दुविधा
राते छोटी
बाते बड़ी
कहने को मेरे पास
बहुत कुछ था
तुम्हारे लिए कही
लेकिन तुम्हारे सामने
खड़े होते ही
तुम्हें देखते ही
शिकायतों ने दम तोड़ दिया
सवालों ने साथ छोड़ दिया
और मैं अपनी मौन
अवस्था मे लिपटी हुई
वापस लौट आई वही
कितनी दुविधापूर्ण स्थिति
होती है ,
यकीन की कभी- कभी
कही-कही ।
टिप्पणियाँ
- बीजेन्द्र जैमिनी
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