बुधवार, 19 सितंबर 2018

न्याय का हिसाब

न्याय का हिसाब

जब जब मुझे छोटा बनाया गया
मेरे तजुर्बे के कद को बढ़ाया गया

जब जब हँसकर दर्द सहा
तब तब और आजमाया गया ,

समझने के वक्त समझाया गया
क्या से क्या यहां बनाया गया ,

न्याय का भी अजीब हिसाब रहा
गलत को ही सही बताया गया ।

ज्योति सिंह

आदमी


शीर्षक  --आदमी

मुनाफे के लिए आदमी
व्यापार बदलता है,

खुशियों के लिए आदमी
व्यवहार बदलता है ,

ज़िन्दगी के लिए आदमी
रफ्तार बदलता है ,

देश के लिये आदमी
सरकार बदलता है ,

तरक्की के लिए आदमी
ऐतबार बदलता है,

दुनिया के लिए आदमी
किरदार बदलता है ।

और इसी तरह
बदलते बदलते

एक रोज यही आदमी
ये संसार  बदलता है ।

ज्योति सिंह