न सही कल पार कर जायेंगे
उड़ान भर कर आगे निकल जायेंगे ।
रविवार, 14 जून 2020
खामोशी
खड़ी खड़ी मैं देख रही
मीलों लम्बी खामोशी ।
नहीं रही अब इस शहर में
पहले जैसी हलचल सी
खामोशी का अफसाना ,क्यों
ये वक़्त लगा है लिखने
जख्मों से हरा भरा ,क्यों
ये शहर लगा है दिखने
देकर कोई आवाज कही से
तोड़ो ये गहरी खामोशी
बेहतर लगती नही कही से
गलियों में फिरती खामोशी ।
गुरुवार, 11 जून 2020
पत्थरों का स्रोत
पत्थरों का ये स्रोत ..
क्या लिखूं
क्या कहूं ?
असमंजस में हूँ ,
सिर्फ मौन होकर
निहार रही
बड़े गौर से
पत्थर के
छोटे -छोटे टुकड़े ,
जो तुमने
बिखेर दिये है
मेरे चारो तरफ ,
और सोच रही हूँ
कैसे बीनूँ इनको ?
एक लम्बा पथ तुम्हे
बुहार कर
दिया था ,मैंने
और तुमने उसे
जाम कर दिया
कंकड़ पत्थर से ।
पर यहाँ
सहनशीलता है
कर्मठता है
और है
इन्तजार करने की शक्ति ,
ठीक है ,
तुम बिखेरो
हम हटाये ,
आखिर कभी तो
हार जाओगे ,
और बिखरे पत्थर
सहेजने आओगे ,
और खत्म होगा
पत्थरों का
ये स्रोत ।
""''""""""""""""""""""""
मौन होकर निहार रही हूँ
तेरे बिखेरे पत्थरों को ...
मैं तो फिर भी चल लुंगी
कभी जो चुभ जाये तेरे ही पैरों में
पुकार लेना ....
शायद तुम वो दर्द
सहन न कर पाओ
चाँद सिसकता रहा
चाँद सिसकता रहा
शमा जलती रही ,
खामोशी को तोड़ता हुआ
दर्द कराहता रहा ,
और फ़साना उंगुलियां
कलम से दोहराती रही ,
आँखों के अश्क में
शब्द सभी नहाते रहे ,
रात के अँधेरे में
ख्याल लड़खड़ाते रहे ,
एक लम्बी आह में
शब्द एकदम से ठहर गए ,
उंगुलियां बेजान हो
साथ कलम का छोड़ गई ,
दर्द से लिपट
असहाय बनी रही ,
और लिखे क्या
बात लिखने की रही नहीं ,
इस तरह फ़साने गढे नहीं
रह गये अधूरे कही ,
शून्य सा समा बाँध
चाँद भी बेबस रहा ।
चाँद सिसकता रहा ....
बुधवार, 10 जून 2020
वक्त की शरारत
जाते हुए वक़्त को
रोककर मैंने पूछा
जो छोड़ कर जाते हो
उसकी वजह भी
देते जाओ
वो बहुत ही
जल्दी में था
आदतन टालकर
कल पर छोड़ कर
' मिलियन डॉलर स्माइल '
देते हुए
रफूचक्कर हो गया ,
और मुझे
सवालों के साथ
अकेला
वही छोड़ गया ।
शुक्रवार, 5 जून 2020
सहेली के सालगिरह पर ..........
