बाजी ......

पहली रात की बिल्ली

मारना किसे चाहिए

मार कौन रहा था ?

सारे उम्र की बाजी

एक पल में वो

लगा रहा था

पलड़े का भार

कही दिशा न बदल दे

इस डर से

सभी बाँटे

अपने पलड़े पर

जल्दी जल्दी 

चढ़ा रहा था

और कांटे की नोंक को

असंतुलित कर

अपनी ही ओर

झुकाते  जा रहा था

शायद वक्त ही उससे

ये करवा रहा था

और वक्त ही

उसकी हरकतों पर

मंद -मंद

मुस्कुरा  रहा था ।

टिप्पणियाँ

Meena Bhardwaj ने कहा…
सादर नमस्कार,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (05-06-2020) को
"मधुर पर्यावरण जिसने, बनाया और निखारा है," (चर्चा अंक-3723)
पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है ।

"मीना भारद्वाज"



Jyoti Singh ने कहा…
मीना ही आपका हार्दिक आभार ,शुभ प्रभात
अनीता सैनी ने कहा…
वाह!बेहतरीन सृजन एक गहन अभिव्यक्ति समेटे पल्लवित होता
पलड़े का भार कही दिशा न बदल दे इस डर से सभी बाँटे अपने पलड़े पर जल्दी जल्दी चढ़ा रहा था
और कांटे की नोंक को असंतुलित कर अपनी ही ओर झुकाते जा रहा था शायद वक्त ही उससे ये करवा रहा था और वक्त ही उसकी हरकतों पर मंद -मंद मुस्कुरा रहा था । वाह !लाजवाब आदरणीय दीदी 👌
संतुलन और असंतुलन के बीच
Jyoti Singh ने कहा…
तहे दिल से शुक्रियां बहना
Jyoti Singh ने कहा…
आपका हार्दिक आभार
Jyoti Singh ने कहा…
आपका हार्दिक आभार कल्पना जी
Amrita Tanmay ने कहा…
क्या कहना .. वाह !
Sunil "Dana" ने कहा…
बहुत सुंदर !!!
Sarita sail ने कहा…
सुंदर रचना
Rakesh ने कहा…
सुन्दर
Onkar ने कहा…
सुन्दर प्रस्तुति
बेहतरीन सृजन
खेल तो सब समय के ही हैं ... इस जीवन को मिला कर ...
भय और आशंकाएं ही व्यक्ति में बिल्ली मारने या काँटा झुकाने जैसी प्रवृत्तियाँ पाल लेता है . अच्छी कविता ज्योति जी .

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