रहीम जी का एक दोहा है - जो रहीम उत्तम प्रकृति का करत सकत कुसंग-- चंदन बिष व्यापत नही लिपटे रहे भुजंग . बात तो सही है ,जो इस दोहे मे कही गई है ,पर उनके लिये जिनमे धैर्य अपार मात्रा मे व्याप्त हो ,क्योकि ये बात आज के समय मे जरा मुश्किल सी मालूम होती है , चंदन एक पेड़ है जो मौन रहता है साथ मे सजीव होते हुये भी निर्जीव के समान है ,इसके तन-मन के लिये कोई भी हरकत या बात बेअसर है ,इसलिये चंदन पर बिष चढ़ने या लिपटे रहने से कुछ नही होता ,परन्तु मनुष्य चंदन की तरह होकर भी चंदन नही रह सकता ,क्योकि वह एक सजीव ,संवेदनशील प्राणी है ,उसे गलत बाते विचलित कर देती है और वह परेशानियो मे अपना संतुलन एवं धैर्य खोने लगता है ,मन को समझाना -संभालना इतना आसान नही होता तभी मनुष्य दिशा भटक जाता है ,वो पूर्ण रूप से चंदन की तरह स्थिरता और सहनशीलता बनाये नही रह सकता ,विरोध करना उसकी प्रकृति है ,अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाना आदत .इसलिये उत्तम प्रकृति वाले ही कुसंग के चपेट मे अधिक आ रहे है .

टिप्पणियाँ

ज्योति जी ,विष न व्यापने का अर्थ है--अपनी मूल प्रकृति न छोड़ना . धैर्य अधैर्य की नही स्वभाव और विचारों की बात है . यह बात हर मनुष्य पर लागू होती है क्योंकि व्यक्ति अपनी प्रकृति के अनुकूल ही बातों को स्वीकारता व नकारता है .एक जगह उन्होंने यह भी लिखा है--
बसि कुसंग चाहत कुशल ,यहि रहीम अफसोस
महिमा घटी समुद्र की रावण बस्यौ पड़ोस .
प्रसंगानुसार कही गई बातें हैं जो अपनी जगह सही हैं .
ज्योति सिंह ने कहा…
गिरजा जी आपकी बातो से पूरी तरह सहमत हूं ,लेकिन आज स्वार्थ और डर ने लोगो को बदलने पर मजबूर कर दिया ,लोग हालात से समझौते करते हुये अपनी अच्छाई को छोड़ देते है ,तभी ईमानदार व्यक्ति गलत रास्ते अपनाने लगता है,माहौल संगत का असर आ ही जाता है ,ह्रदय से आभारी हूं आपकी ,आपके सुन्दर विचार के लिये .

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