मैं तुम्हारी वही
बचपन वाली सहेली हूँ
कभी कही कभी अनकही
कभी सुलझी कभी अनसुलझी सी पहेली हूँ
पर जैसी भी हूँ ,तुम्हारी सच्ची सहेली हूँ ,
वही अधिकार वही प्यार लिए
वही विश्वास वही साथ लिये
साथ तो नही हूँ तुम्हारे
पर फिर भी नही अकेली हूँ
पर जैसी भी हूँ ,तुम्हारी सच्ची सहेली हूँ ,
उम्र में बड़ी हो गई हूँ
पर अब भी छोटी हो जाती हूँ
जब भी तुम संग बातें करती हूं
बचपन को जी जाती हूँ ,
गुड्डे-गुड़ियों वाली बन जाती सहेली हूँ
पर जैसी भी हूँ तुम्हारी सच्ची सहेली हूँ ,
खट्टी -मीठी यादों वाली
कट्टी-बट्टी बातों वाली
छोटी -छोटी इच्छा रखने वाली
छोटे -छोटे सपने बुनने वाली
अहसासों से बंधी हुई कल वाली सहेली हूँ
मैं बहुत हीअलबेली हूँ
पर जैसी भी हूँ ,तुम्हारी सच्ची सहेली हूँ ।
""""""""""""""""""""""""""""""""""
सखी तुम्हारे सालगिरह पर
क्या दूँ मैं उपहार
हालात ही नही है ऐसे जो
भेज सकूँ कुछ पास
पर ये कैसे हो सकता है
आज न दूँ कुछ उपहार
इसीलिए मैं दे रही
शब्दों का उपहार
इसमे बचपन की यादें है
ढेर सारी दुआएं है
और बहुत सा प्यार
बड़े प्रेम के साथ इसे
कर लेना तुम स्वीकार
सालगिरह की दूँ बधाई
मै तुम्हे बारम्बार ।
बुधवार, 3 जून 2020
बाजी ......
पहली रात की बिल्ली
मारना किसे चाहिए
मार कौन रहा था ?
सारे उम्र की बाजी
एक पल में वो
लगा रहा था
पलड़े का भार
कही दिशा न बदल दे
इस डर से
सभी बाँटे
अपने पलड़े पर
जल्दी जल्दी
चढ़ा रहा था
और कांटे की नोंक को
असंतुलित कर
अपनी ही ओर
झुकाते जा रहा था
शायद वक्त ही उससे
ये करवा रहा था
और वक्त ही
उसकी हरकतों पर
मंद -मंद
मुस्कुरा रहा था ।
सोमवार, 1 जून 2020
मनुष्य जीवन आखिर अभिशप्त क्यो ..........
जीवन की अवधि
एवं दुर्दशा
चींटी की भांति
होती जा रही है
कब मसल जाये
कब कुचल जाये
कब बीच कतार से
अलग होकर
अपनो से जुदा हो जाये ,
भयभीत हूँ
सहमी हूँ
चिंतित हूँ
मनुष्य जीवन आखिर
अभिशप्त क्यो हो रहा है ?
कही हमारे कोसने का
दुष्परिणाम तो नहीं
या फिर
कर्मो का फल ?
रविवार, 31 मई 2020
मनोवृत्ति
सुबह-सुबह का वक्त
दरवाजे के बाहर
खड़ा एक शख्स
बड़ी तेज आवाज में
चिल्लाया
क्या कोई है भाई
आवाज सुन भीतर से
एक सभ्य महिला
निकल आई
देख भिखारी को
उसकी आंखें तमतमाई
तभी भिखारी ने कहा
दे दे कुछ माई
अल्लाह भला करेगा तेरा
दिल दुआएं देगा मेरा ,
पर इस बात से
उसके कानों पर
कहाँ जूं रेंग पाया ,
उसने अपने वफादार टॉमी को
तुरंत बुलाया
और
भिखारी के पीछे दौड़ाया
भिखारी झोला,कटोरा
हाथ में लिये दौड़ा
लेकिन कुत्ते टॉमी ने
उसे नही छोड़ा
अपने दांतों से दबोच कर
नोंचकर उसे
घायल कर आया ,
फिर भी मालिक ने
उसे पुचकारा ,सहलाया
दूध -बिस्किट खिलाया
और साथ ही समझाया
बेटा -आगे से ऐसे ही पेश आना
ताकि इन गंदे कीड़ो को
यहां आने पर
पड़े पछताना ।
-------------
शुक्रवार, 29 मई 2020
छोटी छोटी दो रचनाये
लौटकर कोई आये न आये
आवाज आती तो है
वापसी का पैगाम
उम्मीद जगाती तो है ,
दिन बदलता है सभी का
तुम्हारा भी बदलेगा
देकर जरा सी तसल्ली
उम्र बढ़ाती तो है ।
💐💐💐💐💐💐💐
लाख दाग हो
फिर भी
बेदाग ही
कहलाता है ,
ये चाँद
सबको
खूबसूरत ही
नजर आता है ।
**************
बुधवार, 27 मई 2020
आखिर कौन हो तुम ?
