रकीबो से उल्फत..........
रकीबो से रस्मे उल्फत निभाता कहाँ कोई है यहाँ शौक ऐसे दिल से फरमाता कहाँ कोई है । है , ये वो शै बाजारों में भीड़ है जिसकी मुफ्त में मिलने से भी अपनाता कहाँ कोई है । मगर सबसे ज्यादा यही रस्मे उल्फत निभाती है मोहब्बत से भी आगे बाजी दुश्मनी मार जाती है । दुश्मनों की हयात में चाहत नही होती कभी है इसमें वो अदा जो ठिकाना आप जमा लेती है । चाहे जितनी भी कर ले हिफाजत हम अपनी हर पहरे तोड़कर दास्तां अपनी गढ़ जाती है ।