अपनी राह .....


ये रास्ते है अदब के

कश्ती मोड़ लो ,

माझी किसी और

साहिल पे चलो ।

हम है नही खुदा

न है खास ही ,

राहे - तलब अपनी

कुछ है और ही ।

नाराजगी का यहाँ

सामान नही बनना ,

वेवजह खुद को

रुसवा नही करना ।

बे अदब से गर्मी

माहौल में बढ़ जायेगी ,

कारण तकलीफ की

हमसे जुड़ जायेगी ।

हमें हजम नही होती

इतनी अदब अदायगी ,

चलते है साथ लिए

सदा सच्चाई -सादगी ।

फितरत हमें खुदा ने

बख्शी है फकीर की ,

ले चलो मोड़ कर

मुझे अपनी राह ही ।

टिप्पणियाँ

Meena Bhardwaj ने कहा…
नाराजगी का यहाँ
सामान नही बनना,
वेवजह खुद को
रुसवा नही करना ।
दिल को छू गई ये पंक्तियाँ , आपका तहेदिल से आभार आपकी प्रतिक्रिया पा कर मैं हर्ष से अभिभूत हूँ।

yashoda Agrawal ने कहा…
आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 06 अप्रैल 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
Anuradha chauhan ने कहा…
बहुत सुंदर रचना
Book River Press ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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वाह क्या बात है बहुत सुंदर रचना. पढ़ कर एक नई उर्जा सी आ गई मन में !
वाह....
बहुत ही खूबसूरत रचना
ज्योति सिंह ने कहा…
आप सभी की आभारी हूँ ,धन्यवाद आप सभी का तहे दिल से
Sweta sinha ने कहा…
वाहह्हह.. क्या बात है..बहुत खूब👍👌👌
बहुत खूब ... राह वही अच्छी जो खुद की हो ...
जहाँ जाने पहचाने रास्ते हों, न छल कपट हो ... अच्छी रचना है ...
ज्योति सिंह ने कहा…
तहे दिल से शुक्रियां आप सभी का

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