मंगलवार, 30 जून 2020

संगत ........


स्वाती की बूँद का

निश्छल निर्मल रूप ,

पर जिस संगत में

समा गई

ढल गई उसी अनुरूप ।

केले की अंजलि में

रही वही निर्मल बूँद ,

अंक में बैठी सीप के

किया धारण

मोती का रूप ,

और गई ज्यो

संपर्क में सर्प के

हो गई विष स्वरुप ।

मनुष्य आचरण जन्म से

कदापि , होता नही कुरूप ,

ढलता जिस साँचे में

बनता उसका प्रतिरूप ।

शनिवार, 27 जून 2020

मानवता का स्वप्न


मानवता का स्वप्न

कैसा दुर्भाग्य ? तेरा भाग्य

सर्वोदय की कल्पना ,

बुनता हुआ विचार,

स्वर्णिम कल्पना को आकार देता ,

खंडित करता , फिर

उधेड़ देता लोगों का विश्वास ,

नवोदय का आधार

फिर भी आंखों में अन्धकार ।

इच्छाओं की साँस का

घोटता हुआ दम ,

अन्तः मन का द्वंद प्रतिक्षण ।

भाव - विह्वल हो कांपता ,

अकुलाता भ्रमित - स्पर्श ,

टूट कर भी निःशब्द ,

मानवता का 'स्वप्न '

बुधवार, 24 जून 2020

शिल्प-जतन


नीव उठाते वक़्त ही
कुछ पत्थर थे कम ,
तभी हिलने लगा
निर्मित स्वप्न निकेतन ।
उभर उठी दरारे भी व
बिखर गये कण -कण ,
लगी कांपने खिड़की
सुनकर भू -कंपन ,
दरवाजे भी सहम गये
थाम कर फिर धड़कन ।
टूट रहे थे धीरे धीरे
सारे गठबंधन
आस और विश्वास का
घुटने लगा दम
जरा सी चूक में
लगे टूटने सब बंधन ,
शिल्पी यदि जतन करता ,
लगाता स्नेह और
समानता का गारा ,
तब दीवारे भी बच जाती
दरकने से 
छत भी बच जाती
चटकने से और
आंगन सूना न होता
संभल जाता ये भवन ।

सोमवार, 22 जून 2020

कुछ बूंदे कुछ फुहार


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कुछ बूंदे कुछ फुआर

तफसीर जब बेबसी का हुआ 
त्यों ही मुलाकात आंसुओ ने किया ,
आगाज़ होते किस्से गमे-तफसील के साथ 
पहले उसके अश्को ने गला रुंधा दिया । 
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जिसके चेहरे पे थी हँसी ,
वो भी थे उदासी का सबब लिए हुए । 
कौन कहता है कमबख्त ,
है गम नही सबको घेरे हुए । 
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छेड़कर ज़िक्र तो करो 
रखकर दुखती - रग पर हाथ ,
जख्म उभरता नही फिर कैसे 
सोये हुए दर्द के साथ । 
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उकता गए ज़िन्दगी तेरी सज़ा से ,
अब तो इस क़ैद से रिहा कर दे । 
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तलाशे कहाँ सुकून ऐसी जगह बता दे ,
बेवज़ह दर्द बढ़ाने की अब जगह न दे । 
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गुरुवार, 18 जून 2020

ख्वाहिशों को रास्ता दूँ

आज सोचा चलो अपनी

ख्वाहिशो को रास्ता दूँ ,

राहो से पत्थर हटाकर

उसे अपनी मंजिल छूने दूँ ,

मगर कुछ ही दूर पर


सामने पर्वत खड़ा था

अपनी जिद्द लिए अड़ा था ,

उसका दिल कहाँ पिघलता

वो मुझ जैसा इंसान नही था ,

स्वप्न उसकी निष्ठुरता पर 

खिलखिलाकर हँस पड़े ,

हो बेजान , अहसास क्या समझोगे

हद क्या है जूनून की ,कैसे जानोगे ?

आज न सही कल पार कर जायेंगे

उड़ान भर कर आगे निकल  जायेंगे ।

रविवार, 14 जून 2020

खामोशी

खड़ी खड़ी मैं देख रही

मीलों लम्बी खामोशी ।

नहीं रही अब इस शहर में

पहले जैसी  हलचल सी

खामोशी का अफसाना ,क्यों

ये वक़्त लगा है लिखने

जख्मों से हरा भरा ,क्यों

ये शहर लगा है दिखने

देकर कोई आवाज कही से

तोड़ो ये गहरी  खामोशी

बेहतर लगती नही कही से

गलियों में फिरती खामोशी ।

गुरुवार, 11 जून 2020

पत्थरों का स्रोत

पत्थरों का ये स्रोत ..


