मानवता का स्वप्न
मानवता का स्वप्न
कैसा दुर्भाग्य ? तेरा भाग्य
सर्वोदय की कल्पना ,
बुनता हुआ विचार,
स्वर्णिम कल्पना को आकार देता ,
खंडित करता , फिर
उधेड़ देता लोगों का विश्वास ,
नवोदय का आधार
फिर भी आंखों में अन्धकार ।
इच्छाओं की साँस का
घोटता हुआ दम ,
अन्तः मन का द्वंद प्रतिक्षण ।
भाव - विह्वल हो कांपता ,
अकुलाता भ्रमित - स्पर्श ,
टूट कर भी निःशब्द ,
मानवता का 'स्वप्न '
टिप्पणियाँ
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मानवता स्वप्न हो जाये तो मानव का क्या होगा?
मानवता दफन हो जाये तो मानव का क्या होगा?
प्रश्न तो यह भी है भाव विह्वलता, खंडित विश्वास
विलीन हो जाये संवेदना, तो मानव का क्या होगा?
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गहन मंथन को आमंत्रित करती सुंदर रचना ज्योति जी।
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (22-06-2020) को 'नागफनी के फूल' (चर्चा अंक 3747)' पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
अकुलाता भ्रमित - स्पर्श ,
टूट कर भी निःशब्द ,
मानवता का 'स्वप्न '....
एक सत्य को आईना दिखाती इस रचना हेतु साधुवाद आदरणीय ज्योति जी।
अकुलाता भ्रमित - स्पर्श ,
टूट कर भी निःशब्द ,
मानवता का 'स्वप्न '....
भावपूर्ण सृजन ज्योति जी ।
सादर
सत्य का सूत्र थाने भावपूर्ण रचना ...