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जून, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

शिकवा

उम्र गुज़र जाती है सबकी लिए एक ही बात , सबको देते जाते है हम आँचल भर सौगात , फिर भी खाली होता है क्यो अपने में आज ? रिक्त रहा जीवन का पन्ना जाने क्या है राज ? रहस्य भरा कैसा अद्भुत होता है , क्यो अहसास ? रोमांचक किस्से सा अनुभव इस लेन-देन के साथ , गिले -शिकवे की अपूर्णता पे , घिरा रहा मन हर बार ।

जीवन -धारा

क्या पता क्या ख़बर क्या सही ,है क्या ग़लत , बहती ज़िन्दगी की धारा में राज छिपे है बहुत , लिए पाप -पुण्य का चक्र झूठ -सच का व्यूह , थोडी महकी थोडी बहकी कुछ सहमी कुछ गुमसुम , कुछ अल्हड़ कुछ मदमस्त स्नेह-सुरा का उदगार करता स्पर्श , कभी दहकता हुआ मन और बरसता कभी सावन , लिए उर में कभी अवसाद घनेरा पूर्ण -अपूर्ण के छंदों पर होता खड़ा बसेरा । ज़िन्दगी की इस धारा में है कितने ही मोड़ , हंस- हंस कर हमें महज करते रहना है जोड़ , है पता किसे ,इसके गहरे राज़ कल क्या है ,क्या होगा आज , भूत - वर्त्तमान - भविष्य लिए क्या है भाग्य , कोई क्या जाने ? इस ज़िन्दगी के मौलिक आधार ।

असंभव कल्पना

पानी पर लकीर खींच रही हूँ , बात बनने की तसल्ली लिए ना समझ बन रही हूँ , जल की धाराओ में रास्ता देख रही हूँ , नादान बनकर लहरों पे स्वप्न बुन रही हूँ , आपे से बाहर होकर तारे तोड़ने की कोशिश आसमान से , इस तरह हर असंभव कल्पना को साकार कर रही हूँ ।
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शाख के पत्ते

हम ऐसे शाख के पत्ते है जो देकर छाया औरो को ख़ुद ही तपते रहते है , दूर दराज़ तक छाया का कोई अंश नही , फिर भी ख्वाबो को बुनते है उम्मीदों की इमारत बनाते है , और ज्यो ही ख्यालो से निकल कर  हकीकत से टकराते है  ख्वाबो की वह बुलंद इमारत बेदर्दी से ढह जाती है , तब हम अपनी तकदीर को  वही खड़े हो ...... कोसते रह जाते है ।

गुजारिश

दुर्घटनाओ की उठी लहरों को फना करो , आकांक्षा की वधू को सँवरने दो , उठे न ऐसी आंधी कोई कश्ती का रुख मोड़ दे , उमंग भरी मौज की कश्ती साहिल पे आने दो , कारवां जब निगाहों में जुस्तजू सिमटी हो बाँहों में , ऐसे खुशनुमा माहौल में किसी तूफ़ान का ज़िक्र न करो ।

अहसास..

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ये रंग है प्यार का, ये रंग है खुशी भरे जज्बात का, ये रंग है, अपने होने के अहसास का.

नखरे बहार के

बेख्याल होकर गुजर गये बेसबब ही यहाँ जी गये , किस राह को हम निकले किस राह को चले गये , लिए किस तलाश को बांधे किस आस को , किस तलब की प्यास है जुस्तजू क्या कोई ख़ास है , बेखबर ख़ुद से होकर बहका रहे चाह को , होश अपने खो बैठे चढ़ा के खुमार को , गम अज़ीज़ हो गया खुशी को नकार के , हार गये जब हम उठा के नखरे बहार के ।

स्वीकृति

पहले भी चुप रह कर समझे अब भी चुप रह जायेंगे , तुम जैसा चाहोगे हमदम वैसा साथ निभायेंगे , हर सितम सहते आए है अब ये मुश्किल राह नही , ज़ख्म दवा बन जाती ही जब कोई हो इलाज नही , चाहत में ये दस्तूर पुराना है ये कोई नई बात नही , तुम कहना हम रहेंगे सुनते होगी फिर कहाँ बात कोई , तुम जैसा चाहोगे हमदम होगी हर बात वही ,

याद जो इस अवसर पे अतीत से गुजर गई

'शाम से आँख में नमी सी है , आज फिर आप की कमी सी है ' तुम जहाँ भी हो हर वर्ष की तरह इस बार भी तुम्हारे साल गिरह की बधाई देने बैठी हूँ ,फर्क इतना है कि इस बार तुम्हे अपने ब्लॉग के जरिये मुबारकबाद दे रही हूँ ,अवसर तो खुशी का है मगर जुदाई के गम साथ लिए यादो की बौछारों से पलके भीग गई ,करोगे याद तो हर बात याद आएगी गुजरते वक्त की हर मौज ठहर जायेगी ,इस गुजरते वक्त में वो भी गुजर गया जहाँ हम सभी साथ थे ,और इस वक्त के झोखे में बिखर कर दुनिया की भीड़ में भटक गए ,पर उन यादो का क्या जो अभी तक जंजीर में जकड़ी है बस यही ठहर कर रह जाती है ,दूर नही होती ,उन्ही यादो को संजोये ये सफर चलता रहता है ,ऐसे ही कुछ अवसरों पे जब अतीत गहराई पकड़ने लगती है तभी कलम के सहारे उन बिछडे पलों का सफर तय होता है ,हर अहसास हर जज़्बात जो दिलो के दर से गुजरती है ,उसकी शुरुआत हमारे साथ से शुरू हुई और तभी महसूस किया इस दोस्ती भरे रिश्तों को ,प्रारंभ और अंत ,वही तक रहा ,जहाँ तक साथ उस रेगिस्तान में कितनी ठंडक थी ,जो अब हसीं वादियों में नही ,

पहली बारिश

पहली बारिश की बूंदा -बांदी रिमझिम -रिमझिम पानी की झड़ी , लिए पल -पल की आस तपता मन रहा ,करता इंतज़ार , रिमझिम बारिश की ये शुरुआत जगा गई ज्यो जीने की आस , प्रकृति ,पशु -पक्षी ,जन -जन ने ली हो ज्यो राहत की साँस , खुशियों की सौगात लेकर जैसे आई हो बरसात , बूंदा -बांदी की इस ठंडी रुत में छमाछम करने बच्चे भी भागे , हो दुनिया की सभी शै फीकी जैसे इस जीवन अमृत के आगे , खेत -खलिहानों में भी जागी हरियाली की उमंग , शीतल जल की फुआर से भर गया जब हर आँगन , पहली बारिश की झड़ी आई ले खुशियों की घड़ी