मेरी चिंताए
मेरे ख्यालों की धारायें ,
जन - हित चिंता दर्शाती है ,
क्योंकि
मानव जीवन की पहेलियों के
संग उलझी रह जाती है ।
देख विवशता आदर्श की ,
निः शब्द स्तब्ध रह जाती है ।
क्या होगा आगे इस युग का ,
ये सोच काँप सी जाती है ।
ये चक्र विचारों का हमें ,
जाने किस ओर ले जाएगा ।
इस स्वर्ण धरा को भविष्य ,
किस रस से अलंकृत कर पायेगा ।