बहुत बढ़िया विचार हैं
वाह क्या खूब कही आपने !!काफी भाव पूर्ण रचना ..बधाई , स्वीकारें ||
दिल को छू रही है यह कविता .......... सत्य की बेहद करीब है ..........
ज्योति जी मैं फिर से ब्लॉग पर जिंदा हो रहा हूँ .......................आपकी अस्तित्व कविता के साथ .........जी बहुत शुक्रिया .........
bahut sunder bhav......
आकाश की ऊँचाइयाइयाँ पा कर स्वयं को जमीन से जोड़े रखना बहुत बड़ी बात होती है ।
मैं जुड़ी हुई जमीन सेकिस तरह यह नाता तोडू ,अम्बर की चाहत में बतलाकिस तरह यह दामन छोड़ू । Ek vinamr bhaav se bharpoor rachana!
मैं जुडी हूँ ज़मीन सेकिस तरह नाता तोडूंअम्बर की चाहत में बतलाकिस तरह दामन छोडूँ .....यही अंतर है पाश्चात्य और भारतीय संस्कृति में ....!!
jyoti ji ,deri se aane ke liye maafi chahunga... aapko kaaran to pata hi hai ... ab dheere dheere blogging me aa raha hon.. aapki ye kavita mujhe bahut acchi lagi , man ki kashamkash ko darshati hui poem hai ... aapne bahut accha likha hai .. badhayi sweekar kare.. aabhar vijay - pls read my new poem at my blog -www.poemsofvijay.blogspot.com
gahre bhaw..... bahut hi sahaj, komal vichaar
मैं जुड़ी हुई जमीन से किस तरह यह नाता तोडू ,अम्बर की चाहत में बतला किस तरह यह दामन छोड़ू ।सच कहा जड़ें जमीं से जुड़ी रहें तभी तक अच्छा है दिल को छू रही है यह कविता
सार्थकता इसी में है की ज़मीन से जुड़े रह कर आसमान की बुलंदियाँ हासिल करनी ही होंगी..लेकिन धूल है इसीलिए ज़मीन छोड़ नहीं सकती आसमान छू नहीं सकती..यह उसकी नियती है..गहन अर्थ लिए पंक्तियाँ.
ज़मीन से जुड़े रहना ही ज़रूरी होता है...बहुत अच्छी रचना
Sundar v sahaj bhavabhivyakti.Badhaae
vah keyaa baat hai
amber ko lakshey maandharti ko fateh kar leapni insaniyat me rah kar hilog upar hai uthte..
बहुत ही गहराई लिए हुए रचना \जमीन से जुडी हुयी होने के कारण आकाश छू नहीं सकती |आकाश की चाहत में धरती से नाता तोड़ा नहीं जाता
गहरी बात .... अपनी ज़मीन छोड़ना आसान नही होता ... बहुत अच्छी रचना है .....
BAHUT SHANDAR KAVITA,SHUKRIYA..
aap sabhi ka tahe dil se shukriya
koob achchi lagi.
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21 टिप्पणियां:
बहुत बढ़िया विचार हैं
वाह क्या खूब कही आपने !!
काफी भाव पूर्ण रचना ..
बधाई , स्वीकारें ||
दिल को छू रही है यह कविता .......... सत्य की बेहद करीब है ..........
ज्योति जी मैं फिर से ब्लॉग पर जिंदा हो रहा हूँ .......................आपकी अस्तित्व कविता के साथ .........जी बहुत शुक्रिया .........
bahut sunder bhav......
आकाश की ऊँचाइयाइयाँ पा कर स्वयं को जमीन से जोड़े रखना बहुत बड़ी बात होती है ।
मैं जुड़ी हुई जमीन से
किस तरह यह नाता तोडू ,
अम्बर की चाहत में बतला
किस तरह यह दामन छोड़ू ।
Ek vinamr bhaav se bharpoor rachana!
मैं जुडी हूँ ज़मीन से
किस तरह नाता तोडूं
अम्बर की चाहत में बतला
किस तरह दामन छोडूँ .....
यही अंतर है पाश्चात्य और भारतीय संस्कृति में ....!!
jyoti ji ,
deri se aane ke liye maafi chahunga... aapko kaaran to pata hi hai ... ab dheere dheere blogging me aa raha hon..
aapki ye kavita mujhe bahut acchi lagi , man ki kashamkash ko darshati hui poem hai ... aapne bahut accha likha hai .. badhayi sweekar kare..
aabhar
vijay
- pls read my new poem at my blog -www.poemsofvijay.blogspot.com
gahre bhaw..... bahut hi sahaj, komal vichaar
मैं जुड़ी हुई जमीन से
किस तरह यह नाता तोडू ,
अम्बर की चाहत में बतला
किस तरह यह दामन छोड़ू ।
सच कहा जड़ें जमीं से जुड़ी रहें तभी तक अच्छा है दिल को छू रही है यह कविता
सार्थकता इसी में है की ज़मीन से जुड़े रह कर आसमान की बुलंदियाँ हासिल करनी ही होंगी..
लेकिन धूल है इसीलिए ज़मीन छोड़ नहीं सकती आसमान छू नहीं सकती..यह उसकी नियती है..गहन अर्थ लिए पंक्तियाँ.
ज़मीन से जुड़े रहना ही ज़रूरी होता है...बहुत अच्छी रचना
Sundar v sahaj bhavabhivyakti.
Badhaae
vah keyaa baat hai
amber ko lakshey maan
dharti ko fateh kar le
apni insaniyat me rah kar hi
log upar hai uthte..
बहुत ही गहराई लिए हुए रचना \जमीन से जुडी हुयी होने के कारण आकाश छू नहीं सकती |आकाश की चाहत में धरती से नाता तोड़ा नहीं जाता
गहरी बात .... अपनी ज़मीन छोड़ना आसान नही होता ... बहुत अच्छी रचना है .....
BAHUT SHANDAR KAVITA,SHUKRIYA..
aap sabhi ka tahe dil se shukriya
koob achchi lagi.
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