वक्त किसी के लिए
ठहरता नही
मगर तुम्हें उम्मीद है
कि वो ठहरेगा
सिर्फ और सिर्फ
तुम्हारे लिए
और इंतजार करेगा
तुम्हारा
बड़ी बेसब्री से कहीं ,
कोई अलभ्य
शख्सियत हो ?
जो रुख हवाओं का
मोड़ रहे हो
वर्ना आदमी दौड़कर
लाख कोशिशों के बाद भी
पकड़ नही पाया
वक्त को तां उम्र
और यहाँ बड़े इत्मीनान से
सुस्ता रहे हो तुम ,
आखिर कौन हो तुम ,?
सोमवार, 25 मई 2020
धीरे --धीरे.......
धीरे --धीरे ...
टूट रहे सारे रिश्ते
कल के धीरे- धीरे
जुड़ रहे सारे रिश्ते
आज के धीरे - धीरे ,
समय बदल गया
सोच बदल गई
मंजिल की सब
दिशा बदल गई ,
हम ढल रहा है अब
मै में धीरे -धीरे
साथ रहने वाले अब
कट रहे धीरे -धीरे ,
सबका अपना आसमान है
सबकी अपनी जमीन हो गईं ,
एक छत के नीचे रहने
वालों की अब कमी हो गई ,
रीत बदल रही
धीरे - धीरे
प्रीत बदल रही
धीरे - धीरे ।
शनिवार, 23 मई 2020
चल रही है पतवार ...
उम्र गुजर जाती है सबकी
लिए एक ही बात ,
सबको देते जाते है हम
आँचल भर सौगात ,
फिर भी खाली होता है
क्यों अपने मे आज ?
रिक्त रहा जीवन का पन्ना
जाने क्या है राज ?
बात बड़ी मामूली सी है
पर करती खड़ा फसाद ,
करके संबंधों को विच्छेदित
है बीच में उठाती दीवार
सवालों में उलझा हुआ
ये मानव संसार
गिले - शिकवे की अपूर्णता पर
घिरा रहा मन हर बार ।
रहस्य भरा कैसा अद्भुत
है मन का ये अहसास ,
रोमांचक किस्से सा अनुभव
इस लेन- देन के साथ ,
जीवन की नदियां मे
चल रही है पतवार ,
कभी मिल गया किनारा
कभी डूबे बीच मझधार ।
कभी मिल गया किनारा
कभी डूबे बीच मझधार ।
. .... ..................
