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होकर भी साथ नहीं

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ख्वाब  वही   ख्वाहिश  वही  अल्फाज  वही   ज़ुबां  वही  , फिर  रास्ते  कैसे   जुदा  है  सफ़र  के  , कदम  साथ  अपने  दे  रहे  क्यों  नहीं  । कही  तो  कुछ   खलिश  है  मन में  जो  दिल  चाहकर  भी  मिल  रहा  नहीं  । 

मोहब्बत .........

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मोहब्बत   में  आदमी  जीता  कम  मरता  ज्यादा  है  , पाने  से  अधिक  खोने  के  लिए   डरता  ज्यादा  है  , यकीं  कम  ,उम्मीद  के  सहारे   चलता  ज्यादा  है  , तभी  संभल  नही  पाता  और  गिरता  ज्यादा  है  । 

हम अंत कभी नहीं चाहते .........

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एकता  और  प्रेम  की  मिसाल   हम  कायम  करना  चाहते  थे , अमन  और  इंसानियत  का  हथियार   हम इस्तेमाल  करना  चाहते  थे  , मगर  आक्रोश  और  जुनून  में   खौलते  हुए  चंद  विचार  , अस्त्र -शस्त्र  चलाने  पर   हमें  मजबूर  करते  रहे  , इतिहास  के  पन्ने  जो  पहले   वीर  गाथाओं  से  भरे  थे  , आज  काले  -काले  धब्बो  से  भरकर  भद्दे  होते  जा  रहे  , समय  को हम  चाहते  है  रोकना   इतिहास  को  हम चाहते है  बदलना   पर  दोनों  ही  हमारे  वश  में  नहीं  रहे  , हम  अंत  कभी  नहीं  चाहते  थे   पर   इसके  भागीदार  तो  बने  रहे  , ऐसा  लगता  है  मानो   इस  युग  के  अंत  को    हम  बड़े  नजदीक  से  है  देख  रहे  ।  

क्या .......?

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क्या  कहा  जाये  क्या  सुना  जाये  इस  क्या  से  आगे   यहाँ  कैसे  बढ़ा  जाये समझ  आता  नहीं  , क्योंकि  ये  दुनिया  अब   पहले  जैसे  सीधी  रही  नहीं  , तभी  आसान  बात  भी  मुश्किल  नज़र  आती  है  , किसी  से  कहे  कुछ  उसे  समझ  कुछ  और  आती  है  ।  शायद  इसलिए  ज़िन्दगी  अब , लम्हों  में  बिखर  जाती  है  । 

वैसा कुछ भी नहीं रहा

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वैसा  कुछ  भी  नहीं   रहा  यहाँ   जैसा  पहले  हुआ  करता  रहा  यहाँ  वक़्त  के  दरिया  में  कल  बह  गया  आज  हर  किसी  का  बदला  हुआ  है यहाँ     1 वक़्त  की  मांगे  करवटे  लेती  रहती  है   उम्मीदे  बहुत  कुछ  बदल  देती  है  यहाँ  आगाज़  से  बहुत  अलग  अंजाम  होता  है  रिश्ते  बनते  है  जैसे  वैसे  रहते  नहीं  यहाँ  1