ख्वाब

ख्वाब ...


ख्वाब एक
निराधार
बेल की तरह,
बेलगाम
ख्याल की तरह ,
असहाय डोलती
कल्पना है ,
जो हर वक़्त
कब्र खोद कर ही
ऊँची उड़ान भरती है ,
क्योंकि
उसका दम तोड़ना
निश्चित है ।

टिप्पणियाँ

Ravindra Singh Yadav ने कहा…
नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (06-07-2020) को 'नदी-नाले उफन आये' (चर्चा अंक 3754)
पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
-रवीन्द्र सिंह यादव
Meena Bhardwaj ने कहा…
यथार्थ के दर्शन करवाती सुन्दर रचना सुधा जी ।
Nitish Tiwary ने कहा…
बहुत बढ़िया।
अनीता सैनी ने कहा…
मर्मस्पर्शी सृजन आदरणीय दी.


Rakesh ने कहा…
यथार्थ रचना

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