ज्योति सिंह
शुक्रवार, 22 मई 2020
ओस
ओस की एक बूँद
नन्ही सी
चमकती हुई
अस्थाई क्षणिक
रात भर की मेहमान ___
जो सूरज के
आने की प्रतीक्षा
कतई नही करती ,
चाँद से रूकने की
जिद्द करती है ,
क्योंकि
दूधिया रात मे
उसका वजूद जिन्दा
रहता है ,
सूरज की तपिश
उसके अस्तित्व को
जला देती है ।
ज्योति सिंह
बुधवार, 20 मई 2020
कोशिश में हूँ
कोशिश में हूँ
बेहतर करने की
कोशिश में हूँ
बेहतर बनने की
कोशिश में हूँ
आगे बढ़ने की
कोशिश में हूँ
आगे चलने की
कोशिश करते रहने मे ही
उम्मीद बंधी है जीतने की
कोशिश ही हिम्मत देती है
मंजिल तक पहुंचने की ।
कोशिश है, जीवन में
खुशियों के रंग भरने की।
तभी जुटी हूँ,
इन तमाम कोशिशों को,
कामयाब करने की कोशिश में।
रविवार, 17 मई 2020
कुछ और नही जिंदगी बस ये प्यार है
प्यार देने का भी सलीका होता है
प्यार लेने का भी सलीका होता है,
जिंदगी में मुश्किलें कम तो नही
आसान करने का भी सलीका होता है ।
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
दर्दे ताल्लुकात पर मैंने
कोई सवाल नही किया,
इसका मतलब ये तो नही
मैने प्यार दर्द से ही किया ।
"""""""""""""""""""""""""""""""""""""
दिल सुनता रहा
दिल सहता रहा ,
सब्र का सिलसिला
यू ही चलता रहा ।
*******************
हर हाल में जीने को दिल ये तैयार है
कुछ और नही जिंदगी बस ये प्यार है ।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
शुक्रवार, 15 मई 2020
खट्टे-मीठे अहसास
जिंदगी इतनी आसानी से
देती कहाँ हमे कुछ ,
संघर्षों के बिना है होता
हासिल कहाँ हमे कुछ ।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
गम अजीज हो गया
खुशी को नकार के
उठा कर हार गए हम
जब नखरे बहार के ।
..............................
एक जीत नजर आती है
जीवन के इन हारों में
रात को रौशन कर देगी
कभी चांदनी अपने उजालों में ।
---------------------------------
सारी रात गुजर गई
लेकर तेरी याद
नींद बेवफा हो गई
देकर तेरा साथ ।
।।।।।।।।।।।।।।।।।।
बगैर शब्दों के जो हो जाये बयां
रिश्ता वही दिल को छू जाये यहां ।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
मंगलवार, 12 मई 2020
अच्छी नही .........
चुप्पी इतनी भी अच्छी नही
कि हम बोलना भूल जायें ,
नारजगी इतनी भी अच्छी नही
कि हम मनाना भूल जाये ,,
उदासी इतनी भी अच्छी नहीं
कि हम खुश होना भूल जाये ,
दूरियां इतनी भी अच्छी नहीं
कि हम साथ रहना भूल जायें ,
शिकायतें इतनी भी अच्छी नहीं
कि हम हक जताना भूल जाये ,
बातें ऐसी कोई भी अच्छी नहीं, मेरे यारों
कि हम क़दर करना भूल जायें ।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
सोमवार, 11 मई 2020
माँ .......
