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एकांत का संसार

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एकांत का संसार  स्मृतियों में डूबा...भला, बुरा सोचता  प्रश्नों से जूझता...हलों को ढूंढ़ता कल को खोजता...आज में जीता  आस को जगाता...बिश्वास को सूली पे  लटका हुआ कभी पाता  टूटता, बिखरता...अंतर्मन के द्वन्द लिए  जीतता तो कभी हारता  दुख में उदास होकर...रोता बिलखता  सुख का ध्यान कर...हँसता मुस्कुराता   भविष्य की चिंता करता  कभी परिस्थितियों पे...विचार करता  थोड़ा सामने जाता...फिर पीछे हट जाता  अकेले रहने पर मनुष्य.. स्वाभाविक रूप से   विचारों में उलझा रहता हैं  मौन व्रत धारण किए  कई किस्से गढ़ता हैं, स्वतंत्र रूप से जीता.... वो अपनी जिस दुनिया में  वही हैं.....उसका अपना संसार  एकांत का संसार  जो देता हैं जीवन को विस्तार... ज्योति सिंह 🙏🙏

अच्छा होना... न होना

अच्छे की यही परेशानी हैं  कि वह सभी से  अच्छे की उम्मीद करता हैं  सबको अच्छा देखना  चाहता हैं  सभी को अच्छा बनाने की  कोशिश में लगे रहता हैं  सबकुछ अच्छा हों  ऐसा चाहता हैं  ये तो संभव नहीं..... क्योंकि  आप आदमी को  बदलना बनाना चाहते हों  और आदमी बदलनें को  राजी नहीं... वो तो आदमी ही बने  रहना चाहता हैं  अपनी सहूलियत के मुताबिक  जीना चाहता हैं  आदमी को इंसान बनाना  आसान कहाँ  अच्छे की यही परेशानी हैं  उसे ये मंजूर नहीं... समझकर भी कोई  समझना क्यों नहीं चाहता हैं? 🌼🌸ज्योति सिंह 🙏🙏

समय चक्र......

रूचि, इच्छाएं, सपने,  स्वाभाव, व्यवहार, स्वाद, रंग-ढंग  सोच- विचार, रास्ते, दिशाए,  समय, आवश्यकताएं  इत्यादि... जब  बदलतें हुई दिखाई देने लगे  तब मनुष्य का  बदलना भी  आरंभ हो जाता हैं  मनुष्य के बदलने से  समाज, देश, दुनिया में  नूतन परिवर्तन का युग  प्रारम्भ हो जाता हैं  इस तरह बदलते दौर का  इतिहास रचा जाता हैं  और  हम कहते हैं.... कल जैसा कुछ न रहा  समय बहुत बदल गया  अब वो जमाना नहीं रहा  समय बदलता ही हैं  समय के साथ सबको  बदलना ही पड़ता हैं  संग उसके चलना ही पड़ता हैं  यही समय चक्र हैं.....। ⏳⏳ज्योति सिंह 🙏🙏