क्या लिखूं
क्या कहूं ?
असमंजस में हूँ ,
सिर्फ मौन होकर
निहार रही
बड़े गौर से
पत्थर के 
छोटे -छोटे टुकड़े ,
जो तुमने
बिखेर दिये है
मेरे चारो तरफ ,
और सोच रही हूँ
कैसे बीनूँ इनको ?
एक लम्बा पथ तुम्हे
बुहार कर
दिया था ,मैंने
और तुमने उसे
जाम कर दिया
कंकड़ पत्थर से ।
पर यहाँ
सहनशीलता है
कर्मठता है
और है
इन्तजार करने की शक्ति ,
ठीक है ,
तुम बिखेरो
हम हटाये ,
आखिर कभी तो
हार जाओगे ,
और बिखरे पत्थर
सहेजने आओगे ,
और खत्म होगा
पत्थरों का
ये स्रोत ।

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मौन होकर निहार रही हूँ 
तेरे बिखेरे पत्थरों को ...
मैं तो फिर भी चल लुंगी 
कभी जो चुभ जाये तेरे ही पैरों में 
पुकार लेना ....
शायद तुम वो दर्द 
सहन न कर पाओ

चाँद सिसकता रहा

चाँद सिसकता रहा

शमा जलती रही ,

खामोशी को तोड़ता हुआ

दर्द कराहता रहा ,

और फ़साना उंगुलियां

कलम से दोहराती रही ,

आँखों के अश्क में

शब्द सभी नहाते रहे ,

रात के अँधेरे में

ख्याल लड़खड़ाते रहे ,

एक लम्बी आह में

शब्द एकदम से ठहर गए ,

उंगुलियां बेजान हो

साथ कलम का छोड़ गई ,

दर्द से लिपट

असहाय बनी रही ,

और लिखे क्या

बात लिखने की रही नहीं ,

इस तरह फ़साने गढे नहीं

रह गये अधूरे कही ,

शून्य सा समा बाँध

चाँद भी बेबस रहा ।

चाँद सिसकता रहा ....

बुधवार, 10 जून 2020

वक्त की शरारत

जाते हुए वक़्त को

रोककर मैंने पूछा

जो छोड़ कर जाते हो

उसकी वजह भी

देते जाओ

वो बहुत ही

जल्दी में था

आदतन टालकर

कल पर छोड़ कर

' मिलियन डॉलर स्माइल '

देते हुए

रफूचक्कर हो गया ,

और मुझे

सवालों के साथ

अकेला

वही छोड़ गया ।

शुक्रवार, 5 जून 2020

सहेली के सालगिरह पर ..........

मैं तुम्हारी वही
बचपन वाली सहेली हूँ
कभी कही कभी अनकही
कभी सुलझी कभी अनसुलझी सी पहेली हूँ
पर जैसी भी हूँ ,तुम्हारी सच्ची सहेली हूँ ,
वही अधिकार वही प्यार लिए
वही विश्वास वही साथ लिये
साथ तो नही हूँ तुम्हारे
पर फिर भी नही अकेली हूँ
पर जैसी भी हूँ ,तुम्हारी सच्ची सहेली हूँ ,
उम्र में बड़ी हो गई हूँ
पर अब भी छोटी हो जाती हूँ
जब भी तुम संग बातें करती हूं
बचपन को जी जाती हूँ ,
गुड्डे-गुड़ियों वाली बन जाती सहेली हूँ
पर जैसी भी हूँ तुम्हारी सच्ची सहेली हूँ ,
खट्टी -मीठी यादों वाली
कट्टी-बट्टी बातों वाली
छोटी -छोटी इच्छा रखने वाली
छोटे -छोटे सपने बुनने वाली
अहसासों से बंधी हुई कल वाली सहेली हूँ
मैं बहुत हीअलबेली हूँ
पर जैसी भी हूँ ,तुम्हारी सच्ची सहेली हूँ ।
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सखी तुम्हारे सालगिरह पर
क्या दूँ मैं उपहार
हालात ही नही है ऐसे जो
भेज सकूँ कुछ पास
पर ये कैसे हो सकता है
आज न दूँ कुछ उपहार
इसीलिए मैं दे रही
शब्दों का उपहार
इसमे बचपन की यादें है
ढेर सारी दुआएं है
और  बहुत सा प्यार
बड़े प्रेम के साथ इसे
कर लेना तुम स्वीकार
सालगिरह की दूँ बधाई
मै तुम्हे बारम्बार ।

बुधवार, 3 जून 2020

बाजी ......

पहली रात की बिल्ली

मारना किसे चाहिए

मार कौन रहा था ?

सारे उम्र की बाजी

एक पल में वो

लगा रहा था

पलड़े का भार

कही दिशा न बदल दे

इस डर से

सभी बाँटे

अपने पलड़े पर

जल्दी जल्दी 

चढ़ा रहा था

और कांटे की नोंक को

असंतुलित कर

अपनी ही ओर

झुकाते  जा रहा था

शायद वक्त ही उससे

ये करवा रहा था

और वक्त ही

उसकी हरकतों पर

मंद -मंद

मुस्कुरा  रहा था ।

सोमवार, 1 जून 2020

मनुष्य जीवन आखिर अभिशप्त क्यो ..........

जीवन की अवधि

एवं दुर्दशा

चींटी की भांति

होती जा रही है

कब मसल जाये

कब कुचल जाये

कब बीच कतार से

अलग होकर

अपनो से जुदा हो जाये ,

भयभीत हूँ

सहमी हूँ

चिंतित हूँ

मनुष्य जीवन आखिर

अभिशप्त क्यो हो रहा है ?

कही हमारे कोसने का

दुष्परिणाम तो नहीं

या फिर

कर्मो का  फल ?