कुछ तो कमी सदा रही
कुछ तलाश है मन को आज भी
सब कुछ हमारे पास है फिर भी ।
नज़रो में कोई शै है नही
फिर भी इंतज़ार सा है सही ।
ढूंढ रहे है जाने क्या हम
शायद हमें ही पता नही ।
कुछ न कुछ कमी सदा रही ,
इस मन में जो संतोष नही ।
"नर हो न निराश करो मन को"
पर बात कहाँ ये वश की रही ।
कहते है हम ,कोई गिला नही ,
फिर भी शिकायत बनी रही ।
ये बात आम है ,ख़ास नही ,
आदमी इन आदतों का है आदी कही ।
टिप्पणियाँ
कहते है हम ,कोई गिला नही ,
फिर भी शिकायत बनी रही ।
ये बात आम है ,ख़ास नही ,
Good
see here is one part that there is some one for whom you are waiting...but another part is that you are hurting yourself, because after such a long time this waiting become painful... hun...
you bear a lot...
फिर भी शिकायत बनी रही ।
अति सुन्दर
शायद हमें ही पता नही
Sach hai khud ko pata nahi hota par fir bhi kuch na cuch ki talaash jaari rahti hai....isi ka naam hi to jeevan hai
पर बात कहाँ ये वश की रही । ....
......ek marmik abhivyakti.
satya se parichay karati hui...
nirasha har raast aati hain, ek satat prakriya ki tarah. chahe khushi ke kitne hi daanth laga lein.
शायद हमें ही पता नही
ek behad gahare bhaw ko darshat panktiya ............shabd our bhaw se ek utkrist rachana.....
पर बात कहाँ ये वश की रही ।
bahut sunder.
हां तेरे दुःख की बातों से ,संसार को कुछ सुख तो मिलेगा .
आपकी अभिव्यक्ती को नमन !
namaskar.
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
'नर हो ना निराश न निराश करो मन को, पर बात कहाँ ये वश की रही !'
आज के युग की विभीषिका के बीच यदि मैथिलीशरणजी होते, तो उन्हें भी आपकी बात माननी पड़ती. युग-दशा की सुन्दर अभिव्यक्ति !
कहाँ व्यस्त हैं ज्योति जी ? आपके लिए बाबा नागार्जुन का संस्मरण लिखा और आप पढ़ती ही नहीं ! पढें और लिखें कि बाबा का शब्द-चित्र कैसा लगा ! सप्रीत...
शायद हमें ही पता नही ।
Khoobsurat andaaj me sach ko bayan kiya hai aapne.Likhte rahiye.