न्याय का हिसाब
जब जब मुझे छोटा बनाया गया मेरे तजुर्बे के कद को बढ़ाया गया
जब जब हँसकर दर्द सहा तब तब और आजमाया गया ,
समझने के वक्त समझाया गया क्या से क्या यहां बनाया गया ,
न्याय का भी अजीब हिसाब रहा गलत को ही सही बताया गया ।
ज्योति सिंह
शीर्षक --आदमी
मुनाफे के लिए आदमी व्यापार बदलता है,
खुशियों के लिए आदमी व्यवहार बदलता है ,
ज़िन्दगी के लिए आदमी रफ्तार बदलता है ,
देश के लिये आदमी सरकार बदलता है ,
तरक्की के लिए आदमी ऐतबार बदलता है,
दुनिया के लिए आदमी किरदार बदलता है ।
और इसी तरह बदलते बदलते
एक रोज यही आदमी ये संसार बदलता है ।