माँ एक ऐसा शब्द
जिस पर क्या बोलू ,क्या कहूँ ,क्या लिखूँ , सोच ही नही पाती हूँ मैं ,इसको परिभाषित करना आसान नहीं है मेरे लिए ,कोई भी शब्द कोई भी वाक्य सम्पूर्ण रूप से इसे परिभाषित नही कर पायेंगे ,उसे शत शत नमन करते हुए यही कहूंगी --माँ नही तो ये जहां नही ,माँ ही से जिंदा है भरोसा ,माँ ही से जिंदा है प्रेम ,माँ ही से जिंदा है ममता ,माँ ही से जिंदा है वात्सल्य ,माँ ही से जिंदा है आस ,माँ ही से जिंदा है त्याग ,माँ ही से जिंदा है अच्छाई ,माँ ही से जिंदा है नेकी ,माँ ही से जिंदा है इमान ,माँ ही से जिंदा है इंसानियत ,माँ ही है ईश्वर का स्वरूप ,माँ ही छाँव ,माँ ही धूप,माँ ही सुख माँ ही दुख ,माँ ही हिम्मत ,माँ ही ताकत ,माँ ही धीरज ,माँ ही जरूरत ,माँ ही सखा ,माँ ही गुरु ,माँ से ही शुरू हुआ जीवन ,माँ का ही दिया हुआ है जीवन ,माँ पर क्या लिखूं ,इस छोटे से शब्द ने रच दिया सारा संसार ,सबसे छोटे शब्द का ही सबसे बड़ा आकार ।
शनिवार, 9 मई 2020
ममतामयी माँ
ममतामयी माँ
सबकी माँ
जन्म से लेकर
अंतिम श्वास तक
जरूरत सबकी माँ
जीवन की हर
छोटी -छोटी बातों में
याद बहुत आती माँ
निश्छल ममता ,दया
करूणा की सूरत तुम माँ
निस्वार्थ सर्वस्व लुटाने वाली
त्याग की मूर्ती तुम माँ
मीठी लोरी से पलकों में
सुन्दर स्वप्न सजाती माँ
सहलाकर नर्म हाथो से
प्रेम का स्पर्श कराती माँ
तुम्हारे आँचल की छांव मे
सुख का जहां है माँ
सृष्टि की कल्पना ,है अधूरी
जो तुम नही हो माँ
अपनी फिक्र छोड़कर
सबकी फिक्र करने वाली माँ
बालो को कंघी से
सुलझाने वाली माँ
बड़े प्यार से निवाले को
मुंह में भरती माँ
उसके हाथों सा स्वाद
मिलेगा हमें कहाँ ,
बच्चो के हर सुख -दुख को
भांपने वाली माँ
कहे बिना ही मन के हर
भाव को पढ़ लेती माँ
सबकी चिन्ताओ को अपने
हृदय में समेटे माँ
जीवन के हर मोड़ पर
साथ निभाती माँ
जन्नत उसके चरणों में
है यहाँ बसा हुआ
ईश्वर का ही रूप है
दुनिया की हर माँ
हाथ जोड़कर ,शीश झुकाकर
हम करते नमन तुम्हें माँ ।
,,,,,,,
बुधवार, 6 मई 2020
जीत जायेंगे.......
बड़े बड़े जंग जीते है
ये भी जीत जायेंगे ,
मन मे रक्खे धीरज
मुश्किल से निकल जायेंगे ,
ये समय नही सियासी बातों का
ये समय है जीवन रक्षा का,
संभल कर जो कदम बढ़ायेंगे
मंजिल तक पहुंच जायेंगे ,
हारेंगे नही हम हराएंगे
कोरोना को मार भगायेंगे,
बनी रही जो दूरियां
हम ये जंग जीत जायेंगे ।
रविवार, 3 मई 2020
कहर कोरोना का
जिंदगी हादसों की शिकार हो गईं
चन्द रोज की यहां मेहमान हो गई।
न कोई आता है न कोई जाता है
सड़के कितनी सुनसान हो गई ।
सहमा -सहमा सा है हर एक मन
दूर रहने की शर्ते साथ हो गई ।
कोरोना का ढाया ऐसा कहर
