दर्द में गुजर गई ये जिंदगी
अब तो गिला भी नहीं जिंदगी ।
उम्र भी रही कहाँ ,अब शिकायत की
बोलते -बोलते अब चुप हो गई जिंदगी ।
भागते -भागते थक चुकी अब ये जिंदगी
जाते -जाते वक़्त को पकड़ रही अब जिंदगी ।
किस सूरत पर ख्वाहिशों के महल बने
दूसरे जहां के इन्तजार मे जहाँ जिंदगी ।
उम्मीद ने किया इस तरह बेसहारा यहाँ ,
कि दहलीज पे इसे ,नहीं आने देती जिंदगी ।
वक़्त हुआ आइने के सामने आये हुए
अब तो सूरत मिलाने से कतराती है जिंदगी ।
गुजरे वक़्त से भी , अब नहीं है गुजरती
खोने का अहसास दिलाती इसे जिंदगी ।
भूले से भी अतीत मे अब झांकती नहीं
ढलती उम्र का आभास दिलाती जिंदगी ।
इतने हादसों से गुजर गई है कही ,कि
हल्की आहट पे ही सहम जाती जिंदगी ।
फरेब से सामना हुआ है ,इसका इतना
हर सच पर प्रश्न चिन्ह लगाती है जिंदगी ।
----------------------------------------------------
ये मेरी पुरानी रचना है ,कई महीनो से सोचकर भी डाल नहीं पा रही थी इसका कारण रहा इतनी लम्बी रचना लिख तो लेती हूँ मगर ब्लॉग पर इतनी लम्बी रचना लिख पाना मेरे लिए मुमकिन नहीं ,तभी लेख भी चाहते हुए नहीं लिख पाती ,आज सोचा भी नहीं ,फिर भी लिख रही हूँ ,देखूं कोशिश किस राह ले जाती है ,कभी लगता है ऐसी रचना लिखना ठीक भी है । एक हकीकत एक सच्चाई ,कुछ आशा कुछ निराशा ,बाँध रही जिंदगी अपनी इनसे परिभाषा ।