धरती की हूँ मैं धूल


धरती की हूँ मै धूल


गगन को कैसे चूम पाऊँगी


उड़ाये जितनी भी आंधियाँ


तो भी आकाश  छू पाऊंगी


 जुड़ी हुई हूँ मै  जमीन से


किस तरह यह नाता तोडू ,


अम्बर की चाहत में बतला


किस तरह यह दामन छोड़ू 
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टिप्पणियाँ

जमा के रखो पैर ज़मीं पर
जो आँधियाँ न उड़ा सकें
हौसला इतना हो मन में
कि गगन चूम सकें ।

मैथली शरण गुप्त जी ने कहा है कि नर हो न निराश करो मन को
सच में जमीन से जुड़ी हुई सुंदर रचना ।
विश्वमोहन ने कहा…
बहुत ही सुंदर रचना!!!
Zee Talwara ने कहा…
बहुत ही सुंदर रचना!!! Free me Download krein: Mahadev Photo

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