आज की जिंदगी बर्बाद हो गई ।
कब पायेंगे निजात इस आफत से
यही फिक्र अब तो दिन रात हो गई ।
आया है जब से कोरोना दुनिया में
अरमानों की दुनिया राख हो गई ।
बुधवार, 29 अप्रैल 2020
दुर्लभ दाम्पत्य जीवन
दुर्लभ दाम्पत्य जीवन का अद्भुत संसार है
इनके जीवन के किस्सों में रंग भरे हजार है।
कभी इनके बीच
बेहद -बेहिसाब प्यार है ,
कभी इनके बीच
तू-तू मै-मै की तकरार है ,
कभी इनके बीच
दिल से किया गया इकरार है ,
कभी इनके बीच
गुस्से में किया गया इंकार है ,
कभी इनके बीच
अरमानों का अम्बार है ,
कभी इनके बीच
खुशियों की बहार है ,
कभी इनके बीच
गिले-शिकवों का भंडार है ,
कभी इनके बीच
ऐतबार ही ऐतबार है ,
कभी इनके बीच
उभर आती दरार है ,
कभी इनके बीच
वफ़ा का इजहार है ,
कभी इनके बीच
हल्की -फुल्की फुहार है ,
कभी इनके बीच
मैं की खड़ी दीवार है ,
कभी इनके बीच
हम से बंधा आधार है,
कभी इनके बीच
जिम्मेदारियों का भार है ,
कभी इनके बीच
रिश्तों का व्यापार है ,
कभी इनके बीच
जीत है व हार है ,
कभी इनके बीच
समझौते का व्यवहार है ,
कभी रकीब तो कभी ये यार है
अहसासों से बंधे हालातों के शिकार है ,
दुर्लभ दाम्पत्य जीवन का अद्भुत संसार है
इनके जीवन के किस्सों मे रंग भरे हजार है ।
सोमवार, 27 अप्रैल 2020
मन के मोती
आदमी, आदमी से आदमी का
पता पूछता है
खुदा का बंदा खुदा को
हर बन्दे में ढूँढता है ।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,
शैतानों के बीच रहकर
इंसानो का गुजारा नामुमकिन
दोनों में से किसी एक का
बदलना है मुमकिन ।
......................
सिलसिला बरकरार रहा
हर दौर का, हर दौर में
शामिल रहा कुछ न कुछ
हर दौर का, हर दौर में ।
--------------------
जोश में होश
गवा बैठते है
बात तभी हम
बिगाड़ बैठते है ।
💐💐💐💐💐💐💐💐
ज़िन्दगी में बहार है तो
उम्र भी दरकार है
जिंदगी यदि बेजार है तो
उम्र भी बेकार है ।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐
नमस्कार ,शुभ प्रभात मित्रों
रविवार, 26 अप्रैल 2020
आस का दीपक
पतन से पहले
अंत बुराई का
निश्चय ही होता है ,
तब आस का दीपक
हरदम ही जलता है
यही वजह है
अंश यहां
मानवता का जिंदा है ,
घायल तो है
जमीर यहाँ
पर वो शर्मिंदा है ।
बुधवार, 22 अप्रैल 2020
कुछ बात बड़ी होनी चाहिये
मुख़्तसर सी जिंदगी मे
कुछ बात बड़ी होनी चाहिए ,
कद भले ही छोटा हो
सोच बड़ी होनी चाहिए ।
हर बात पे तेरा-मेरा
अच्छा नही लगता यारो ,
शिकायतों से हटकर भी
कभी बात होनी चाहिये ।
तुम ,तुम हो, हम,हम है
इस बात पर दो राय
कभी भी किसी की
नही होनी चाहिये ।
इसलिए जब भी मिलो
इंसानियत के नाते मिलो
फिजूल मे बर्बादी नही
वक्त की होनी चाहिये ।
मुख़्तसर सी जिंदगी में ......
