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जनवरी, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हिन्दुस्तान ....

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हर मजहब से यहाँ मोहब्बत निभाते देखा हर दिलो में यहाँ हिन्दुस्तान मुस्कुराते देखा । एक तिरंगा लहराता है सबके दिलो में भेद भाव से हो जुदा हिन्दुस्तान पलते देखा । ' म िले सुर मेरा तुम्हारा , तो सुर बने हमारा ' यही गीत तो जुबां - जुबां पे गुनगुनाते देखा । ' स ारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा ' हर दिलो में अहसास यही गूंजते देखा । ' परहित सरस धर्म नहीं भाई ' मानवता से बढ़कर रिश्ता नहीं देखा । की इबादत हमने अक्सर यहाँ इंसानियत की ' जय हिंद ' के नारे में नफरत मिटाते देखा । हर दिलो में ही ईमान जगमगाते देखा कदम - कदम पर हिन्दुस्तान मुस्कुराते देखा । है हल्की सी बस एक धुंध ही यहाँ धूप के आते ही कोहरा छटते देखा । है आकाश सारा और धरती जिसकी सारे जहां में दूजा हिन्दुस्तान नहीं देखा ।

मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना ....

" मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना " इकबाल जी की ये पंक्तियाँ मेरे जहन में इस तरह बस कर गुनगुनाती है जैसे कोई गहरा रिश्ता हो इन भावो से ,जिस वक़्त इकबाल जी के विचारो में दौड़ी उस वक़्त हालात संप्रदायिक दंगो और माहौल आज़ादी का जुड़ा हुआ रहा । मगर आज ये पंक्तियाँ मेरे लहू में एकता -समानता ,संवेदना व सद्भावना जैसे अहसासों को लेकर दौड़ रही है । जब से मैं होश संभाली और कितने ही किस्से कहानी पढ़े ,मगर कभी किसी ग्रन्थ में जाति और धर्म को दिलो के ज़ज्बातों से जुदा नहीं पाया ,मन की भाषा इन सभी बेतुकी बातों से ऊपर है ,जो व्यक्ति को जोड़ते वक़्त ये गणित नहीं लगाती कि जोड़ है घटाव, और नहीं व्यापारिक बुद्धि दौड़ाती कि फायदा होगा या नुक्सान । सभी धर्मो में मानवता एवं आदर्श की बाते ही लिखी गयी है ,जो इंसान को जाति - पाति, भेदभाव ,उंच -नीच से अलग रखती है ,इंसानियत की परिभाषा धर्मानुसार नहीं होती । इंसानों को तो हमने ही इतने वर्गों में विभाजित किया ,वर्ना हम सभी तो मनु की ही संतान है । हिन्दू बांटे ,मुस्लिम बांटे बाट दिए भगवान को , मत बांटो इंसान को भई मत बांटो इंसान को । यही बात हमें सभी धर्म -

मन की वापसी

जब - जब छलनी हुआ मन दर्द से भरा मेरा ये दामन , फिर भी खुद को बहलाती रही गुजरे वक़्त को समझाती रही , तू आज मेरा न सही कल तो होगा कभी , पर आंसू से वो उठी टीस उम्मीद भी टूटी कहीं , आह चीखी - दुख हुआ पर मौन हो , सिसकती रही जिस पर चलने की मेरी कोशिश रही , शायद ये रास्ते मेरे नहीं , वापस मन को शून्य कर परिधि में चक्कर लगाती रही ।

आते -जाते साल

आते साल जाते साल , गम - ख़ुशी लपेटे साल , कड़ी धूप में तपते साल , ठंडी छाँव में बीते साल , मिलने और बिछुड़ने की यादो में सिमटे साल , और तपाते हुए हमें जीवन के अनुभव में , जीवन - दर्शन कराते रहे ये साल , कितने उतार - चढ़ाव में गिरते - संभलते साल , औरो के आगे खुद को बेहतर पाते साल , जिंदगी मुमकिन है मगर आसान नहीं , यही अहसास दे जाते साल , सबके दामन महके खुशियों से यही दुआए ले आते साल ।

एक सा

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कल जिस तरह आरम्भ हुई थी , आज तक वैसी ही बनी रही । प्रसून वेदना मानस पटल पर यू अटल छवि सी अंकित रही । वर्तमान - भविष्य के मध्य अतीत का आरम्भ भी वही और अंत भी वही ।

एकता.....

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ह ृदय उदार हो , सागर की थाह सा गहरा भाव हो मन में प्यार हो , शुद्ध अन्तः करण हो , उद्देश्य हो सभी का परोपकार , रंजो - गम का कोई भी स्वरुप न हो साकार , ऐसे रिश्तें जीवन बांटे मन में रख न मलाल । एकता के इन भावो से सारा जीवन हो खुशहाल । ---------------------------------- सभी साथियों को नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाये ,