माँ .......

माँ एक ऐसा शब्द 
जिस पर क्या बोलू ,क्या कहूँ ,क्या लिखूँ , सोच ही नही पाती हूँ मैं  ,इसको परिभाषित करना आसान नहीं है मेरे लिए ,कोई भी  शब्द कोई भी वाक्य सम्पूर्ण रूप से इसे परिभाषित नही कर पायेंगे ,उसे शत शत नमन करते हुए यही कहूंगी --माँ नही तो ये जहां नही ,माँ ही से जिंदा है भरोसा ,माँ ही से जिंदा है प्रेम ,माँ ही से जिंदा है ममता ,माँ ही से जिंदा है वात्सल्य ,माँ ही से जिंदा है आस  ,माँ ही से जिंदा है त्याग ,माँ ही से जिंदा है अच्छाई ,माँ ही से जिंदा है नेकी ,माँ ही से जिंदा है इमान ,माँ ही से जिंदा है इंसानियत ,माँ ही है ईश्वर का स्वरूप ,माँ ही छाँव ,माँ ही धूप,माँ ही सुख माँ ही दुख ,माँ ही हिम्मत ,माँ ही ताकत ,माँ ही धीरज ,माँ ही जरूरत ,माँ ही सखा ,माँ ही गुरु ,माँ से ही शुरू हुआ जीवन ,माँ का ही दिया हुआ है जीवन ,माँ पर क्या लिखूं ,इस छोटे से शब्द ने रच दिया सारा संसार ,सबसे छोटे शब्द  का ही सबसे बड़ा आकार  ।

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