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जून, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कौन हो तुम ....?

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वक़्त किसी के लिए ठहरता नही , मगर तुम्हे उम्मीद है कि वो ठहरेगा , सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए , और इन्तजार करेगा तुम्हारा , बड़ी बेसब्री से । कोई अलभ्य शख्सियत हो ? जो रुख हवाओं का मोड़ रहे हो ? वर्ना आदमी दौड़कर भी पकड़ नही पाया वक़्त को तां - उम्र , और तुम बड़े इत्मीनान से सुस्ता रहे हो ।

ख्वाब ...

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ख्वाब एक निराधार बेल की तरह, बेलगाम ख्याल की तरह , असहाय डोलती कल्पना है , जो हर वक़्त कब्र खोद कर ही ऊँची उड़ान भरती है , क्योंकि उसका दम तोड़ना निश्चित है ।

चल तो लूंगी ..........

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कब तक और ____ कहाँ तक इन्तजार में खड़े रहकर तुम्हारे सहारे को तकते रहें __ कभी तो कहीं तो तुम छोड़ ही दोगे ऊब कर । बैसाखी तो हो नही जो पास में रख लू । इतना ही काफी है जो तुमने खड़ा कर दिया ___ दौड़ भले न पाऊं तुम्हारे बगैर , मगर चल तो लूंगी अब , धीरे - धीरे ही सही गिरते - पड़ते लड़खड़ाते , एक दिन दौड़ने भी लगूंगी ।

संशय

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अनजान से रास्ते , पहचान लिए साथ में , चल रहे हम दिशा की ख़बर नही , चाह फिर भी , बढ़ने की , राह तो कही नही , भूल रहे हम ।

गुजारिश

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दुर्घटनाओ की उठी लहरों को फना करो , आकांक्षा की वधू को सँवरने दो , उठे न ऐसी आंधी कोई कश्ती का रुख मोड़ दे , उमंग भरी मौज की कश्ती साहिल पे आने दो , कारवां जब निगाहों में जुस्तजू सिमटी हो बाँहों में , ऐसे खुशनुमा माहौल में किसी तूफ़ान का ज़िक्र न करो ।

कुछ यादे .....

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प्रिय सखी हर बार की तरह इस वर्ष भी तुम्हे शब्दों का उपहार दे रही हूँ , एक दौर गुजर गया आपस में बिछड़ने के बाद मगर यादे अटल और स्थिर है , मिलना और जुदा होना हमारा , नियति के हाथ में रहा और इसलिए दोष किसी को नही दे सकते , पर सुनहरी यादो को सहेज कर रक्खा जा सकता है , एक उम्मीद के साथ और वही उम्मीद बरकरार है आज भी , अहसास बूढ़े कहाँ होते कभी , वो तो थमे हुए है इन्तजार में उसी मोड़ पर काश के साथ आज भी , मुझे एक बौने की शक्ल लिए प्रतीत होते है और कानो में फुसफुसाते है मिलकर कभी सीधा करो और उसी वक़्त की तलाश जारी है जिससे उसे भी राहत मिले , जहां साथ चलना था वहां अब एक पल का इन्तजार है ताकि आमने - सामने खड़े होकर उस सुनहरे क्षण को तराशते हुए ये तो कह तसल्ली कर सके कि इस परिवर्तन में उस वक़्त सा कुछ नही रहा जो अपने पास था जो अपन