गुरुवार, 7 मार्च 2019

मै औरत ही बनकर रह गई ____

जिसके  लिये भी अच्छा सोचा
उसी के लिए बुरी बन गई ,

छोड़ दे सारी दुनिया की फिक्र
मन ने कहा ,पर आदत वही रह गई ।

हंगामा करना भाता न था
तभी चुप रहकर सब सह गई ,

औरों को ही हमेशा देती रही
मैं कैसे मांगू ?ये सोचती ही रह गई ।

मर्यादा में बंधी रह गई
लाज को ओढ़े रह गई ,

संस्कार मिले थे चुप रहने के
तो सही होकर भी गलत समझी गई ।

लोगों को भरम था मैं खुश हूं
दर्द की नुमाईश जो की नही गई ,

सारी जिम्मेदारी कंधो पर धर कर
सब भूल की सजा भी मुझे दे दी गई ।

मै औरत हूँ या फिर कुछ और
जो सबकी उम्मीदे मुझसे जुड़ गई ,

मै भी जीना चाहती थी इंसान बनकर
पर मै औरत ही बनकर रह गई ।

1 टिप्पणी:

संजय भास्‍कर ने कहा…

सबसे पहले सभी महिलाओं को महिला दिवस पर शुभकामनाएँ