छोटी छोटी रचनाये
![चित्र](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgS2ZZvsfZ81fbrnFrT24cC82jT7TLXw-0p1qzXVVcukc1kA5fyz8-3XXYJ-rSqI9ARO_ofYqRQ-MnBymtQbB88blVPvH1lSj9ahO3W2C2psg3-gsWF9REqH5ijXd8t1UZMWYhyphenhyphen3ivVgf_I/s320/download.jpg)
जिंदगी यूं ही गुजरती है यहाँ दर्द के पनाहों में , क्षण -क्षण रह गुजर करते है पले कांटो भरी राहो में । .................................................... हर दिन गुजर जाता है वक़्त के दौड़ में , आवाज विलीन हो जाती है इंसानों के शोर में । ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, वफ़ा तब मोड़ लेती है जमाने के आगे , न जलते हो कोई जब उम्मीदों के सितारे । ===================== उन आवाजो में पड़ गई दरारे जिन आवाजो के थे सहारे । >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>> अपनो के शहर में ढूँढे अपने , पर मिले पराये और झूठे सपने । अनामिका के आग्रह पर बचपन की कुछ और रचनाये डाल रही हूँ , जो दसवी तथा ग्यारहवी कक्षा की लिखी हुई है ।