रकीबो से रस्मे उल्फत निभाता कहाँ कोई है
यहाँ शौक ऐसे दिल से फरमाता कहाँ कोई है ।
है , ये वो शै बाजारों में भीड़ है जिसकी
मुफ्त में मिलने से भी अपनाता कहाँ कोई है ।
मगर सबसे ज्यादा यही रस्मे उल्फत निभाती है
मोहब्बत से भी आगे बाजी दुश्मनी मार जाती है ।
दुश्मनों की हयात में चाहत नही होती कभी
है इसमें वो अदा जो ठिकाना आप जमा लेती है ।
चाहे जितनी भी कर ले हिफाजत हम अपनी
हर पहरे तोड़कर दास्तां अपनी गढ़ जाती है ।
सोमवार, 29 मार्च 2010
शुक्रवार, 26 मार्च 2010
दुर्दशा .........
धूल में सने हाथ
कीचड़ से धूले पाँव ,
चेहरे पर बिखरे से बाल
धब्बे से भरा हुआ चाँद ,
वसन से झांकता हुआ बदन
पेट ,पीठ में कर रहा गमन ,
रुपया ,दो रुपया के लिए
गिड़गिडाता हुआ बच्चा -फकीर ,
मौसम की मार से बचने के लिए
आसरा सड़क के आजू -बाजू ,
भूख से व्याकुल होता हाल
नैवेद्य की आस में बढ़ता पात्र ।
ये है सुनहरा चमन
वाह रे मेरा प्यारा वतन ।
अपने स्वार्थ में होकर अँधा
करा रहा भारत दर्शन ।
"जहां डाल -डाल पे सोने की
चिड़ियाँ करती रही बसेरा "
बसा नही क्यों फिर से
वो भारत देश अब मेरा ।
मंगलवार, 23 मार्च 2010
शनिवार, 20 मार्च 2010
भोर
![](http://2.bp.blogspot.com/_VXW9olHdiEU/S6SHOjDpLlI/AAAAAAAAAFw/QyJSBIG5TVg/s320/sun.jpg)
भोर की किरण फूटी
हिम -कणों में चमक आई ,
कलियाँ लहर -लहर लहराई
लक्ष्य सुलक्षित हुआ ,
मंजिल भी आगे चली
अँधेरी राहो से घिरी मैं
दिल को जगमगाती चली ।
कंटीली राहो को ,
पारकर आगे बढ़ी
मिले कजा तो कजा पर भी
मुस्कुरा कर चली ,
ज़माना याद करे ऐसे
गुल खिलाकर चली ।
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यह रचना तबकी है जब मैं बनस्थली विद्यापीठ में आठवी कक्षा में पढ़ती रही और इसे वहां 9th में" महकती कलियाँ " नामक एक काव्य संग्रह में प्रकशित किया गया रहा । जो मित्र वहां से जुड़े रहे वो भलीभांति जानते होंगे । अल्पना जी आप के कारण ख़ास तौर पर डाला क्योंकि आप भी उस संस्था से कुछ वर्ष जुडी रही ,ये पुरानी यादों का एक हिस्सा है जो रचना कम अहसास ज्यादा समेटे हुए है ।
सोमवार, 15 मार्च 2010
पहचान ......
![](http://4.bp.blogspot.com/_VXW9olHdiEU/S56LENZ_ZYI/AAAAAAAAAFg/UtCbzwwsB_o/s320/0307200930481.jpg)
मेरा वास्ता इंसानियत से रहा
अहम से नही ,
मैं साधारण ही रहना चाहती
बड़े होने की ख्वाहिश
कतई नही ,
मेरी नजरों ने कितने ही
नाम वालों के चेहरे पढ़े ,
जो पहचान अपनी
अब भी ढूँढ रहे है ।
शोहरत की सोहबत में
वजूद ही कही उनके ,
गुमनाम से हो गये ।
अनगिनत रिश्तों में भी
तन्हाई है रौंद रही ,
क्योंकि उनकी तलाश
मंजिल के आगे भी है ,
किसी उस शक्स की
जो नाम से नही
पहचान कायम करे ,
बल्कि इंसानियत की
नींव बनाये ।
बुधवार, 10 मार्च 2010
मुझे चाहिए फिर बचपन ....
