दुविधा

राते छोटी

बाते बड़ी

कहने को  मेरे पास

बहुत कुछ था

तुम्हारे लिए कही

लेकिन तुम्हारे सामने

खड़े होते ही

तुम्हें देखते ही

शिकायतों ने दम तोड़ दिया

सवालों ने साथ छोड़ दिया

और मैं अपनी मौन

अवस्था मे लिपटी हुई

वापस लौट आई वही

कितनी दुविधापूर्ण स्थिति

होती है ,

यकीन की कभी- कभी

कही-कही   ।

टिप्पणियाँ

yashoda Agrawal ने कहा…
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 17 एप्रिल 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
Jyoti Singh ने कहा…
धन्यवाद यशोदा जी ,अवश्य आऊँगी
Bijender Gemini ने कहा…
कविता में विचार सुन्दर है । कविता मन को छूती है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी
bijendergemini.blogspot.com
रेणु ने कहा…
बहुत बढिया | मन की उहापोह की स्थिति का सुंदर शब्दांकन |
Jyoti Singh ने कहा…
रेणु जी धन्यवाद ,बिजेन्दर जी धन्यवाद

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