गुरुवार, 16 अप्रैल 2020
दुविधा
राते छोटी
बाते बड़ी
कहने को मेरे पास
बहुत कुछ था
तुम्हारे लिए कही
लेकिन तुम्हारे सामने
खड़े होते ही
तुम्हें देखते ही
शिकायतों ने दम तोड़ दिया
सवालों ने साथ छोड़ दिया
और मैं अपनी मौन
अवस्था मे लिपटी हुई
वापस लौट आई वही
कितनी दुविधापूर्ण स्थिति
होती है ,
यकीन की कभी- कभी
कही-कही ।
मंगलवार, 14 अप्रैल 2020
सन्नाटा
चीर कर सन्नाटा
श्मशान का
सवाल उठाया मैंने ,
होते हो आबाद
हर रोज
कितनी जानो से यहाँ
फिर क्यों बिखरी है
इतनी खामोशी
क्यों सन्नाटा छाया है यहाँ ,
हर एक लाश के आने पर
तुम जश्न मनाओ
आबाद हो रहा तुम्हारा जहां
यह अहसास कराओ ।
ऐ श्मशान तेरा ये सन्नाटा
क्यो नही जाता ,
जबकि दे दे कर
हम अपनी जाने
तुझे आबाद करते हैं ।
रविवार, 12 अप्रैल 2020
दीवारे सहारे ढूँढती है
दीवारे सहारे ढूँढती है
कल के नजारे ढूँढती है ,
वो पहले से लोग
वो पहले से जमाने ढूँढती है ,
आज के ठिकानों में
कल के ठिकाने ढूँढती है ,
ऊँची-ऊँची इमारते नहीं
जमीन के घरौंदे ढूँढती है ,
मकान की खूबसूरती नही
घर का सुख-चैन ढूँढती है ,
गैरों की भाषा नही
अपनो की परिभाषा ढूँढती है ,
दिलो में अहसास के खजाने
विश्वास का सहारा ढूँढती है ,
उम्मीद की किरणों में
खुशियों की रौशनी ढूँढती है ,
रिश्तों मे व्यपार नही
प्यार को ढूँढती है ,
खिड़की से चांद -तारे को
दरवाजे पर अपने प्यारो को ढूँढती है ।
दीवारे सहारे ढूँढती है .........।
गुरुवार, 9 अप्रैल 2020
समय की मांग
आज की जरूरत को हम सभी गंभीरता से समझे ,समझदारी के साथ बताये हुए नियमों का पालन करे ,ये कोई राजनैतिक मसला नही है ,ये प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का सवाल है ,ये जंग कोरोना जैसे महामारी के विरुद्ध है ,विश्व कल्याण के लिए है ,इसलिए सबकी सहमति एवं सहयोग की आवश्यकता है इस मुश्किल घड़ी में ।जहां विश्वास और एकता की शक्ति मिल जाएंगी ,वहाँ सब बढ़िया ही होगा ।जिस पैर से परेशानियां आई है उसी पैर से वापस लौट भी जाएंगी ।बस हम यूँ ही हिम्मत और धैर्य के साथ काम ले तथा जीवन व्यतीत करे ।वर्तमान स्थिति को देखते हुए हमारा प्रयास ,लक्ष्य सम्पूर्ण विश्व के जीवन को बचाना है ,क्योंकि फिलहाल जिंदगी से बढ़कर कुछ भी नहीं है ।आशा करती हूं इस बात को सभी समझेंगे ।आप अपने घर में रह रहे है और वही रहे घर से महफूज जगह कोई नही ,घर ही आज जन्नत है हमारे लिए ,जीवनदान और जीवन का सुख हमारा घर ही हमे देगा ,घर की अहमियत को समझे ,नादानियों से बचे रहे ,यही समय की मांग है ,बात डर की अवश्य है लेकिन निराश न हो ,लड़ाई लंबी ,मुश्किल है मगर जीत हासिल होगी ,समय एक जैसा कभी नहीं रहा ,न रहेगा , समय बदलता है और बदलेगा वो भी बहुत जल्दी ,हो सकता है ये बीमारी हमे कुछ समझाने ,सिखाने आई हो ,सही दिशा दिखाने आई हो ,कुछ अच्छा करने आई हो जगत का ,मानव का ।
ये मेरे दिले नादान तू गम से न घबराना ...
मालिक ने तुझे दी है ये जिंदगी जीने को ,
तूफान में रहने दे तू अपने सफीने को ,
जब वक़्त इशारा दे साहिल पे पहुंच जाना ,
ये मेरे दिले नादान तू गम से न घबराना ।
ये मालिक तेरे बंदे हम ,नेकी पर चले ,बदी से टले ,ऐसे हो तुम्हारे करम ।
जय हिंद हरि ॐ
शुभ प्रभात