शनिवार, 21 सितंबर 2013

हम अंत कभी नहीं चाहते .........



एकता  और  प्रेम  की  मिसाल  
हम  कायम  करना  चाहते  थे ,
अमन  और  इंसानियत  का  हथियार  
हम इस्तेमाल  करना  चाहते  थे  ,
मगर  आक्रोश  और  जुनून  में  
खौलते  हुए  चंद  विचार  ,
अस्त्र -शस्त्र  चलाने  पर  
हमें  मजबूर  करते  रहे  ,
इतिहास  के  पन्ने  जो  पहले  
वीर  गाथाओं  से  भरे  थे  ,
आज  काले  -काले  धब्बो  से 
भरकर  भद्दे  होते  जा  रहे  ,
समय  को हम  चाहते  है  रोकना  
इतिहास  को  हम चाहते है  बदलना  
पर  दोनों  ही  हमारे  वश  में  नहीं  रहे  ,
हम  अंत  कभी  नहीं  चाहते  थे  
पर   इसके  भागीदार  तो  बने  रहे  ,
ऐसा  लगता  है  मानो  
इस  युग  के  अंत  को 
 हम  बड़े  नजदीक  से  है  देख  रहे  ।
 








गुरुवार, 12 सितंबर 2013

क्या .......?







क्या  कहा  जाये 
क्या  सुना  जाये 
इस  क्या  से  आगे  
यहाँ  कैसे  बढ़ा  जाये
समझ  आता  नहीं  ,
क्योंकि  ये  दुनिया  अब  
पहले  जैसे  सीधी  रही  नहीं  ,
तभी  आसान  बात  भी 
मुश्किल  नज़र  आती  है  ,
किसी  से  कहे  कुछ 
उसे  समझ  कुछ 
और  आती  है  । 
शायद  इसलिए  ज़िन्दगी  अब ,
लम्हों  में  बिखर  जाती  है  ।