गुमां नहीं रहा


जिंदगी का जिंदगी पे अधिकार नही रहा
इसीलिए उम्र का अब कोई हिसाब नही रहा ,

आज है यहाँ , कल जाने हो कहाँ
साथ के इसका एतबार नही रहा ,

मोम सा दिल ये पत्थर न बन जाये
हादसों का यदि यही सिलसिलेवार रहा ,

जुटाते रहें तमाम साधन हम जीने के लिए
मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा ,

देख कर तबाही का नजारा हर तरफ
अब बुलंद तस्वीर का ख्वाब नही रहा ,

वर्तमान की काया विकृत होते देख
भविष्य के सुधरने का गुमां नही रहा ,

सोचने को फिर क्या रह जाएगा बाकी
हाथ में यदि कोई लगाम नही रहा l

टिप्पणियाँ

केवल राम ने कहा…
जुटाते रहें तमाम साधन हम जीने के लिए
मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा ,

जीवन की वास्तविकता यही है ....लेकिन वास्तविकता को इंसान हमेशा नजरंदाज करता रहा है ....बहुत सुंदर रचना के लिए आपको आभार
जुटाते रहें तमाम साधन हम जीने के लिए
मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा

बहुत सुंदर .... सच्ची और अच्छी अभिव्यक्ति.... बेहतरीन
जुटाते रहें तमाम साधन हम जीने के लिए मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा ,... phir bhi hum jutane me lage rahte hain
Rakesh Kumar ने कहा…
कबीर कहतें है
'रहना नहीं देश बिराना है
यह संसार झांड और झाँखर
उलझ पुलझ मर जाना है'

सदा से ही वर्तमान की स्थिति विकृत सी ही दिखाई देती है.जरूरत है तो बस अंत:करण में प्रभु विश्वास और प्रभु स्मरण की.
आपकी सुन्दर प्रस्तुति भावमयी है जो विरक्ति उत्पन्न करती है.जिससे फिर प्रभु भक्ति का मार्ग
प्रशस्त होता है.आभार.
जब हालातों में हो हादसे ही हादसे तो कोई भी दिलासा , निराशा को मिटा नहीं पाता । बहुत अच्छी रचना ...
मोम सा दिल ये पत्थर न बन जाये
हादसों का यदि यही सिलसिलेवार रहा,

मन को छू लेने वाली सुंदर कविता.

वर्तमान की काया विकृत होते देख
भविष्य के सुधरने का गुमां नही रहा,

और भविष्य की चिंता भी.

बहुत अच्छा लगा, सुंदर भावाव्यक्ति.
राज भाटिय़ा ने कहा…
जुटाते रहें तमाम साधन हम जीने के लिए
मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा ,
वाह वाह एक सच्चाई जिस से हम सब आंखे चुराते हे, बहुत सुंदर रचना, धन्यवाद
vandana gupta ने कहा…
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (18-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

http://charchamanch.blogspot.com/
Vivek Jain ने कहा…
शाश्वत सत्य को प्रस्तुत करती प्रेम में डूबी हुई आपकी रचना बहुत बढ़िया लगी!
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बेहतरीन, मन की भावनाओं को सरल ढंग से व्यक्त करना कठिन होता है।
बहुत खूब ..सत्य को कहती अच्छी रचना
kshama ने कहा…
Kya gazab kee rachana pesh kee hai aapne! Wah!
जिंदगी का जिंदगी पे अधिकार नही रहा
इसीलिए उम्र का अब कोई हिसाब नही रहा

बहुत सुन्दर...बधाई.
इस्मत ज़ैदी ने कहा…
वास्तविकता से परिपूर्ण ग़ज़ल
बधाई
मीनाक्षी ने कहा…
ज़िन्दगी की जद्दोजहद को बयान करती खूबसूरत रचना
Udan Tashtari ने कहा…
क्या बात है, बहुत उम्दा!!
Anamikaghatak ने कहा…
बहुत सुंदर रचना के लिए आपको आभार
जुटाते रहें तमाम साधन हम जीने के लिए
मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा
...वाह।
जिंदगी का जिंदगी पर अधिकार...सोच को बखूबी व्यक्त करती हुई गज़ल।
Kailash Sharma ने कहा…
जिंदगी का जिंदगी पे अधिकार नही रहा इसीलिए उम्र का अब कोई हिसाब नही रहा ,..

