हकीकत
'हकीकत ' तेरी स्वयं की
वास्तविकता में भी ,
भिन्नता झलकती है ,
नज़र के सामने की तस्वीर
रूप क्यो बदलती है ?
दिखाती है कुछ ,किंतु
बयां कुछ और ही करती है ,
असलियत के भाव से सम्पूरण
गवाही फिर भी
भिन्न -भिन्न देती है ,
हकीकत के आइने में भी
हकीकत के आइने में भी
सत्य हर क्षण छलती है ।
टिप्पणियाँ
Aabhar.
असलियत के भाव से सम्पूरण
गवाही फिर भी भिन्न -भिन्न देती है ,
bahut achhi abhivykti .
ज्योति जी ! विलक्षण सामंजस्य ।