शाम से लेकर सुबह का इन्तजार
इन दो पहरों में दूरियाँ हुई हजार

फासले बढ़ते रहे लेकर तेज रफ़्तार
बेताबी करती रही दिल को बेकरार

मिटने लगी दूरियाँ आने से उसके आज
बढ़ने लगी बैचेनियाँ हर आहट के साथ

नजदीकियां करने लगी ख़ामोशी इख्तियार
देखकर हम उनको सामने करेंगे क्या बात

मिनटों में यहाँ आये कितने सारे ख्याल
फुर्सत में भी रहे जिनसे हम बेख्याल

जाने क्या रंग लाएगी अपनी ये मुलाकात
पत्थर हो जाये दिल के सब जज़्बात

टिप्पणियाँ

बेनामी ने कहा…
जाने क्या रंग लाऐगी अपनी ये मुलाकात
ज्योती जी लिखते रहिये,सानदार प्रस्तुती के लिऐ आपका आभार


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एक बार अवश्य पढेँ
kshama ने कहा…
Jyoti ji,yah seedhee saral rachana bahut pasand aayi...shabdon ka aadambar nahi,par gahrayi hai...
Alpana Verma ने कहा…
जाने क्या रंग लाएगी अपनी ये मुलाकात
पत्थर न हो जाये दिल के सब जज़्बात ।
वाह ! क्या खूब !
ऐसा ही होता है जब कितना कुछ कहने के लिए सोचते हैं मगर जब आमने सामने आते हैं सब कुछ भूल जाते हैं.
सुन्दर रचना.
Apanatva ने कहा…
bahut sunder abhivykti manahsthitee aur usakee kashmkash ko lekar........
bhabheepost per aapke udgar dravit kar gaye.......
Aabhar
प्यार और साँसों की भाषा .... अद्भुत
शोभना चौरे ने कहा…
jyotiji
bahut hi khubsurt bhavo se bhari rachna .
Akhilesh pal blog ने कहा…
keya baat hai dil me jajbaat hai
बहुत जज़्बातों से लिखी खूबसूरत रचना...
दो पहरों के बीच का सुन्दर चित्रण..
ज्योति जी . कितना सहज . कितना सरस और अनुभूत स्वर है आपकी मिलनान्तर को वाणी देती हुयी रचना का ।
ज्योति जी . कितना सहज . कितना सरस और अनुभूत स्वर है आपकी मिलनान्तर को वाणी देती हुयी रचना का ।
सच है इंतजार में तो एक एक पल एक दिन सा ही लगता है और फिर जब वो सामने हो तो कुछ सूझता ही नहीं
जाने क्या रंग लाएगी अपनी ये मुलाकात
पत्थर न हो जाये दिल के सब जज़्बात

bahut hi khoobsurat pankiyaan..
bahut acchi lagin..
dhnywaad..
सच कहा है ... कभी कभी कुछ पलों में जीवन भर की दूरी आ जाती है ...
मंगलवार 06 जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है आभार

http://charchamanch.blogspot.com/
मन भावन रचना...बधाई
नीरज
sanu shukla ने कहा…
बहुत ही उम्दा रचना
अजय कुमार ने कहा…
गहरे जज्बातों से भरी हुई सुंदर रचना ।

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