शिकवा
उम्र गुज़र जाती है सबकी
लिए एक ही बात ,
सबको देते जाते है हम
आँचल भर सौगात ,
फिर भी खाली होता है
क्यो अपने में आज ?
रिक्त रहा जीवन का पन्ना
जाने क्या है राज ?
रहस्य भरा कैसा अद्भुत
होता है , क्यो अहसास ?
रोमांचक किस्से सा अनुभव
इस लेन-देन के साथ ,
गिले -शिकवे की अपूर्णता पे ,
घिरा रहा मन हर बार ।
लिए एक ही बात ,
सबको देते जाते है हम
आँचल भर सौगात ,
फिर भी खाली होता है
क्यो अपने में आज ?
रिक्त रहा जीवन का पन्ना
जाने क्या है राज ?
रहस्य भरा कैसा अद्भुत
होता है , क्यो अहसास ?
रोमांचक किस्से सा अनुभव
इस लेन-देन के साथ ,
गिले -शिकवे की अपूर्णता पे ,
घिरा रहा मन हर बार ।
टिप्पणियाँ
aapki is kavita me abhivyakt bhaavnaaye sacchi hai .. aap bahut accha likhti hai .. yun hi likhte rahe ..
namaskar.
badhai
बधाई
मेरे ब्लॉग पर पधार कर ग़ज़लों का आनद लें
प्रदीप मनोरिया
09425132060
हमारा मन खली खली क्यूँ रह जाता है
जब मैं इसी उद्देश्य से उनकी उस पोस्ट पर पुनः पहुंचा तो मैंने आप की टिप्पणी देखी जिसमें अपने भी यही बात बड़े सुन्दर और सीमित शब्दों में कही थी , अच्छा लगा शैली अच्छी लगी और इसी कारण से इस समय यहाँ हूँ | मेंरी कमी या शैली इसी से आप को पता चल ही गयी होगी इतना विवरण मात्र इस को बताने के लिए दे डाला कि मै आप के ब्लॉग पर कैसे पहुंचा |
वास्तव में यही आप की शैली की विशेषता थी जो मुझे यहाँ खींच लायी और यहाँ आकार आप की सुन्दर रचनाएँ पढ़ कर मेरा अनुमान सही ही निकला
अपने भी शिकवा किया है परन्तु इसमें एक रहस्य-भेद का भावः भरा है आप ने एक प्रश्न उठाया है उसके उत्तर की दरकार है, मेंरी समझ में इस में वही बात आप कह रही है , जो मैंने ''सफ़र के बीच '' में कही है
जरा सोचिये भी सफ़र में ,
क्या -क्या ले निकले थे,
उम्र के इस छोर आने तक ,
क्या खोया क्या पाया ,
इन्सानी रिश्तों को कौन
सहेज सका , कितना इनको,
मैं खुद भी जी पाया ,