गुमां नहीं रहा
जिंदगी का जिंदगी पे अधिकार नही रहा
इसीलिए उम्र का अब कोई हिसाब नही रहा ,
आज है यहाँ , कल जाने हो कहाँ
साथ के इसका एतबार नही रहा ,
मोम सा दिल ये पत्थर न बन जाये
हादसों का यदि यही सिलसिलेवार रहा ,
जुटाते रहें तमाम साधन हम जीने के लिए
मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा ,
देख कर तबाही का नजारा हर तरफ
अब बुलंद तस्वीर का ख्वाब नही रहा ,
वर्तमान की काया विकृत होते देख
भविष्य के सुधरने का गुमां नही रहा ,
सोचने को फिर क्या रह जाएगा बाकी
हाथ में यदि कोई लगाम नही रहा l
टिप्पणियाँ
मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा ,
जीवन की वास्तविकता यही है ....लेकिन वास्तविकता को इंसान हमेशा नजरंदाज करता रहा है ....बहुत सुंदर रचना के लिए आपको आभार
मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा
बहुत सुंदर .... सच्ची और अच्छी अभिव्यक्ति.... बेहतरीन
'रहना नहीं देश बिराना है
यह संसार झांड और झाँखर
उलझ पुलझ मर जाना है'
सदा से ही वर्तमान की स्थिति विकृत सी ही दिखाई देती है.जरूरत है तो बस अंत:करण में प्रभु विश्वास और प्रभु स्मरण की.
आपकी सुन्दर प्रस्तुति भावमयी है जो विरक्ति उत्पन्न करती है.जिससे फिर प्रभु भक्ति का मार्ग
प्रशस्त होता है.आभार.
हादसों का यदि यही सिलसिलेवार रहा,
मन को छू लेने वाली सुंदर कविता.
वर्तमान की काया विकृत होते देख
भविष्य के सुधरने का गुमां नही रहा,
और भविष्य की चिंता भी.
बहुत अच्छा लगा, सुंदर भावाव्यक्ति.
मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा ,
वाह वाह एक सच्चाई जिस से हम सब आंखे चुराते हे, बहुत सुंदर रचना, धन्यवाद
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (18-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
इसीलिए उम्र का अब कोई हिसाब नही रहा
बहुत सुन्दर...बधाई.
बधाई
मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा
...वाह।
बहुत खूबसूरत गज़ल..गहन अहसास..
मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा ,
sunder rachna
kafiya durust hota to aur mza aata
मन को छू लेने वाली सुंदर कविता.
बहुत बहुत धन्यवाद आपका
मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा
... जी वाकई बहुत सुंदर, भावपूर्ण रचना।
हादसों का यदि यही सिलसिलेवार रहा ...
सच ... बहुत ही सार्थक लेखन ... आज के दौर का सफल चित्रण है ये रचना ...
मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा
बहुत सुन्दर. बधाई.
हादसों का यदि यही सिलसिलेवार रहा
वर्तमान का यथार्थ है आपकी रचना में...
बहुत ही गहरे भाव ....
हार्दिक बधाई !
aapki rachna padh kar yahi laga ki jo saty aapne likha hai aaj- kal vahi ho raha hai .
har insaan vartmaan ko chhod kar bhavishhy ke spne sanjone ke liye bhagam -bhag me laga hua hai jabki yah vastvikta hai ki
tu chhod chala jaayega ek din sab
tere saath na kuchh jayega
bahut hi khoobsurat aapki bhav -pravan -vyatharthpurn sateek prastuti man ko chho gai
bahut bahut badhai v dhanyvaad sahit
poonam
मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा ,
ये सत्य है फिर भी कोशिश कहाँ खत्म होती है.
सुन्दर अभिव्यक्ति.
पर साथ हमारे कुछ न गया |
बिल्कुल सही बात पर फिर हम कहाँ रुकते हैं सिर्फ सोचते हैं फिर वाही कारवां शुरू हो जाता है |
सुन्दर रचना |
bahut hi sudnar gazal .... aur sach me sirf sundar kahne se hi gazal ki tareef poori nahi ho jaayengi .. isme jeevan ki saari baato ka samavesh hai .. aapne bahut ache dang se likha hia, shbd jeevan bane hue hai ..
badhayi
मेरी नयी कविता " परायो के घर " पर आप का स्वागत है .
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/04/blog-post_24.html
bahut sunder abhivykti..........
apanee best friend ko khone ke dukh se abhee tak ubar nahee paa rahee hoo..........
kshama chahtee hoo der se aane ke liye.
इन दो अशाआरों में फिलॉसिफिकल अंदाज बहुत अच्छा लगा, बड़े ही अच्छे शे’र कहें हैं :-
(१) जिंदगी का जिंदगी पे अधिकार नही रहा
इसीलिए उम्र का अब कोई हिसाब नही रहा ,
(२) जुटाते रहें तमाम साधन हम जीने के लिए
मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा ,
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
सुन्दर रचना, धन्यवाद!
दुनाली पर देखें
चलने की ख्वाहिश...
मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा ,
ज़िन्दगी की तल्ख़ मगर सच्ची बात ..बहुत खूब...
नीरज