आखिर कौन हो तुम ?

वक्त  किसी  के लिए

ठहरता नही

मगर तुम्हें उम्मीद है

कि वो ठहरेगा

सिर्फ और सिर्फ

तुम्हारे लिए

और इंतजार करेगा

तुम्हारा

बड़ी बेसब्री से कहीं ,

कोई अलभ्य

शख्सियत हो ?

जो रुख हवाओं का

मोड़ रहे हो

वर्ना आदमी दौड़कर

लाख कोशिशों के बाद भी

पकड़ नही पाया

वक्त को तां  उम्र

और यहाँ बड़े  इत्मीनान से

सुस्ता रहे हो तुम ,

आखिर कौन हो तुम ,?

टिप्पणियाँ

Sarita sail ने कहा…
अच्छी रचना
मै एक प्रवाह , जो निर्बाध चलता है ।
अनीता सैनी ने कहा…
वाह !बहुत ही खूबसूरत सृजन आदरणीय दीदी जी.
सादर
yashoda Agrawal ने कहा…
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 28 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
Subodh Sinha ने कहा…
वक्त की धारा में एक बहते रेत के कण मात्र ही तो हैं हम ... शायद ...
Meena sharma ने कहा…
यह गुमान भी वक्त ही तोड़ता है एक दिन...बहुत सुंदर रचना।
अनीता सैनी ने कहा…
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(३०-०५-२०२०) को 'आँचल की खुशबू' (चर्चा अंक-३७१७) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
Jyoti Singh ने कहा…
सभी साथियों का तहे दिल से शुक्रियां करती हूं ,शुभ प्रभात ,नमस्कार
Meena Bhardwaj ने कहा…
बहुत सुन्दर सृजन ।
Dr Varsha Singh ने कहा…
बढ़िया कविता
RAKESH KUMAR SRIVASTAVA 'RAHI' ने कहा…
भावपूर्ण प्रस्तुति।

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