![](http://1.bp.blogspot.com/_VXW9olHdiEU/S5f8AR_auuI/AAAAAAAAAFQ/9q6Oo06PAdI/s320/cute-kids-wallpapers.jpg)
फिर नया जन्म होगा
फिर सुनहरा आएगा बचपन ,
इन द्वन्दो-प्रतिद्वंदो से
रहेगा फिर अछूता मन ।
बड़ा होना व्यर्थ है ,
समझदारी अनर्थ है ,
जीवन की उलझनों पर ,
छलता रहता मासूम मन ।
बड़ा भी होकर इंसान
सिसकता रहा हर क्षण ,
जीवन के दलदल में
धसता जाता कण -कण ।
बच्चा ही बना रहे इंसान ,
ऊँच- नीच से रहे अन्जान ,
नही भली इसके आगे की उम्र
भेदभाव पनपते यहाँ हरदम ।
नही चाहिए और ये जीवन
जहां आतंकित रहे ये मन ,
कैसे देखे ?मासूम निर्दोषो को
छलनी होते हुए ये मन ।
करनी किसकी भरनी किसकी
मानवता का हो रहा हनन ,
नही चाहिए और ये जीवन
मुझे चाहिए फिर वही बचपन ।
रविवार, 7 मार्च 2010
नारी तुझसे ये संसार ......
![](http://1.bp.blogspot.com/_VXW9olHdiEU/S5PzYJAbk2I/AAAAAAAAAFI/YGWRnesayW8/s320/motherteresa.jpg)
![](http://1.bp.blogspot.com/_VXW9olHdiEU/S5Py6JtLa0I/AAAAAAAAAFA/eGtrgsbzrG8/s320/IWD_Version_2.jpg)
नारी दुर्गा का अवतार
शक्ति जिसमे असीम अपार ,
नारी शारदा सा रूप संवार
बहाये प्रेम - दया की धार ,
नारी लक्ष्मी का ले अधिकार
संयम से चलाये घर संसार ,
त्रिशक्ति को करके धारण
करती विश्व का ये कल्याण ।
"जहां होता नारी का सम्मान
वही बसते है श्री भगवान ",
सदियों पुरानी ये कहावत
अटल सत्य के है समान ।
हृदय के गहरे सागर से
पाया सबने अथाह प्यार ,
ममता ,करुणा,दया क्षमाधात्री
तेरी महिमा का नही पार ,
हे जगजननी ,कष्ट निवारणी
हाथ तेरे अन्नपूर्णा का भण्डार ,
फिर, तुझ पर अन्यायों का
क्यों होता रहता है प्रहार ?
बिन नारी घर भूत का डेरा
नारी से सुशोभित घर -द्वार ,
जो हारी इसकी उम्मीदे
समझो , है ये हमारी हार ,
जो हारी इसकी उम्मीदे
समझो ये है विश्व की हार ।
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जहाँ स्नेह मिला वही बाती सी जली
मोम की तरह गल -गल जलती रही ।
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गुरुवार, 4 मार्च 2010
मंगलवार, 2 मार्च 2010
यदि ऐसा ........
![](http://3.bp.blogspot.com/_VXW9olHdiEU/S42EhdRyZTI/AAAAAAAAAEg/zA-E5ITrsf0/s320/belairbluesthumb.jpg)
तुम जो हमें
समझ कही पाते ,
बेहतर हमसे
कुछ नही पाते ,
खलिश कोई
दिल में न उठती ,
शक को फिर
जगह न मिलती ,
चाँद -सितारे
जमीं पे सजते ,
रात हर फिर
तारोवाली होती,
शमा के लबो पे
रौशन हंसी रहती ,
जन्नत से बेहतर
जमीं ये होती ,
मिलकर जो संग
दास्तां बुनती ,
हर कदम पर
साथ जो चलती ,
पर सभी के ख्याल
"यदि "पर रुक जाते ,
न कुछ कह पाते
न समझा पाते ।
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