बुधवार, 17 जनवरी 2018

औरत

औरत

वो सवाल है वो जवाब है
वो खूबसूरत सा खयाल है ,
वो आज है वो कल है
हर समस्याओ का हल है ,
वो सहेली है वो पहेली है
दुनिया की भीड़ में अकेली है ।
वो मोती है वो ज्योति है
वो इस सृष्टि में अनोखी है ।
वो दर्द है वो मुस्कान है
सुख-दुख में एक समान है ।
वो सांसो का बंधन है
वो रिश्तों का संगम है ।
वो खुशबू है चंदन की
वो रौनक है आंगन की ।
मत समझो केवल 'निर्भया' उसे
पड़ी जरूरत तो वो अभया है ।

4 टिप्‍पणियां:

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता. लिखती रहो लगातार.

ज्योति सिंह ने कहा…

शुक्रियाँ वंदना

Unknown ने कहा…

nice lines, looking to convert your line in book format publish with HIndi Book Publisher India

ज्योति सिंह ने कहा…

बहुत बहुत शुक्रियाँ आपका