सच का व्यापार

सच ही बोलती हूँ
सच ही सुनती हूँ
सच के लिए लड़ती हूँ
सच के लिए सहती हूँ
सच के व्यापार मे
मुनाफा नही होता है
बहुत अच्छी तरह से
ये बात जानती हूँ ,
सच की कसौटी पर
खड़ा उतरना आसान नही
ये भी मानती हूँ ,
पर आदत से लाचार हूँ
खुद को नहीं बदल सकती हूं ,
उसूलों की पक्की हूँ
सच का साथ नहीं छोड़ सकती हूं ,
यही वजह है बनकर मसीहा ।
सूली पर लटकी हूँ
मुद्दतों से हारकर भी
हारी नही हूँ
सुना है ,जीत हमेशा
सच की होती है ,
शायद इसे मैं ,'साकार '
कर रही हूँ ।
सच के लिए लड़ रही हूं ।

टिप्पणियाँ

स्वागत है वापसी का.
मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ बहुत दिनो के बाद आपको लिखते देखकर खुशी हुई।
ज्योति सिंह ने कहा…
शुक्रियाँ संजय ,सालो हो गये
वाह ... बहुत उम्दा ....

काफी दिनों बाद ब्लॉग पर लौटीं आप |
स्वागत :)
ज्योति सिंह ने कहा…
हाँ मोनिका सालो बाद ,बहुत अच्छा लग रहा है अपने पुराने साथियो से मिलकर ,शुक्रियाँ

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