ईसा मसीह

ईसा जब जब तुम्हे 
यू सूली पर 
लटका हुआ देखती हूँ 
तब तब तुम्हारे बारे में 
सोचने लगती हूँ 
और तुमसे ये 
पूछ ही बैठती हूँ 
ईसा तुम 
अच्छाई को ठुकते 
देख रहे थे
ऊपर से चेहरे पर 
हँसी लिए हुए 
मुस्कुरा भी रहे थे 
और सुनते हैं 
उन जल्लादो पर भी
तरस खा रहे थे तुम
जो तुमको सूली पर
बड़ी बेरहमी से चढ़ा रहे थे,
जहाँ बातों से मन 
छलनी हो  जाता हैं
वहाँ कील से 
ठोके जाने पर
रक्त के बहते रहने पर
पीड़ा तुम्हारी असहनीय तो 
हो ही रही होगी
फिर भी तुम 
सारी वेदनाये 
व्यथा, तकलीफ 
आसानी से सहते गये , 
इन हालातों में भी
अपने दर्द को महसूस करने 
और अपने  ऊपर तरस 
खाने की बजाय 
उन जल्लादो पर 
तरस खा रहे थे 
जो जान बूझकर तुम्हे 
कष्ट पहुंचा रहे थे
तुम्हारी अच्छाई का तिरस्कार
खून कर रहे थे, 
सचमुच तुम महान थे 
जो कातिल को 
बुरा भला कहने और
उन्हे सजा सुनाने की बजाय 
उनके लिए दुआ मांग रहे थे, 
जो सब सहकर भी
हँसते हुए 
सूली पर लटक जाये 
वो ईसा ही हो सकता है, 
और तुम ईसा थे 
तभी तुम ईसा थे l

 



टिप्पणियाँ

Digvijay Agrawal ने कहा…
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 25 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ज्योति सिंह ने कहा…
Digvijay ji अनिता जी हार्दिक आभार और धन्यबाद, नमन
बहुत ही गहनता से ईसा मसीह का जीवन दर्शन प्रस्तुत किया गया - - सुन्दर रचना।
Onkar ने कहा…
सुन्दर रचना
Amrita Tanmay ने कहा…
उनकी पूजा ही प्रमाण है । अति सुन्दर भाव ।
मन की वीणा ने कहा…
बहुत सुंदर सार्थक चिंतन देती रचना।
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।

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