जियो और जीने दो ....


बात अपनी होती है
तब
जीने की उम्मीद को
रास्ते देने की
सोचते है वो ,
बात जहाँ औरो के
जीने की होती है ,
वहाँ उनकी उम्मीद को
सूली पर लटका
बड़े ही आहिस्ते -आहिस्ते
कील ठोकते हुये
दम घोटने पर
मजबूर करते है ।
रास्ते के रोड़े ,
हटाने की जगह
बिखेरते क्यों
रहते हैं ?
........................................
इसका शीर्षक कुछ और है मगर यहाँ मैं बदल दी हूँ क्योंकि यह एक सन्देश है उनके लिए जो किसी भी अच्छे कार्य में सहयोग देने की जगह रोक -टोक करना ज्यादा पसंद करते .

टिप्पणियाँ

अजय कुमार ने कहा…
अच्छा संदेश ।
kshama ने कहा…
Badihi sadagi se aapne kah diya ek sach...na jane kyon log aksar aisa karte hai?
बहुत अच्छी प्रस्तुति एक अच्छा सन्देश
वाह! ऐसी कवितों से जीने की उर्जा मिलती है.
..आभार.
बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।
मनोज भारती ने कहा…
जिंदगी को मधुर गर बनाना है
मेरे से पहले हम को विचारना

दूसरों की राह के जो कंटक बने
उन्हें भी सूलों का सामना करना होगा

राह के रोड़े बने जो किसी के
दुरुह हो जाएगा रास्ता खुद का

सुंदर भाव
रोडे बिखेरने का काम आसान लगता है इन्हें...उठाने की बजाये..

सुंदर प्रस्तुति.
राज भाटिय़ा ने कहा…
एक बहुत ही सुंदर ओर विचारिक कविता
मनोज कुमार ने कहा…
ऐसे लोगों को मालूम होना चाहिए कि दूसरों के प्रति किया हुआ व्यवहार ही अपने प्रति हो जाता है ।
ज्योति जी,
प्रोत्साहन जहां ऊर्जा प्रदान करता है...
वहीं अनावश्यक टोकाटाकी से इन्सान का आत्मविश्वास डगमगा जाता है...
अच्छा संदेश देती रचना के लिए बधाई.
Ravi Rajbhar ने कहा…
Badi hi bhavpurn rachna.
achchha sandes deti hui...!
badhai swikaren!
www.ravirajbhar.blogspot.com
इस्मत ज़ैदी ने कहा…
बिल्कुल सही कहा जब प्रश अपना हो तो रास्ते भी दिख जाते हैं लेकिन जब दूसरों की बात आती है तो समस्याएं सामने आ खड़ी होती हैं
Udan Tashtari ने कहा…
बेहतरीन तरीके से दिया गया सार्थक संदेश!
दीपक 'मशाल' ने कहा…
हम्म उत्तम विचार..
सुंदर सन्देश देती ... ख़ूबसूरत रचना...
शरद कोकास ने कहा…
सही सन्देश है ।
Alpana Verma ने कहा…
सूली पर लटका
बड़े ही आहिस्ते -आहिस्ते
कील ठोकते हुये
दम घोटने पर
मजबूर करते ..

बहुत ही गहरी बात कह दी आप ने ज्योति जी इस कविता में.सफलता की और कदम बढ़ा रहे व्यक्ति को हतोत्साहित करने वाले ऐसे लोग भी राह में मिलते हैं जिससे ब्यक्ति आगे बढ़ने का उत्साह खोने लगता है.
न जाने वे लोग क्यूँ करते हैं ऐसा?शीर्षक सही रखा है -जियो और जीने दो.
बहुत ही अच्छी कविता है.
सुन्दर सन्देश। शुभकामनायें
बात दूसरों की हो तो सूली पैर चढ़ा देना कितना आसान है ...बहुत ही बढ़िया
#vpsinghrajput ने कहा…
बहुत अच्छी प्रस्तुति
M VERMA ने कहा…
सार्थक रचना, सार्थक सन्देश, सार्थक शीर्षक
सुन्दर रचना
अक्सर लोग अपने को दूसरों से ऊँचा मानते हैं .... अच्छा लिखा है आपने ..

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