ye purani rachna hai ,jo dalni thi uski taiyaari nahi rahi ,is karan ise dala ,magar aap sabhi ki tippani ne hausala badha diya ise pasand karke ,shukriyaan
जिंदगी का जिंदगी पे अधिकार नही रहा इसीलिए उम्र का अब कोई हिसाब नही रहा , आज है यहाँ , कल जाने हो कहाँ साथ के इसका एतबार नही रहा , मोम सा दिल ये पत्थर न बन जाये हादसों का यदि यही सिलसिलेवार रहा , जुटाते रहें तमाम साधन हम जीने के लिए मगर सांस जब टूटी साथ कुछ नही रहा , देख कर तबाही का नजारा हर तरफ अब बुलंद तस्वीर का ख्वाब नही रहा , वर्तमान की काया विकृत होते देख भविष्य के सुधरने का गुमां नही रहा , सोचने को फिर क्या रह जाएगा बाकी हाथ में यदि कोई लगाम नही रहा l
जिंदगी वफ़ा की सूरत जब इख्तियार करती है हर कदम पर तब नए इम्तिहान से गुजरती है . .............................. ... कितनी सुबह निकल गई कितनी राते गुजर गई कुछ बाते पहली तारीख सी आज भी है यही कही . '''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''' मंजिल इतनी आसान होती तो क्योकर तलाशते क्यों उम्र अपनी सारी यू दाव पर लगाते . ;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;; जो मजा सफ़र में है वो मंजिल में कहाँ थम जाती है जिंदगी सब कुछ पाकर यहाँ .
ओस की एक बूँद नन्ही सी चमकती हुई अस्थाई क्षणिक रात भर की मेहमान ___ जो सूरज के आने की प्रतीक्षा कतई नही करती , चाँद से रूकने की जिद्द करती है , क्योंकि दूधिया रात मे उसका वजूद जिन्दा रहता है , सूरज की तपिश उसके अस्तित्व को जला देती है ।
टिप्पणियाँ
आरम्भ भी वही और अंत भी वही ।
बहुत ही सुंदर भाव लिये.
धन्यवाद
nav varsh aapake vartmaan ko khushiyon se bhar de isee aasheesh ke sath
आरम्भ भी वही और अंत भी वही ।nice
AAPKA BETA
SANJAY BHASKAR
आज तक वैसी ही बनी रही
लाजवाब पंक्तियाँ
आरम्भ भी वही और अंत भी वही ...
शून्य से निकल कर शून्य में ले जाती हुई शशक्त रचना .........
आरम्भ भी वही और अंत भी वही ...
आपका वर्तमान भविष्य और अतीत. मेरी भी एक वर्तमान भविष्य और अतीत पर कविता तैयार है .कब पोस्ट कर पाती हूँ पता नहीं
आरम्भ भी वही और अंत भी वही ।
बहुत ही सुंदर बात कह दी आप ने...
पुरानी कविता में भी लेखन कहीं कच्चा नहीं दिखता.
बहुत गहन भाव इन पंक्तियों में.
आभार.