बहुत खूबसूरत गज़ल..गहन अहसास..
जुटाते रहें तमाम साधन हम जीने के लिए
मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा ,
sunder rachna
kafiya durust hota to aur mza aata
Arvind Mishra ने कहा…
मनोभावों को प्रगट करती एक भावपूर्ण रचना
BrijmohanShrivastava ने कहा…
जब जिन्दगी का जिन्दगी पर अधिकार ही नही तो उम्र का फिर कोई सवाल ही नहीं बहुत बढिया शेर। यह भी बहुत उम्दा है कि यही सिलसिला रहा तो दिल पत्थर बन सकता है। सांस टूटी तो साथ कुछ भी नहीं ,सिकन्द जब गया दुनिया से दौनो हाथ खाली थे। हर शेर उत्तम
मदन शर्मा ने कहा…
श्रीमान आदरणीय राकेश कुमार जी से सहमत.
मन को छू लेने वाली सुंदर कविता.
बहुत बहुत धन्यवाद आपका
जुटाते रहें तमाम साधन हम जीने के लिए
मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा
... जी वाकई बहुत सुंदर, भावपूर्ण रचना।
मोम सा दिल ये पत्थर न बन जाये
हादसों का यदि यही सिलसिलेवार रहा ...

सच ... बहुत ही सार्थक लेखन ... आज के दौर का सफल चित्रण है ये रचना ...
जुटाते रहें तमाम साधन हम जीने के लिए
मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा
बहुत सुन्दर. बधाई.
Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…
मोम सा दिल ये पत्थर न बन जाये
हादसों का यदि यही सिलसिलेवार रहा

वर्तमान का यथार्थ है आपकी रचना में...
बहुत ही गहरे भाव ....
हार्दिक बधाई !
jyoti ji
aapki rachna padh kar yahi laga ki jo saty aapne likha hai aaj- kal vahi ho raha hai .
har insaan vartmaan ko chhod kar bhavishhy ke spne sanjone ke liye bhagam -bhag me laga hua hai jabki yah vastvikta hai ki
tu chhod chala jaayega ek din sab
tere saath na kuchh jayega
bahut hi khoobsurat aapki bhav -pravan -vyatharthpurn sateek prastuti man ko chho gai
bahut bahut badhai v dhanyvaad sahit
poonam
shikha varshney ने कहा…
जुटाते रहें तमाम साधन हम जीने के लिए
मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा ,
ये सत्य है फिर भी कोशिश कहाँ खत्म होती है.
सुन्दर अभिव्यक्ति.
Minakshi Pant ने कहा…
जुटाते रहे सामान हम उम्र भर
पर साथ हमारे कुछ न गया |
बिल्कुल सही बात पर फिर हम कहाँ रुकते हैं सिर्फ सोचते हैं फिर वाही कारवां शुरू हो जाता है |
सुन्दर रचना |
Satish Saxena ने कहा…
बहुत खूब ...शुभकामनायें !!
ZEAL ने कहा…
बहुत सुन्दर लगी आपकी यह रचना।
Patali-The-Village ने कहा…
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति|आभार|
vijay kumar sappatti ने कहा…
jyoti ji

bahut hi sudnar gazal .... aur sach me sirf sundar kahne se hi gazal ki tareef poori nahi ho jaayengi .. isme jeevan ki saari baato ka samavesh hai .. aapne bahut ache dang se likha hia, shbd jeevan bane hue hai ..

badhayi

मेरी नयी कविता " परायो के घर " पर आप का स्वागत है .
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/04/blog-post_24.html
Apanatva ने कहा…
jeevan kee sacchaee ko ubartee har pankti prabhavshalee hai.........

bahut sunder abhivykti..........

apanee best friend ko khone ke dukh se abhee tak ubar nahee paa rahee hoo..........
kshama chahtee hoo der se aane ke liye.
बहुत सुन्दर रचना !
ashish ने कहा…
भौतिकता वादी इन्सान का इश्वर पर वश नहीं चलता नहीं तो वहा भी मोल भाव करता . नैराश्य स्थायी भाव ना बने , जरुरत है इसकी .
बहुत सुंदर .... सच्ची और अच्छी अभिव्यक्ति.... बेहतरीन
ज्योति जी,

इन दो अशाआरों में फिलॉसिफिकल अंदाज बहुत अच्छा लगा, बड़े ही अच्छे शे’र कहें हैं :-

(१) जिंदगी का जिंदगी पे अधिकार नही रहा
इसीलिए उम्र का अब कोई हिसाब नही रहा ,

(२) जुटाते रहें तमाम साधन हम जीने के लिए
मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा ,

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी
Smart Indian ने कहा…
जुटाते रहें तमाम साधन हम जीने के लिए मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा

सुन्दर रचना, धन्यवाद!
Unknown ने कहा…
जिंदगी बहुत जल्दी बदलती है. सही कहा आपने.

दुनाली पर देखें
चलने की ख्वाहिश...
जुटाते रहें तमाम साधन हम जीने के लिए
मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा ,

ज़िन्दगी की तल्ख़ मगर सच्ची बात ..बहुत खूब...



नीरज

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